पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६०९

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कचवांसो-कचिरौ कचवांसो (हिं. स्त्रो.) खेतको एक नाप। २०, कचार (हिं• पु०) तटस्थ जल, किनारका पानी। कचवांसोको एक बिस्खांसी होती है। कचारमें कीचड़ बहुत रहता और बबूला पड़ता है। कचवाट (हिं. स्त्री०) १ विराग, उचाट । २ इसपर नौका पा नहीं सकती। परहेज, चिढ़। कचाल (हिं. पु.) १ घुइया, बंडा। २ खाद्य- कचहरी (हिं. स्त्री०) १ न्यायालय, अदालत । विशेष, एक . चाट। उबाले हुये पाल काट नमक २ कार्यालय, कारखाना।३ दफ तर, आफिस । ४ राज- मिर्च मिलाकर खानेसे कचाल कहलाते हैं। अमरूद, सभा, दरबार। ५ गोष्ठी, यारोंकी महफिल, जमघट। ककड़ी, खीरा वगैरहके छोटे छोटे टुकड़े नमक- कचहस्त (सं० पु.) कचानां हस्तः समूहः, तत।मिचें और मसालेके साथ बनाकर खानेसे भी कचाल केशसमूह, बार्लोका गुच्छा। हो कहे जाते हैं। . कचा (सं० स्त्री०) कच्यते रुध्यते शृङ्खलादिभिरिति | कचावट (सं० स्त्री०) आमकी एक खटाई। कच्चे शेषः,कच-अच टाप ।१ हस्तिनी, हथिनी। २ शोभा, प्रामको कूटपीस अमावटकी भांति जमानेसे यह ख. बसूरती। ३ सन्धिच्युति, जोड़की छूट। ४ दण्ड, | तैयार होती है। सज़ा। ५ यष्टि, छड़ी। तृणविशेष, एक घास। | कचास, कचाई देखो। कचाई (हिं. स्त्री०)१ कच्चापन, न पकनेको हालत । कचिया (हिं. स्त्री०) हंसिया, काटनेका एक औजार। २ अनुभव-राहित्य, नातवे कारी। कचियाना (हिं. क्रि०) १ हताश होना, हिम्मत कचाकचि (सं० अव्य०) कचेषु कचेषु गृहीत्वा छोड़ना, हार मान जाना। २ भयभीत होना, ख़ौफ़- प्रवृत्तं युद्धम्, कचौहारे इच् पूर्वदोघंश्च। परस्पर खाना। ३ लज्जा मानना, शर्मिन्दा होना, सकुचना। केशाकर्षण पूर्वक युद्ध, लटामोटी। २ विवाद, झगड़ा। | कचिरी (हिं. स्त्री०) वृक्षविशेष, एक पेड़। (Arum कचाकु (सं.वि.) कच इव प्रकति वक्र गच्छति, fornicatum) यह कचुजातीय वृक्ष है। पुष्करिणौके . कच-अक्-उन् । १ दुःशील, बदमिजाज । २ असह्य, तोर कचिरी देख पड़ती है। नाकाबिल-बरदाशत। (पु.)३ सप, सांप। कचाचित (सं० त्रि.) कचैः पालुलायितकेशैराचित्य व्याप्तः, ३-तत्। १ असंस्कृत केश द्वारा व्याप्त, जिसमें उलझे बाल रहें। कचाटर (सं० पु०) कचवत् मेघ इव पटति शून्ये भ्रमति, कच-पट-उरच । पक्षिविशेष, एक चिडिया। इसका संस्कृत पर्याय शितिकण्ठ, दात्यह और काक- मह है। कचाना (हिं० क्रि०) कच्चे पड़ना, हार बैठना, हिम्मत खोना। कचामोद (सं.क्लो०) कचं प्रामोदयति सुगन्धि- करोति, कच:पा-मद-णिच -अन् । वाला नामक गन्धद्रव्य, बाली में लगानेको एक खु.शबूदार चौज। कचायंध ( हिं. स्त्री० ) कचाईका गन्ध, को- ___ कचिरी। . पनको । ..। यह वृक्ष वङ्गदेश और चट्टग्राममें उत्पन्न होता बचायन (हिं. स्त्री.) वकवाद, कहा-सुनी।..:- है। वन्त प्रकाशित रहता है। पत्र तलदेशके प्रायः