(३) ऊकारांत धातु की "ऊ" को ह्रस्व करके उसके आगे "आ" लगाते हैं, जैसे,
चूना—चुआ | छूना—छुआ |
३७६—नीचे लिखे भूतकालिक कृद ते नियम-विरुद्ध बनते हैं—
होना—हुआ । | जाना—गया |
करना—किया | मरना—मुआ |
देना—दिया | लेना—लिया |
सिं॰—"मुआ" केवल कविता में आता है। गय में "मरा" शब्द प्रचलित है। मुआ, छुआ, आदि शब्दों के कोई कोई लेखक मुया, हुवा, छुया, आदि रूपों में लिखते हैं, पर ये रूप अशुद्ध हैं, क्योंकि ऐसा उच्चारण नहीं होता और ये शिष्ट-सम्मत भी नहीं हैं। करना का भूतकालिक कृदंस से "करा" प्रान्तिक प्रयेाग है। "जाना" का भूत कालिक कृदंत "जाया" संयुक्त क्रियाओं में आता है। इसका रूप "गया" सं॰—गत से प्रा॰—गओ के द्वारा बना है।]
३७७—भूतकालिक कृदत का प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है; जैसे, मरा घोड़ा, गिरा घर, उठा हाथ, सुनी बात, भागा चोर।
रूपातर होता है, जैसे, दौड़ता हुआ घोड़ा, चलती हुई गाड़ी, देखी हुई वस्तु, मरे हुए लोग, इत्यादि। स्त्रीलिंग बहुवचन का प्रत्यय केवल "हुई" में लगता है, जैसे मरी हुई मक्खियाॅ।