पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७

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इक्षुक-इक्षुपत्र


और रक्तदोष उपजता है। कच्चा इक्षु खानेसे कफ, मांससार और भेद बढ़ता है। युवा वातहारक, स्वादु, ईषत् तीक्ष्ण और पित्तनाशक है। पक्का रक्त तथा पित्तको दूर करता, क्षत मिटाता और वीर्य उपजाता है। साधारण इक्षु उत्कृष्ट रसायनकारी, बलकर, रोगनाशक, स्निग्ध, तृप्तिजनक, स्थूलतासम्पादक, शक्ति-जनक, आयुष्कर और श्लेष्माकर है। अत्यन्त स्वादु होनेसे यह वात और पित्तको नष्ट करता, किन्तु शक्तिजनक रहते भी अन्तर्विदाह उपजाता है। काला इक्षु शोषापहारक और शोफ तथा व्रणजनक है।
इक्षुविकार अर्थात् ऊखके रससे बनी चीज़को लसीका, फाणित, गुड़, खण्ड, मत्स्याण्डी और सिता कहते हैं। यह द्रव्य निर्मल होनसे लघु, शीतल और वीर्यकर होता है। पक्व और गाढ़ रसका नाम फाणित है। यह धातुवर्धक, वातपित्त एवं भ्रमनाशक और मूत्र तथा वस्तिशोधक होता है। मत्स्याण्डी गाढ़ और पित्त तथा वातनाशक, धातुवर्धक, पुष्टिकर और रक्त-दोषनाशक है। गुड़, खण्ड, फाणित प्रभृति शब्द द्रष्टव्य है।
२ कोकिलाक्ष वृक्ष, तालमखानेका पेड़। ३ नदी विशेष। मत्स्यपुराणमें दो इक्षु नदीका नाम मिलता है। एक जम्बूद्दीप और अपर शाकद्वीपमें बतायी गयी है। जम्बूद्दीपको इक्षुनदी अक्षस (Oxus) और ऋग्वेदमें 'अक्षु' नामसे प्रसिद्ध है। आर्यावर्त देखो।
इक्षुक (सं॰ पु॰) इक्षु प्रकारार्थे कन्। स्थूलादिभ्यः प्रकारवचने कन्। पा ५।४।३। १ एक प्रकार इक्षु, किसी क़िस्मकी ऊख। २ इक्षुगन्धा, कुस, कांस। ३ भूमिकुष्माण्ड, बिलायीकन्द। ४ काकोली।
इक्षुकण्डिका (सं० स्त्री०) १ इक्षुकाण्ड, मूंज, कांस। २ काकोली। ३ भूमिकुष्माण्ड, बिलायीकन्द।
इक्षुकन्दा (सं॰ स्त्री०) श्वेतभूमिकुष्माण्ड, सफ़ेद बिलायीकन्द।
इक्षुकाण्ड (सं॰ पु०) ईक्षोः वृक्षस्य काण्डः दण्ड इव काण्डो यस्य, बहुव्री॰। १ काशवृक्ष, कुस, कांस। २ मुञ्जा, मूंज। इक्षुः काण्डइव । ३ इक्षुदण्ड, पौंड़ेका डण्ठल।


इक्षुकाश (सं॰ पु॰) काशतृण, कांस, कुस।
इक्षुकीय (सं॰ त्रि॰) इक्षुयुक्त, ऊखसे भरा हुवा।
इक्षुकीया (सं॰ स्त्री॰) इक्षुयुक्त देश, ऊखसे भरी ज़मीन, जिस जगहपे पौंड़ा ज़्यादा उपजे।
इक्षुकुट्टक (सं॰ पु॰) इक्षुन् कुट्टयति, इक्षु-कुट्ट-क्वुन् ६-तत्। १ इक्षुसंग्राहक, ऊख काटने का हंसला।
इक्षुगण्डिका (सं॰ स्त्री॰) काशतृण, कांस।
इक्षुगन्ध (सं॰ पु॰) इक्षोः गन्धइव गन्धो यस्य, बहुव्री॰। १ काशतृण, कांस। २ क्षुद्र गोक्षुरक वृक्ष, छोटा गोखरू।
इक्षुगन्धा (सं॰ स्त्री॰) इक्षु-गन्ध-टाप्। १ कोकिलाक्ष, तालमखाना। २ गोक्षुरक, छोटा गोखरू। ३ क्षीरविदारी, सफ़ेद बिलायीकन्द। ४ वाराहीकन्द, रामशर। ५ शृंगाली, मादा गीदड़। ६ श्वेत भूमिकुष्माण्ड, सफ़ेद भुयिंकुम्हड़ा।
इक्षुगन्धिका, इक्षुगन्धा देखो।
इक्षुज (सं॰ त्रि॰) इक्षु-जन-ड। इक्षुसे उत्पन्न, गन्ने से निकला हुवा। यह शब्द फाणित, मत्स्याण्डी, खण्डक, सिता और सितोपलका विशेषण है।
इक्षुजटा (सं॰ स्त्री॰) इक्षुमूल, ऊख की जड़।
इक्षुतुल्या (सं॰ स्त्री॰) इक्षोः इक्षुणा वा तुल्या। १ इक्षुविशेष, एक ऊख। २ काशतृण, कांस। ३ यावनाल, ज्वार।
इक्षुदण्ड (सं॰ पु॰) इक्षुः दण्डइव, उप॰ कर्मधा॰। ऊख, सांटा।
इक्षुदर्भी (सं॰ स्त्री॰) इक्षोरिव दर्भो गन्धो यस्याः, बहुव्री॰। तृणविशेष, किसी किस्मकी घास। यह सुमधुर, शीतल, अल्प कषाय, कफपित्तहारक, रुचिकर, लघुपाक और तृप्तिजनक होती है। (राजनिघण्टु)
इक्षुदा (सं॰ स्त्री॰) इक्षुं तदास्वादं ददातीति, इक्षु-दा-क। नदीविशेष, एक दरया (Oxus)। यह इन्द्रपर्वतसे निकली है।
इक्षुनेत्र (सं॰ क्ली॰) इक्षोनेत्रमिव, ६-तत्। इक्षुग्रन्थि, ऊखकी गांठ।
इक्षुपत्र (सं॰ पु॰) इक्षोः पत्रमिव पत्रं यस्य, बहुव्री॰। यावनाल, ज्वार।