पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६०२

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PARon प्रत्येक पादाङ्गलिमें तोन-तीन पदसन्न और गुस्फमें एडोमें जङ्घाम जानुमें जरदेशमें इसी प्रकार अपर पादमें दोनों हाथोंमें तीस-तीस कटिदेशमें मलद्दारमें योनिदेशमें दोनों नितम्बोंमें टोनों पार्श्व में छत्तीस-छत्तीस पृष्ठमें वक्ष में वृत्ताकार अचक नामक ग्रीवादेश में कण्ठदेशमें दोनों तनुमें नरकराला दन्त में चिड़ित पंश मस्तक, २ मध्य, कर्म और अधाशाखा है। नासिकात्में महर्षि सुश्रुतके मतसे अस्थि पांच प्रकारका होता तालुम है-कपाल, रुचक, तरुण, वलय और नलकास्थि!! गण्ड, कर्ण और वायु प्रत्यकमें दो-दो ... जानु, नितम्ब, अंश, गण्ड, ताल, शङ्ख एवं मस्तकका मस्तकम सब मिलाके अस्थिखण्ड कपाल कहाता है। दन्तके अस्थि खण्डका नाम रुचक है। नासिका, को, ग्रीवा तथा चक्षुकोषके चरकनै अस्थिकी संख्या ३६. लिखो है-उलखल अस्थिको तरुण कहते हैं। हस्त, पाद, पार्ख, पृष्ठ, अर्थात् दन्तमूलमें ३२, दन्तमें ३२, नखमें २०, 'उदर और वक्षःस्थानका अस्थि वलय है। फिर अव- शलाकामें २०, अङ्गलिमें ६०, पाणि में २, कूर्चके शिष्ट सकल अस्थि को संज्ञा नलकास्थि है (१) नीचे २, हस्तको मणिमें ४, पदके गुल्फमें , महर्षि सुश्रुतके लेखानुसार वेदन्न अस्थिको संख्या अरविमें ४, जामें ४, जानुमें २, कुहनीमें २, ३०६ बताते हैं। किन्तु शस्थतन्त्र के मतमें ३ जरमें २, बाहुमें २, कण्ठके नोचे २, सालुमें २, अखि होते हैं। यथा- नितम्बदेशमें २, योनि वा लिङमें १, विदेश में १, गुघदेशमें १, पृष्ठमें ३५, ग्रोवामें १५, जव में..२, (२) “कपालचकतरुणवखयनलकस'शानि। तेषां नानुनितम्बा- समलतालुमशिसु कपाखानि दशनास्त रुचकानि घावकरयौवाचिकोषेषु हनुमें १, हनुके मूलबन्धनमें २, ललाटमें २, चक्षुमें २, वरचानि । पाणिपादपार्यपृष्ठोदरीराम वलयानि शेषादि मसकस'शानि।" गण्डइयमें २, नासिकामें ३, उभय पाख के पच्चरमें (सबुक) ..... ... .. . चौबीसके हिसाबसे ४८, पनरको गोलाकार स्थाखि- Vol. III. 151 ३०२