पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५३२

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ओझियाल गोंड-ओडाशङ्कर ५३१ चार गायकको मूर्ति बढ़ाती हैं। सब मूर्तिपर चम-1 छोड़ाना, कपासका बिनौला निकालना। २ बीचमें कोला रंग चढ़ा है। प्राङ्गणमें दो दीपकस्तम्भ हैं। ही रोक लेना, पकड़ना। ३ दायी बनना, जवाबदोह सात तोरणको परिक्रमा बनी है। ग्रामका प्राय होना। ४ पुनः पुनः कथन करना, अपनी ही बात मन्दिर में लगा है। इनामदार प्रबन्ध करते हैं। नावना। २ बम्बई प्रान्तके अहमदनगर ज़िलेको एक नदी। ओटनी (हिं० स्त्री०) कापास परिष्कार करनेका इस नहरका मुंह सङ्गमनेर नगरसे १० मोल नोचे एक यन्त्र, कपास साफ करनेको चरखो। इससे श्रोझर ग्राममें प्रवरके वाम तटपर अवस्थित है। कपासका बिनौला निकाल रूई तैयार करते हैं। लंबाई १८ मील है। २७०८८ एकर भूमि इससे ओटल (हिं. स्त्री० ) व्यवधान, परदा, आड़। सींची जाती है। १८७८ ई.को यह पूरी तौरपर अोटा (हिं. पु.) १ पाच-भित्ति, बगली दीवार, बनकर तैयार हुयी थी। अोझारपर पुल बंधे और पाड़। “लीपू' भोटा मरे मोटा।" ( लोकोक्ति) २ घरके पेड़ लगे हैं। सामनेका चबूतरा। ३ कपास पोटनेको चरखीपर गाल गोंड-मध्यप्रदेशके गोंडोंकी एक शाखा। रखा जानेवाला मडोका लोंदा। इससे चरखो अपनी राजपूतानेके चारणों की तरह यह लोग भी वीणा | जगह नहीं छोड़ती। ४ चरखो चलानेवाला। बजा-बजा स्वजातीय वीरपुरुषोंका यश गाते फिरते श्रोटो, पोटनी देखो। हैं। हाथमें मोरका पंख रहता है। भोमियाल ओठ (हिं०) ओष्ठ देखो। चकोर और धनेशका चमड़ा बेचते हैं। लोगोंके | ओठंगना (हिं. क्रि०) पात्रय पकड़ना, किसीके विश्वासानुसार धनेशका चमड़ा घरमै रहनेसे धन और सहारे बेठना या लेटना। सौभाग्य बढ़ता है। इससे वह बडे पादरके साथ प्रोड़ (हिं. स्त्री०) प्रोट, आड। क्रय किया जाता है। इनकी स्त्रियां दूसरी हिन्दू- ोड़क, गोड़व देखो। रमणियोंके हाथमें गोदना गोद देती हैं। यहांकी ओड़चा (हिं० पु०) १ काष्ठपात्रविशेष, काठका हिन्दू स्त्रियोंके विचारानुसार इनसे हाथमें गोदना एक बरतन। इससे क्षेत्रका जल उलोचते हैं। २३ड़ो, गोंदानेपर वैधव्यको दशा भोगना नहीं पड़ती। दौरी। इससे निम्नस्थलका जल क्षेत्रमें पहुंचाया जाता दूसरी श्रेणीक भोझियालोको .माना कहते हैं। है। यह गहरी टोकरी जैसा रहता है। दोनो वह दूसरे गोंडोके साथ बैठकर नहीं खाते, कारण । पोर डोरी लगा दो बादमी इसे चलाते हैं। अपनेको बहुत बड़ा लगाते हैं। ओड़छा, ओर्श देखो। ओझैती, ओझाई देखो। मोड़न (हिं० स्त्री०) १ अवरोध, रोक । २ ढाल, ओट (हिं. स्त्री०) १ अवरोध, रोक, पाड़। बचावकी चीज़। “तिनकेकी ओट पहाड़।" ( लोकोक्ति ) २. छाया, परछाहौं। भोड़ना (हिं० क्रि०) १ अवरोध लगाना, बोचमें हो ३ गुप्तस्थान, छिप कर बैठने की जगह। ४ बूंघट। रोक रखना। २ विस्तारित करना, फैला देना। ५ विरोध, बचाव। ६ अवष्टम्भ, सहारा। ओड़व (सं• पु०) रागविशेष। इसमें स, ग, म, ध ओटन (हिं. स्त्री०) यन्त्र विशेषका दण्ड, चरखी का और नि-पांच हो स्वर लगते हैं। डंडा। यह दो रहतीं और कपाससे बिनौलेको ओड़ा (हिं० पु.) १ टोकरा, खांचा । २ गत, गट्टा । अलग करती हैं। पहले हिन्दुस्थानमें घर घर प्रोटनसे ३ सेंध। (वि.) ४ गभीर, गहरा। काम लिया जाता था। किन्तु अब मिल या पुतलीघर प्रोडाशङ्कर-एक संस्कृत ग्रन्थकार। यह सुधाकरके चलनेसे इसका व्यवहार अधिक देख नहीं पड़ता। पुत्र और शुचिकरके पौत्र थे। ग्रन्थविधानधर्म ओटना (हि.क्रि.)१ कापासको चरखीपर लगा वौज! और स्मतिसुधाकर नामक पुस्तक इनके लिखे हैं।