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ऊ—इस प्रत्यय के योग से विशेषण बनते हैं—

ढाल—ढालू घर—घरू बाजार—बाजारू
पेट—पेटू गरज—गरजू झाँसा—झाँसू
नाक—नक्कू (बदनाम)
(अ) रामचरित-मानस तथा दूसरी प्राचीन कविताओं में यह प्रत्यय संज्ञाओं में लगा हुआ पाया जाता है; जैसे, रामू, आपू, प्रतापू, लोगू, योगू, इत्यादि। "ऊ" के बदले कभी-कभी 'उ' आता है; जैसे, आपु, पितु, मातु, रामु।
(आ) कोई-कोई व्यक्तिवाचक तथा सम्बन्धवाचक संज्ञाओं में यह प्रत्यय प्रेम अथवा आदर के लिये लगाया जाता है, जैसे,
जगन्नाथ—जग्गू श्याम—श्यामू
बच्चा—बच्चू लल्ला—लल्लू
नन्हा—नन्हू
(इ) नीच जाति के लोगों अथवा बच्चों के नामों में बहुधा यह प्रत्यय पाया जाता है; जैसे, कल्लू, गबड़ू, सटरू, मुल्लू।

ऐं—(क्रमवाचक)—पाँचें, सातें, आठें, नवें, दसें।

ए—कई एक आकारांत संज्ञाओं और विशेषणों में यह प्रत्यय लगाने से अव्यय बनते हैं, जिनका प्रयोग संबंधसूचक अथवा क्रिया-विशेषण के समान होता है; जैसे,

सामना—सामने धीरा—धीरे बदला—बदले
लेखा—लेखे तड़का—तड़के जैसा—जैसे
पीछा—पीछे

एर—मूँड़—मुँडेर, अंध—अंधेर।

एरा—(व्यापारवाचक)—

साँप—सँपेरा, काँसा—कसेरा, चित्र—चित्रेरा, लाख—लखेरा।

(गुणवाचक)—बहुत—बहुतेरा, घन—घनेरा।