कचेरा-कच्चित् कचेरा (हिं. पु०) कांचका काम बनानेवाला। खाना' कहते हैं। २ अग्निमें न पका हुआ, जिसको कचेरुक (सं• पु०) कशेरु, एक पौदा।। अच्छी पांच लगो न हो। ३ अपरिपुष्ट, जो मजबूत कचेल (स.ली.) कच्यते वध्यते अनेन, कच न पड़ा हो। ४ अप्रस्तुत, जो तैयार न हो। ५ अ- एलच । लेख्यपत्र बांधनेका सूत्र, जिस डोरसे हाथको संस्कृत, साफ न किया हुआ। ६ अस्थायो, कमजोर। लिखी किताब बांधी जाये। ७ अयुक्त, सुबूत न रखनेवाला। ८ न्य न, कम। कचेहरी, कचहरी देखो। अपूर्ण, जो काट-छाटको जगह रखता हो। १०नियम- कचोना (हिं० क्रि०) कचसे चुभाना, धंसा देना। रहित, बेकायदा। ११ आई मृत्तिका-निर्मित, गोली कचोर (सं० पु०) कर्चर, कचर। मट्टोका बना हुआ। १२ अपटु, जो होशियार न कचोरा (सं० स्त्री०) १ शालिधान्यविशेष, किसो हो। १३ अनभ्यस्त, महावरा न रखनेवाला। (पु०) किस्मका चावल। यह पित्तको नाश करती है।। १४ धागा, डोभ, दूर-दूरको सोवन ! १५ खाका, ( अविस हितः) (हिं. पु०) २ कटोरा, प्याला। . ढांचा। १६ मसविदा। १७ जबडोंका जोड़, चौं। कचोरी (हिं. स्त्री०) कटोरी, प्याली। १८ दंष्ट्रा, दाढ़। १८ तावका एक छोटा सिक्का। कचोडी, कचौरी देखो। २०धला, प्राधा पैसा। २१ एक दिनके लिये एक कचौरी (हिं. स्त्री० ) पिष्टकविशेष, दाल-पूड़ी। रुपयेका सूद। न घोंटे हुये कागज़ तथा रजिष्टरी संस्कृतमें इसे पूरिका कहते हैं। भावप्रकाशके मतसे न की हुयी दस्तावेजको 'कच्चा कागज झठे सलमे- उड़दको भिगोकर पीसी हुई दाल में लवण, आद्रक सितारके - कामको 'कच्चा काम', खाज एवं गरमौको एवं हिङ्ग मिला और उसे पाटेके पेड़े बीच लगा 'कच्चा कोढ़', झठे गोटेको 'कच्चा गोटा', आवमें न पूड़ी की तरह बेल लेते हैं। फिर उपरोक्त द्रव्य वृत। पके हुये तथा सेवर घड़े को 'कच्चा घड़ा', सच्चे वृत्तान्त वा तैलमें अच्छौतरह तलनेसे कचौरी बनती है। को 'कच्चा चिट्ठा', पानीमें न बुझो कलोको 'कच्चा छोटी कचौरी दाल भरा पाटेका पड़ाही घी या तेलमें | चना', मूर्ख, हठी या पीछे पड़नेवाले पादमीको 'कच्चा पकानेसे तैयार हो जाती है। तेलको कचौरी मुख- जिन', रांगके जोड़को 'कच्चा जोड़', या 'कच्चा टांका', रोचक, मधुरस, गुरु, स्निग्ध, बलकारक, रक्तपित्त कते और न बटे तागेको, 'कच्चा तागा' या 'कच्चा जनक, पाकमें उष्ण और वायु तथा चक्षुके तेजको धागा', नोलबरीको 'कच्चा नील' (कोठीमें मथने पोछे नाश करनेवाली है। किन्तु अनेक मनुष्य इसे खाकर गोंद मिला हौज़में नील छाड़ते हैं। नौल नीचे बैठ बीमार पड जाते हैं। घृतपक्क कचौरी चक्षुके लिये जानवर पानीको हौजके छेदसे निकाल देते हैं। फिर हितकारक, रक्तपित्तनाशक और तेलपक्ककी भांति नौलका जमा हुमा माठ या कोचड़ कपड़ेमें बांध . अन्यान्य गुणविशिष्ट है। नोचेके गड्ढे में रातभर लटकाया जाता है। सवेरे कच्चट (स.ली.) कु कुत्सितं चटति, कु-टच्-अच। उसे राखपर फैल पमें सुखानेसे कच्चा-नील बनता बाहुलकात् कोः कदादेशः। जलपिप्पली, पानीको है।) न चलनेवाले पैसेको 'कच्चा पैसा', रेशमके पोपल। न बटे डोरे या कलप न किये हुये रेशमी कपड़ेको कच्चर (सं० वि०) कु कुत्सितं चरति, कु-चर-अच् 'कच्चा बाना', झूठे गोटे-पट्टे को 'कच्चा माल', धुंधला कोः कदादेशः। १ मलिन, मैला। २ कुत्सित, देख पड़नेको 'कच्चा मोतियाबिंद', उबालो नोनी खराब। (लो) केन जलेन चर्यते व्यवहयते। मट्टोके खारे पानी में जमनेवालेको 'कच्चा शोरा' और ३ तक्र, मठा। ४ दुहत, बदमाश। काममें अच्छी तरह न चलनेवालेको 'कच्चा हाथ कच्चा (हिं. वि.) १ अपक्क, जो पका न हो । गर्भ | कहते हैं। पात होनेको 'कच्चा जाना' और मार बैठनेको 'कच्चा | कञ्चित् (सं० प्रव्य ०.) काम्यते, कम्-विच्, चौयते
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६११
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