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की सब दूकान को अपने घर ले जाया चाहते हैं।” (परी० ) । (आ) एक ही व्यक्ति के विषय में आदर प्रकट करने के लिए; जैसे, "वे ( कालिदास ) असामान्य वैयाकरण थे ।” ( रघु० ) । क्या अच्छा होता जो वह इस काम को कर जाते ।” (रत्ना०)। “जो बाते मुनि के पीछे हुई सो उनसे किसने कह दी ?” (शकु०) ।

[सूचना-~-ऐतिहासिक पुरुषों प्रति आदर प्रकट करने के संबंध में हिंदी मैं बड़ी गड़बड़ है । श्रीधरभाषा-कोश में कई कवियों के संक्षिप्त चरित दिये गये हैं। उनमें कबीर के लिए एकवचन का और शेष के लिए बहुवचन का प्रयोग किया गया है। राजा शिवप्रसाद ने इतिहास-तिमिरनाशक मैं राम, शंकराचार्य और टॉड साहब के लिए बहुवचन का प्रयोग किया है और बुद्ध, अकबर, धृत-राष्ट्र और युधिष्ठिर के लिए एकवचन लिखा है। इन उदाहरणों से कोई निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता । तथापि यह बात जान पडती है कि आदर के लिए पात्र की जाति, गुण, पद और शील का विचार अवश्य किया जाता है । ऐतिहासिक पुरुर्षों के प्रति आजकल पहले की अपेक्षा अधिक आदर, दिखाया जाता है; और यह आदर-बुद्धि विदेशी ऐतिहासिक पुरुषों के लिए भी कई अंशों में पाई जाती है । आदर का प्रश्न छोड़कर, मृत ऐतिहासिक पुरुषों के लिए एकवचन ही का प्रयोग करना चाहिये । ]

११३-आप ( 'तुम' वा 'वे' के बदले )---मध्यम वा अन्य-पुरुष ( बहुवचन )।

यह पुरुपवाचक “आप” प्रयोग में निजवाचक “आप” (अं०-- १२५) से भिन्न है। इसका प्रयोग मध्यम और अन्यपुरुष बहुवचन में आदर के लिए होता है । प्राचीन कविता में आदरसूचक “आप” का प्रयोग बहुधा नहीं पाया जाता ।

(अ) अपने से बड़े दरजेवाले मनुष्य के लिए "तुम" के बदले “आप” का प्रयोग शिष्ट और आवश्यक समझा जाता है, जैसे, “स०- ___________________________________________

  • संस्कृत में आदर-सूचक “आप” के अर्थ में 'भवान्” शब्द आता है; पर उसका प्रयोग केवल अन्यपुरुष एकवचन में होता है।