कटहल-कटाच ६३५ वल्कलसे अत्यन्त श्यामवर्ण निर्यास निकलता, बनते हैं। उक्त द्रव्य उबालने और टपकानेसे कर्कश जिसका भेद तिन्टुलिप्त रहता और जलमें घुल सकता गन्ध एवं अद्भत खादविशिष्ट मद्यसारका पेय प्राप्त है। रस मूल्यवान् लेप और लासे की भांति व्यवहत होता है। वोजको भूनकर खाते हैं। वह पीसनेसे होता है। उससे लचीला, चमड़े-जैसा पानो रोकने सिंघाड़ेके पाटे-जैमा निकलता है। कच्चे फलको तर- वाला और पेंसिलके चि मिटाने योग्य रबड़ बन कारी बनती है। सकता है। किन्तु अधिक रबड़ नहीं निकलता। ___ भीतरो काष्ठ पोत अथवा पीतप्रभ धूसरवणं, ____ कटहलका काष्ठ वा चणे उबालनेसे पौला रंग निविड़, समकणविशिष्ट एवं ईषत् कठोर रहता, प्रद- तैयार होता है। उससे ब्रह्मदेशवासो साधुवोंके वस्त्र शैनसे तिमिराकृत लगता, सम्यक परिणत पड़ता और रंगे जाते हैं। कटहलके रंगकी मांग मन्द्राज, भारत- सूक्ष्म परिष्कारको पहुंचता है। दारुकर्म में वह अधिक के अन्य प्रान्त और जावासे भी आया करती है। वह व्यवद्धत होता है। कटहलके काष्ठको मञ्जषा और फिटकरी डालनसे पक्का और हलदो छोड़ने से गहरा सज्जा बननी है। कक्षान्तर-कार्य और माजेनौ-पृष्ठके पड़ जाता है। नोल मिलानेसे कटहल का रंग हरा लिये उसे युराप भेजते हैं। छौडाको मूर्तियोंपर प्रायः निकलता है। उसे रेशम रंगने में प्रायः व्यवहार कटहल देखने में पाता है। कारण वह इस वृक्षको करते हैं। बङ्गालमें फल और काठ दोनोंसे रंग बनता पवित्र समझते हैं। है। अवध वल्कल और सुमात्रामें कटहलके मूलसे कटहा (हिं० वि०) काट खानेवाला, जो दांतसे रंग निकालते हैं। बल्कलमें तन्तु होता है। कुमायू- चबा डालता हो। (स्त्रो०) कटहो। में तन्तुसे रन्ज बनती है। | कटा (सं० स्त्रो० ) १ कटकी, कुटकी। (हिं. स्त्री.) वृक्षका रस मांसके शोथ पार स्फोटपर सपूयत्वको २ वध, कृत्त, मारकाट। (वि०) ३ विच्छिव, वृद्धिके लिये लगाया जाता है। नवीन पत्र, चर्मरोग टाफटा, जो कट गया हो। और मूल अजीर्णपर चलता है। वीजमें जो मण्डवत् कटाई (हिं० स्त्रो०) १ छेद, प्रहार, काटनेका द्रव्य रहता, वह उसको सुखाने और कुटान-पिटानसे काम। २ अन्नच्छद, अनाजका काटा जाना। पृथक् हो सकता है। अपक्व फल स्तम्भक और पक्क ३ छेदका पारिश्रमिक, काटने को उजरत या मज़- फल सारक पड़ता, किन्तु अत्यन्त पौष्टिक होते भी दूरी। ४ भटकटैया। कुछ कठिनतासे पचता है। कटाऊ (हिं० वि०) काट-छांट किया हुआ, जो ___ कटहलके वृहत् फलको फलका सार समझना | काटा गया हो। चाहिये। क्योंकि अनवासको भांति पुष्पसमूहसे उत्- कटाकट (हिं० पु० ) कटकटका शब्द, एक तरह- पन्न होनेवाले फलों का वह रायीकरण है। विभिन्न को पावाज। फल प्रायः संस्तर कहलाते हैं। प्रत्येक फलमें एक वौज कटाकटो (हिं० स्त्रो०) बध, कत्ल, मारकाट । पड़ता, जो ककेश गन्धवाले सुखाटु जालके मांसल कटाकु (सं० पु०) कटति कृच्छ्रेण जीविका निर्वाह- पिण्डसे आहत रहता है। ऊपरका कठोर वल्कल यति, कट-काकु । कटिकषिभ्यां काकुः । उच्च, २०७। पची, .. फेंक दिया जाता है। वौजको चारो ओर जो मांसल | चिड़िया। पिण्ड जमता, वह भारतवासियोंके भोजनमें चलता कटाक्ष (सं० पु.) कटौ अतिशयितौ पक्षिणी यव. है। युरोपीय कटहलको. बहुधा नहीं खाते। फल कटि-अधि-पच्। बद्रोहो सष्यच्योः खाङ्गात् पच् । पा शा११३ । साधारणत: १२से १८ इञ्चतक लंबा और इसे ८ इञ्च १ अपाङ्ग दर्शन, नज़ारा। २ अपरके ,दोषका दर्शन, तक चौडा होता है। प्रत्येक फलमें ५०से ८०तक दूसरेके ऐबका इजहार । कोये निकलते, जो मृदु, सरस एवं सुमिष्ट द्रव्यसे' "इतालं उपजीव्या मान्यानां व्याख्यानेछु कटाचनिचे पेव ।" (साहित्यद०)
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६३६
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