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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६३८

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कटाहक-कटिया १३० कटाहक (सं० लो०) कटाइ स्वार्थे कन्। भाजन,' कटिकूप (सलो . ) कटिदेशस्वं कपम्, मध्यपद- पान, वर्तन, कड़ाह। लो। ककुन्दर, मुल्ब, चतड़का गड्डा। कटाय (सं० क्लो०) पद्मकन्द, कमलगट्टा। | कटिजेब (हिं. स्त्री०) करधनी, कमरको खबसूरती कटि (सं० पु०-स्त्री.) कव्यते वस्त्रादिना सुध्रियतेऽसौ, बढ़ानवाला जे.वर। कट-हन्। १ शरीरका मध्यदेश, कमर। इसका कटितट (सं• क्लो०) कटिरेव तट स्थानम् । १ कटि- संस्कृत पर्याय-कट, श्रोविफलक, श्रोणी, ककुयती, देश, कमर। २ नितम्ब, चतड़। श्रोणिफल, कटी, थोणि, कलव, कटोर, काचीपद, कटिव (सं. ली.) कटिं वायते, कटि-वे-क। और करभ है। सुश्रुतके मतसे कटिदेशमें पांच अस्थि १ परिधेय वस्त्र, धोती। २ चन्द्रहार। ३ कटिवर्म, रहते हैं। उनसे गुध, योनि एवं नितम्बदेशमें चार कमरका बखू तर । ४ चक्रात । ५ कमरबंद । और त्रिक स्थानमें एक अस्थि पाता है। पस्थि- करधनी। सहातक एक है। अखिको सन्धियां तीन बैठती हैं। "मचालगौर शितिवासस' स्फुरत् । उनका नाम तुब्रसेवनौ है। सायु साठ होती हैं। विरोटकेरकटिवकायम्:" (भागवत ६ १३.) दोनों नितम्बों में पांच-पांचके हिसाबसे दश पेशी हैं। कटिदेश (संलो०) कटिनामक देश अवयवम. कटिदेशस्थ मम अखिमम कहाता है। उसका नाम मध्यपदलो। योगी, कमर। कटोक है। तरुण अस्थिके पृष्ठवंश अर्थात् मेरुदण्डके कटिन् (सं.वि.) कटोऽस्त्वस्थ, कट-इनि। बुवक- उभय पाव पर पनतिनिय कुकुन्दर नामक दो मर्म ठजिल इत्यादि । पा ॥रा० । कटियुक्त, जिसके कमर रहे। पड़ते हैं। उनसे किसी प्रकार शोणित बहनेपर स्पर्श- कटिमोथ (सं० पु०) कव्याः प्रोधः मांसपिण्डः। ज्ञान और शरीरको चेष्टा दोनोंका नाश होता है। नितम्ब, चतड़। इसका संस्कृत पर्याय-स्मिक, पूलक, नितम्बके ऊपरिभागपर पार्खान्तरसे प्रतिबद्ध नितम्ब ! कटीप्रोध, कटि, प्रोथ और पूल है। नामक ममैहय हैं। उनसे शोणित गिरनेपर प्रधः- कटिबद्ध (सं० वि०) तत्पर, तैयार, कमर बांध काय शुष्क एवं दुर्बल पड़ता और मृत्व पर्यन्त पा हुा। पहुंचता है। कटिदेशके अभ्यन्तरस्थ मांस और कटिबन्ध (सं० पु०) १ कमरबंद । २ पृथ्वीका भाग- रक्तविशिष्ट भाशयका नाम मूत्राशय वा वस्ति है। विशेष, मिनतका, जमीनका एक हिस्सा। यह भौत- अश्मरी रोग व्यतीत अन्य कारणसे उसको दोनों ओर लता भार उष्णाताके अनुसार निर्धारित होता है। विध होनेपर सद्यः मृत्य पाता है। एक पाखभेद विहानोंने पूधिवौको पांच कटिबन्धों में बांटा है। . करनसे मूवसावी व्रण उत्पन्न होता है। वह भी कटिभूषण (सं० लो०) कटेभूषणम्, ६-तत् । कटि- कष्टसाध्य है। कटिदेशमें आठ शिरायें हैं। उनसे देशका अलङ्कार, कमरका गहना। क्टिपस्थल और कटिकतरण में चार-चार रहती हैं। कटिमालिका (स. स्त्री०) कटी मालेव, कटिमाल- २हस्तीका गण्डस्थल, हाथोकी कनपटी। देवा- कन् इत्वम्। चन्द्रहार, औरतका कमरबंद। सयका हार, मन्दिरका दरवाजा। ४ कलन, बीवो। कटिया (हिं॰ स्त्री.) १ हक्काक, नग बनानवाला। ५ काञ्ची, घची। ६ कटोर, कूला। यह नग काट छांट कर सुधारता है। २ पशुखाद्य- कटिका (सं० स्त्री०) प्रशस्ता कटिरस्थाः, कटि- विशेष, चौपायोंका एक चारा। यह ज्वार मकई कन्-टाप । १ अतिसुन्दर कटिदेशयुक्ता स्त्री, जिस पादिके वृक्ष गडांससे टुकड़े-टुकड़े कर बनायो जाता पौरतके पतली कमर रहे। २ कटोर, कूला। है। कटिया पहुंटेवर कटती है। अलङ्कारविशेष, कटिकुष्ठ (सं• को०) श्रोणीका कुष्ठरोग, कमर- एक जे.वर। इसे स्त्रियां मस्तकपर धारण करती हैं। का कोढ़। कंटिया, मछलो पकड़नेका एक छोटा काटा। ___Vol. IIL. 160