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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५७

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पहा - इन्द्रलोकेश-इन्द्रवारुणिका अर्थात् भवनवासी देवोंके चालीस, व्यन्तरोंके बत्तीस । इन्द्रलोहक (सं० लो०) रौप्य, चांदी। कल्पवासियोंके चौबीस, ज्योतिषियोंके दो (चन्द्र और इन्द्रवंशा (सं० स्त्री०) वृत्तविशेष, एक छन्द। इसमें सूर्य), मनुष्योंका एक (चक्रवर्ती) और तिर्यञ्चोंका एक चार पाद और प्रत्येक पादमें बारह वर्ण रहते हैं। (सिंह) इस तरह सब मिलाकर सौ इन्द्र होते हैं। इन्द्रवंशाके दृतीय, षष्ठ, सप्तम, नवम एवं एकादश देव चार प्रकारके होते हैं-भवनवासी, व्यन्तर, वणं लघु तथा अवशिष्ट गुरु होते हैं। ज्योतिषी और वैमानिक। इस पृथ्वीके नीचे रत्नप्रभा "स्वादिन्द वंशा ततरस्युतैः ।" (वृत्तरवाकर) नामको एक पृथ्वी है। उसके खरभाग, पकभाग इन्द्रवचा ( स० स्त्री०) इन्द्रयव। और अब्बहुलभाग ये तीन भाग हैं। उनमें आदिके जो इन्द्रवजा (सं० स्त्री०) छन्दोविशेष। इसमें चार दो भाग हैं उनमें असंख्य देवोंके भवन हैं उनमें जो पाद और प्रत्य क पादमें ग्यारह अक्षर होते हैं। देव रहते हैं, वे भवनवासी कहलाते हैं। इनके दश | हतीय, षष्ठ, सप्तम एवं नवम लघु तथा अवशिष्ट वर्ण भेद हैं-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, गुरु होते हैं। सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, उदधिकुकार, ___स्थादिन्द्रवजा यदि तौ जगौगः।" (वृत्तरवाकर ) स्तनितकुमार, दीपकुमार और दिक्कुमार। हर एक | इन्द्रवटी (सं० स्त्री०) वैद्यकोत औषध विशेष, एक भेदमें दो दो इन्द्र और उनके दो दो प्रतीन्द्र हैं। इसलिये दवा। मृत सूत तथा वङ्ग और अर्जनको त्वकको कुल इनमें चालीस इन्द्र हैं। इन्द्रों के समान प्रतीन्द्रोंकी तुल्यांश ले शाल्मली-मूलज द्रवमें घोटे और रत्ती विभूति होती है, अतः प्रतीन्द्रोंको भी इन्द्र कहा है। | प्रमाण वटिका बनाये। मधु तथा शाल्मलीमूलचर्ण पहाड़ नदी शून्यरह वृक्ष और विविध देशदेशा- अथवा शर्कराके साथ खानेपर इन्द्रवटी प्रमेहको दूर न्तरों में जो देव रहते हैं, उन्हें व्यन्तर देव कहते हैं। कर देती है। (रसैन्द सारसंग्रह) उनके पाठ भेद हैं-किवर, किं पुरुष, महोरग, गन्धर्व, इन्द्रवधू (सं० स्त्री०) वीरबइटी, रामको गुड़िया। यह यक्ष, राक्षस, भूत, और पिशाच। इनके भी हर एक कोड़ा प्रायः लाल होता है और वृष्टि पड़ने पर अपने भेदमें दो इन्द्र और दो प्रतीन्द्र होते हैं। इसलिये| आप भूमिसे उपजता है। बत्तीस इन्द्र हैं। इन्द्रवल-मध्यप्रदेशका एक प्राचीन शवर राजा। यह . सूर्य चन्द्रमा आदि ज्योतिषी देव कहलाते हैं। उदयनका पुत्र था। शवर होते भो इसने अपने को इनके पांच भेद हैं-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारागण । पाण्डवंशीय बताया है। इनके दो ही सूर्य और चन्द्रमा इन्द्र हैं। इन्द्रवल्लरी (स. स्त्री.) इन्ट्रयासौ वल्लरी चेति, विमानों में रहनेवाले देव वैमानिक देव कहलात कर्मधा। इन्द्रवारुणौलता, इन्द्रायन। इस लताका हैं। उनमें प्रथम दो भेद हैं-कल्पवासी और रस तिक्त, पुष्प पीतवर्ण और मूल शुभ्र होता है। कल्पातीत। कल्पवासियोंके बारह भेद हैं। ये कल्प- इन्द्रलका, इन्द वल्लो देखो। वासी देव सोलह वर्गों के पटलों में रहते हैं और इनके इन्द्रवल्ली (सं० स्त्री०) इन्द्रप्रिया वल्ली लता, शाक. बारह इन्द्र और बारह.प्रतीन्द्र हैं। इसलिये कुल तत्। १ पारिजात लता। २ इन्ट्रवारुणी। चौबीस इन्द्र हैं। सोलह वर्गों के ऊपर जो विमान इन्द्रवस्ति (सं० पु.) इन्द्रस्यात्मनो वस्तिरिव । जसका हैं उनके रहनेवालोंको कल्यातीत कहते हैं। उनमें इन्द्र | मध्य भाग, साक, पिंडली। प्रति पाणि-जङ्गाके और सामान्यदेवोंको कल्पना नहीं है। वे सब समान स्थानको इन्द्रवस्ति कहते हैं। (सनुत) होते हैं। मनुष्यों में सबसे बड़ा राजा चक्रवर्ती इन्द्र है। इन्द्रवायु (सं.पु.) . इन्ट्र और वायु। । पौर तिर्यच्चों में सबसे श्रेष्ठ सिंह इन्द्र है। (जै नशास्त्र) | इन्द्रवारुणि (हिं० पु०) इन्द वारणी देखी। ३ अतिथि, मेहमान्। .... इन्द्रवारुणिका, इन्द, वारुणी देखो। .....