"उसमें कुछ कुछ पोतत्व झलकता है। उससे कछार। पुनः पुनः पान करने लगे। उस वारिपानसे बलराम और दारजिलिङ्गमें चायके सन्दूक बनते हैं। कदम्बसे। मत्त हो गये। शरीर विचलित पड़ा था। उनका कड़ियों और बरंगोंका भी काम निकलता है। शारदीय मुखशयो ईषत् चच्चस लोचन से घूमने लगा। कारण इसका काष्ठ सुलभ और लघु रहता है। उस अमृतवत् देवानन्द-विधायिनी वारुयोका नाम फिर कदम्बके काष्ठसे नौका और नानाविध उप कदम्बके कोटरमें उत्पन्न होनेसे हो कादम्बरो पड़ा है। योगी वस्तु बनाते हैं। "कदम्बकोटरे नाता नाचा कादम्बरोति सा। (हरिवंश प) भावप्रकाशके मतसे यह मधुर, कषाय एवं लवण- २सर्षपवृक्ष, सरसोंका पेड़। ३ देवताड़वच। रस, गुरु, विरेचक, विष्टम्भकारी, रुक्ष और कफ, | ४ माक्षिक, शहद। ५ जगत्, दुनिया । स्तन्य तथा वायुवर्धक है। “म एव सौम्य नित्य राजते मूले विश्वकदम्बम्य परमो वे पुरुष पात्मा" नौप, महाकदम्ब, धारा कदम्ब, धलिकदम्ब, कद- (अति) बक प्रभृति कदम्बके विविध भेद हैं। (क्लो०) ६ समूह, मुण्ड । कदम्ब फल श्रीकृष्णको बहुत प्रिय है। इसीसे कदम्ब (कादम्ब)-दाक्षिणात्य को एक प्राचीन पराकान्त झलने में कदम्बके पुष्प व्यवहृत होते हैं। कदम्बके जाति । किमो समय इस जातिके लोग दधिर- वृक्षसे एक प्रकारका मद्य निकलता, जिसका नाम भारतमें अतिशय प्रबल हो गये थे। उस समय तापी कादम्बरी पड़ता है। नदोके दक्षिणसे गोपराष्ट्र (गोपा) पर्यन्त सकल देव विष्णुपुराणमें लिखा है-बलरामको गोपगोपि कदम्ब राजावोंके अधिकारमें रहा। योंके साथ घूमते देख वरुणने वारुणी (शराब )से दाक्षिणात्य का इतिहास और शिलालेख पढ़नेसे कहा था-हे मदिरे ! तुम जिनके अभिलाषका पात्र कदम्बोंका कितना हो वृत्तान्त ज्ञात होता है। किन्तु हो, उन्हों अनन्तदेवके उपभोगार्थ गमन करो। इस बातका प्राज भो कोई ठिकाना न हों-कदम्ब वरुणको बात सुन वारुणो वृन्दावनोत्पन्न कदम्ब दक्षिण भारतके आदिम निवासी हैं या न हों, प्राय वृक्षक कोटरमें श्रा पहुचौं। बलरामको घर हैं अथवा अनार्य और किस सम्पदायका मानते हैं। उत्तम मदिराका गन्ध मिला था। इससे उनका किसी-किसी जातितत्वविद्के मतसे यह दाक्षिणात्यके पूर्वानुराग जाग उठा। कदम्ब वृक्षसे विगलित मद्य | पादिमनिवासी हैं। वर्तमान कुडम्बांके नामसे इनका देख वह परम पानन्दित हुये थे। फिर गोपगोपियोंने । बड़ा संस्रव लगा है। किन्तु विवेचना करनेसे कुड़म्ब गान करना प्रारम्भ किया। बलरामने उनके साथ खतन्त्र 'अनार्य जातिके लोग समझ पड़ते हैं। साथ मदिरा पौ। इसका कुछ भो निदशन वा प्रमाणादि नहीं मिलता- कादम्बरी मद्यको उत्पत्तिके सम्बन्धपर हरिवंशमें पराक्रान्त कदम्बोंके साथ उनका काई संघव लगता इस प्रकार लिखा है-किसो दिन बलराम एकाको है। फिर कदम्बाको उत्तर भारतके प्राचीन पार्यो को शैलशिखरपर घूमते-घूमते एक प्रफुल्ल कदम्बतरको शाखा भी कह नहीं सकते। किन्तु किसी समय छायामें बैठ गये। फिर अकस्मात् मदगन्धयुक्त वायु सत्यताके बल इन लोगोंका आर्यों में समान प्रासन चलने लगा। वायुवश मदगन्ध उनके नासाविवरमें अधिकार करना सच है। प्रविष्ट होते ही रातको मद्यपान करनेसे प्रभातके कदम्ब जातिके सकल पूर्वपुरुष शैव रहे, वह समय मुख सूखनेको भांति मदपिपासाका वेग बढा। अपर देवताका प्राधान्य मानते न थे। इसीसे वह कदम्ब वृक्षको ओर देखने लगे। वर्षाका जल पुराणकारोंने कदम्बोंको पसुर कहा है। उस प्रफुल्ल कदम्बके कोटरमें पड़ मद्य बन गया स्कन्दपुराणके तापोखहमें किसी कदम्ब राजाका था। बलराम अत्यन्त तृष्णाकुल हो वह मदवारि ' पसुर नामसे उल्लेख है। उन असुर-राजका विवरण
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