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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६७५

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498 कताना-कचय कताना (हिं.क्रि.) कतबाना, कातनेका किसी। स्त्रियोंको खिलाते हैं। कहते, कतीरा अधिक सेवन दूसरेसे निकलाना। | करनेसे पुरुष नपुंसक बन जाता है। कुतार (अ० स्त्रा.)१ पंक्ति, पांति, लैन। २ समूह, कतेक, कतिक देखो। ढेर। | कतहार-रोहेलखण्डके पूर्वीशका प्राचीन नाम। कतारा (हिं. पु.) १ इक्षुभेद, किसो किस्मको जख। कत्तर (हिं० पु.) गुणभेद, किसी किस्मका डोरा। कतारा लाल और लम्बा होता है। इसका वल्कल, इससे स्त्रियां अपनी चोटी बांधती हैं। स्थूल और सार मृटु रहता है। कतारके रसको कत्तल (हिं० पु.) १ कतरा, टुकड़ा । २ प्रस्तरखण्ड- गाढ़ा कर गुड़ बनाते हैं। २ इमलीका फल । विशेष, पत्थरका एक टुकड़ा। यह गढ़ाईसे निकल कतारी (हिं. स्त्री०) १ कृतार, पंक्ति । २ छोटा पड़ता है। कतारा। कत्ता हिं. पु.) १ अस्त्रविशेष, बांका। इससे बांस कति (स त्रि०) का संख्या परिमाणं येषाम्, किम् वगैरह काटा या चौरा जाता है। २ प्रसिभेद, डति। किम: संख्यापरिमाणे डति च । पा ५॥२॥४१ । १ कौन किसी किस्मकी तलवार। यह छोटा और टेढ़ा संख्या रखनेवाला, कितना। २ कौन। ३ कितना। होता है। ३ पासा।। ४ बहुतसा। (पु.) ५ विश्वामित्रके एकतम पुत्र। कत्ताशब्द (सं० पु०) पासोंको खड़खड़ाहट। यह एक ऋषि और कात्यायनके पूर्वपुरुष रहे। . कत्ती (हिं. स्त्री०) १ छुरिका, चाकू, कुरी। २ छोटा कतिक (हिं.वि.) कितना, किस परिमाणवाला। कत्ता, किसी किस्म की तलवार । ३ कटारी। किसी २अल्प, थोड़ा। ३ अधिक, ज्यादा। किस्पको कैची। इसे सोनार व्यवहार करते हैं। कतिचित् (सं० अव्य.) कितना, किस कदर। ५ किसी प्रकारको पगड़ी। इसे बत्तीकी तरह बटकर कतिथ (सं० वि०) कति पूरण डट थक् च। बांधते हैं। षट्कतिकतिपयचतुरां थु क्। पा ५१५१। कहांतक, किस | कत्तण (सं० क्लो०) कु कुत्सितं तृणम्, कोः कदादेशः । दरजेतक पहुंचा हुआ। तणे च जाती। पा ६२१०३ । १ सुगन्धि तणविशेष, सोंधिया, कतिधा (स'. अव्य०) कति विधार्थ धा। १ कहां कहां, एक खुशबूदार घास। इसका संस्कृतपर्याय-पौर, कितनी जगह। २ कितने अंशोंमें। ३ कब कब।। सौगन्धिक, ध्याम, देवजगधक, रोहिष, सुगन्ध, ढण- कतिपयं (सं० त्रि.) कति-श्रयक पुक् च । १ कुछ, शीत, सुशोतल, रोहिषण, काण, भूति, भूतिक, कितना हो, थोड़ासा। २ इतना। श्यामक, ध्यामक, पूति, मुदगल और देवगन्धक है। कतिविध (सं• त्रि०) कतिः विधा प्रकारोऽस्य, बहुव्रो । भावप्रकाशके मलसे कत्तृण कटुपाक, तिल एवं कषाय- कितने प्रकारका, कैसा कैसा। रस और हृद्रोग, कण्ठरोग, पित्त, रक्त, शूल, कास कतिशः (सं• अव्य०) कति वौसाथै शस्। संख्यै क तथा ज्वरनाशक है। राजनिघण्टु इसे कट एवं वचनाच्च वीमायाम् । पा 48। कितना कितना। तिक्तरस और कफदोष, शस्त्र वा "शल्यदोष तथा कतीमुष (सं०लो.) किसी अग्रहारका नाम । बालकोंके ग्रहदोषका निवारक बताता है। २ पृश्चिपर्णी, कतीरा (हिं. पु.) निर्यासविशेष, एक प्रकारका जलकुम्भी। गोंद। यह खेत निर्यास गूल वृक्षसे उत्पन्न होता है। कत्तोय (सं० स्त्रो०) कु कुत्सितं तोयं यत्र, बहुव्री। जलमें कतीरा नहीं घुलता। यह शीतल एवं रुक्ष | १मद्य, शराब। २ मैरेय, धातकीपुष्य, गुड़, धान्य रहता और रक्तविकार तथा धातविकार पर चलता और अम्लके सन्धानसे प्रस्तुत मद्य, किसी किस्मको है। पावविशेषमें बन्द कर रखनेसे कसोरा सिरकेकी शराब। सरह महकने लगता है। प्रसूतिके अनन्तर इसे कत्रय (सं• पु०) कुत्सिताश्रयः। तीन कुत्सित ,