४८२ ओई-ओखल. जोरकी पावाज । २ वकविशेष. किसी किस्मका । भोकना (हिं. क्रि०) १ वमन करना, के निकालना। बगला। ३ वकविशेषका अव्यक्त शब्द, किसी बगलेको २ महिषवत् शब्द करना, भैसकी तरह बोलना। बोली। प्रोकनी (सं० स्त्री०) चोकपि देखो । श्रोई (हिं. स्त्री०) वृक्षविशेष, एक दरख त। प्रोकपति (सं० पु.) सूर्य वा चन्द्र, प्राफ़ताब या भोक (सं० स्त्री०) उच-क निपातनात् साधुः। १ गह, माहताब। घर। २ श्राश्रय, ठिकाना। (पु.) ३ पक्षी, चिड़िया। ओकरी (सं० स्त्री०) राजगृहके अन्तर्गत एक ४ शूद्र, वृषल। प्राचीन ग्राम । भविष्यब्रह्मखण्ड में लिखा है- ओकः (सं० लो०) उच्यते समवैति अस्मिन्, उच- कलियुगके मध्य यहां शस्यजीवो कृषक वास असुन् । १ पाश्रय, ठिकाना। २ गृह, घर। ३ स्थान, करेंगे। कलिकालमें पोकरीका नारोगा वैश्या और मुकाम। विजगण वेश्यावृत्तिपरायण होगा । यहांके लोग पापके प्रोक कान-१ निम्नब्रह्मदेशस्थ पेगू प्रान्तके हन्तावाड़ी कारण सर्पाघातसे विनष्ट होंगे। (भ० ब्रह्मखण ३०५०-५२) जिलेकी एक नदी। यह पेगू-योमा पर्वतसे निकल पोकाई (हिं. स्त्री०) १ वमन, क । २ वमनेच्छा, मागोनके समीप हलैंगमें जा गिरती है। पोक्कान के करनेको खाहिश ।। नदी बहुत छोटी है। किन्तु वर्षा के समय ओक्कान भोकार (सं० पु०) 'भो', प्रो पचर। ओ देखो। ग्रामतक इसमें बड़ी-बड़ी नावें चल सकती हैं। साख बोकारान्त (सं० वि०) अन्तमें ओकार रखनेवाला, और दूसरी लकड़ीके इ8 इसमें बहाकर इलैंग पहुंचाये | जिसके अखौर में 'ओ' रहे। जाते हैं। २ निम्न् ब्रह्मके हन्तावाड़ी ज़िलेका एक ओकिवस् (सं० वि०) उच-क्कसु। समवेत, एकत्र, ग्राम । यह इलैंग नदीसे ५ मोल पश्चिम अवस्थित है। मिला इमा। इसमें दो सराय और दो वर्गाकार निर्मित बौछ| प्रोको. पोकाई देखो। मन्दिर हैं। सुनने में पाया, प्रायः ३०० वर्ष हुये किसी ओकुल (सं० पु०) उच-उलच निपातनात् साधुः। तेलङ्गने इसे बसाया था। अर्धगन्ध, अपक्क गोधमा वैद्यक मतसे यह गुरु, भोककेत-बम्बई प्रान्तख मालखेड़वाले राष्ट्रकूट राजा शुक्रवर्धक, मधुर, बलकारक, स्निग्ध, रुचिकारक, वोंक छत्रका चिह्न। सिरूरके शिलालेखमें लिखते, | मत्ततावर्धक और रक्त एवं वायुनाशक होता है। कि अमोघवर्षके तीन राजच्छत्र रहे-शज, पालिध्वज प्रोकोदनी (सं. स्त्री०) श्रीकः आश्रयस्थानमदनं और भोककेतु। यस्याः, बहुव्री०। मत्कुण, खटमल । पोकण (सं० पु.) केशकीट; जं । ओकोदशानी (सं० स्त्री०) प्राचौर, दीवार । पोकणि (सं० पु.) मत्कुण, खटमल। पोकणी (स'• स्त्री०) ओच-कण-अच्-डीप् । मत्कुण, पोकताई खान्-चोज खान्के बड़े लड़के। १२२७ खटमल। ईको इन्हें अपने पिताके राज्य तातार और उत्तर- ओक्य (सं० त्रि०) १ सहवासोके निमित्त उत्तम, चीनका उत्तराधिकार मिला था। १२४२ ई०को नो घरमें रहनेवालेके मुवाफिक हो। (लो.)२ प्रस- यह अधिक शराब पीनेसे मर गये। ओकताई खान् । ब्रता, खु.शौ। ३ सुविधाजनक स्थान, आराम देने- बड़े सहृदय रहे। यह अपनी प्रजाको निरपेक्ष भाव | वाली जगह । ४ विश्वामागार, मकान् । और न्यायसे शासन करते थे। इनकी वीरता और पोखद (हिं. स्त्री.) औषध, दवा। बुद्धिमत्ता प्रसिद्ध है। ओकताई खान् बड़े दानी थे। पोखरी, भीखलौ देखो। राज्यका उत्तराधिकार इनके पुत्र याक ब खान्को अोखल (हिं. पु.) १ अपर, पड़ती जमीन् । २ उदूर मिला। | खस, धोखली।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५२३
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