पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६१६

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कच्छक-कच्छप बहुतोंने इसलामधर्म ग्रहण किया है। किन्तु पुरु-कच्छकाण्डन (सं० पु.) पश्वस्थ वृषमेद, पीपल- षानुक्रमसे जो उपाधि चला पाया, उसे किसीने नहीं का एक पेड़। गंवाया। ६१४ पृष्ठमें जाड़े जा-राजवंशावली देखो। कच्छटिका (सं० स्त्री.) कच्छ कच्छवलं अटति कच्छ प्रदेशमें काठी, अहौर और जाडेजा वंशको। प्राप्नोति, कच्छ-अट-अच संवायां कन् प्रत इत्वञ्च । छोड निम्नलिखित जातियां भी रहती हैं-कोली, कच्छ, लांग, कांछा। इसका संस्कृत पर्याय कच्छ, मौना, चावड़ा, बधेला राजपूत, भंसाली, लोहना या कक्षा, कच्छा, कच्छाटिका और कच्छटिका है। 'लवाना, संहार, भाटिया, बारड़, भबिया, छगर, दल, कच्छदेश (सं० पु.) देशविशेष। कह देखो। झाला, खांडागरा, मायड़ा,कनडे, पशाया, पहा, मोक- कच्छनाग-एक नागा जाति। यह लोग नागा पर्वतमें लसी, मोका, रेलडिया, बरंगसी और बरारी राजपत। रहते हैं। नागा देखो। ब्राह्मणों में श्रौदीच, सारस्वत, पुकरना, नागर, सचारा, कच्छप (सं० पु.) कच्छे अनपदेशे आत्मानं पाति श्रीमालो, गिरनाडा, मोड़ और राजगुरु अधिक हैं। रक्षति, कच्छ पात्मानो मुखसम्पटं पातीति वा, कच्छ- मिथी, कंदोई, मौनी, सुराठिया, मूढ़ और बाइड़ा पा ड। कूर्म, संगपुश्त, कछुवा। इसका संस्कृत नामक वैष्णवसम्य दाय मिलते हैं। चारण तीन पोय कूम, कमठ, गूढाङ्ग, धरणीधर, कच्छेष्ट, प्रकारके हैं-कच्छ ला, मरुना और तु बेल । - वल्कलावास, कठिनपृष्ठक, पञ्चसुप्त, क्रोडाङ्ग, पञ्चनखु, कछुके अनेक ब्राह्मण और राजपूत मुसलमान गुन्छ, पोवर और जलगुल्म है। वेदमें कच्छपको हो गये हैं। उनमें नाना थेणियां चलती हैं। यथा- प्रकूपार कहते हैं। निरुतकार यास्कने लिखा है- मेहमन, बोहरा, आगरिया, आगा, भाण्डारी, भट्टि, कच्छ यो ऽपामार उच्यते ऽपारो न कूपमछजाति। कछः कई दराड़, मंगरिया, वटार,पड़ियार, फल, राजड़ा,रायमा : याति कच्छ न पातोति वा कच्छ न पिवतोति वा! कछः खच्छः खच्छदः । सेड़ात, बहन, हालीपुत्रा, नारंगपुत्रा, नोड़, हिंगोरा : अयमपीतरी नदीकच्छ एतस्मादेव कसुदकं तेन काद्यते।” (निरुक ४१८) और हिंगोराजा। अंगरेजी में स्थल कच्छपको टोटौँइम ( Tortoise) आजकल कच्छप्रदेश अंगरेजोंके अधिकारमें है।। और समुद्र कच्छपको टटल (Turtle) कहते हैं। भूतत्त्व-यह प्रदेश गिरि एवं शैलमय है। केवल इसका युरोपीय वैज्ञानिक नाम चित्तोनिया (Chelo- दक्षिण भागपर सागरप्रान्तमें उर्वरा भूमि पड़ी है। nia) है। यहांका एक-एक गिरि स्वतन्त्र है। उनमें कोई । पृथिवीके नाना देगों में अनेक प्रकारके कछा होते पूर्वाभिमुख और कोई पश्चिमाभिमुख चला है। रण हैं। अरिष्टटलने ग्रीक भाषामें तोन प्रकारके कच्छा किनारे कितनी हो दुर्गम गिरिमाला खड़ी हैं। इन कहे हैं। यथा-स्थल कच्छप, जलकच्छप और समुद्र- पर्वतमि बिल्लोरी पत्थर, कोयलेका स्तर, स्नेटको मट्ठी, कच्छप। फिर युरोपीय प्राणितत्त्वविदोंने कच्छप- स्टेट और चना प्रादि द्रव्य मिलते हैं। जातिको पांच श्रेणियों में बांटा है। यथा-स्थल- कच्छके दक्षिण भागमें भी पर्वत हैं। यह पर्वत कच्छप ( Testudo), जलकच्छप (Emys), कठिन आग्नयगिरिके उपादानसे गठित हैं। आवरणयुक्त कच्छप (Chelydos), समुद्र कच्छप इस प्रदेशमें नदी बिलकुल नहीं। नदीके बदले (Chelonia) और कोमन्न कच्छप ( Trionyx )। नाले बहते हैं। वर्षाकालको चारो मोर जलमय फान्सीसी प्राणितत्त्ववित् दुमेरीने कच्छ को इन होनेपर नालोंसे जल निकल समुद्र में जा गिरता है। कई भागों में विभक्त किया है; यथा-चारसिधान कच्छक (सं० पु०) कच्छ संज्ञायां कन्। तुबक (Chersites ) वा स्थलकच्छय, इलोदियान (Elo- | dites ) वा बिलकच्छप, पोटेमियान (Potamites ) द्रुम, तुनका पेड़।