पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८१

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चतुर ..... चतुःसम-संशा पुं० [सं०] दे॰ 'चतुस्सम [को०। उपदेश इस क्रीड़ा के संबंध में हैं। इस बिल में चार रंगों का कासीमा- देश[सं०] चारो ओर की सीमा। हद [को०] । व्यवहार होता था--हाथी, घोड़ा, नौका, और बट्ट (पैदल)। बट-वि० [सं० चतुष्टय] चारो ओर स्थित रहनेवाला । ८०- च्छी शताब्दी में जब यह खेल फारस में पहुचा और वहां से बहुवान चतुळ चावहिसा६। हिंदवान घर भान विधि।- अरच गया, नब इसमें लेट और वजीर आदि बढ़ाए गए - गुन रूप सहज लच्छी सुनर सहज वीर बंधी तु सिधि । पृ० और खेलने की क्रिया में भी फेरफार हुमा । तिथितत्व नामक ... रा०, २१:१५६ । ग्रंथ में बंदव्यास जी ने युधिष्ठिर को इस खेल का दो रंग-संझा ईं० [सं० चतुरङ्ग] १. बह गाना जिसमें चार विवरण बताया है, वह इस प्रकार है,-चार पादमी यह - प्रकार (जैसे, साधारण गाना, सरगम, तराना, और तबले, खेल खेलते थे। इसका चित्रपट (बिसात) ६४ घरों का . मृदंग, सितार आदि) के बोल गठे हों। उ०-- सारे रे म होता था जिसके चारो ओर देलनेवाले बैठते थे। पूर्व और म प प नि नि सस नि स रे म नि ध प प ध म म निघप पश्चिम बैठनेबाले एक दल्द में और उत्तर दक्षिण बैठनेवाले छप म ग रे। तनन तनन तुम दिर दिर तूम दिर तारे दानी । दूसरे दल में होते थे। प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, सोरठ चतुरंग सप्त सुरन से । घा तिरकिट धुम किट था तिर एक हाथी, एक घोड़ा, एक नाव और चार बट्ट या पैदल किट धुम किट धा तिर किट धुम फिट धा। २. एक प्रकार होते थे । एवं की ओर की गोटियां लाल, पश्चिम की पीली, .. का रंगीन या चसटा गाना ! ३. चतुरंगिणी सेना का प्रधान दक्षिण की ही मोर उधर की काली होती थीं । पल में अधिकारी। ४. सेना के चार अंग हाथी, घोड़ा, रथ और की नीति प्रायः ग्राम ही कल के ऐसी थी। राजा चारों पंदल । ५. चतुरंगिणी ना ।। चतुरंग-वि० १. चार अंगोंवाली । चतुरंगिणी (सना)। उ०- और एक पर चल सकता था। बट्ट या पैदल यों तो केवल एक घर मीधे जा सकते थे, पर दूसरी गोटी मारने के समय प्रात चली चतुरंग चमू बरनी सों न केशव कसह जाई।- फैशव (पन्द०)। २. चार अंगोंवाला । एक घर आगे तिरछे भी जा सकते थे। हाथी चारों ओर . चतुरंग-संज्ञा पुं० [सं० चतुर+अगदूत । चर । उ०-बर (तिरछे नहीं) चल सकता था । घोड़ा तीन घर तिरछे प्रयवंन सुदीह प्राइचतुरंग सपन्नी। मझ्झ महल नृप बोल जाता था। नौका दो घर तिरछे जा सकती थी। मोहरे .. वंचि कागद कर लिन्नो-पृ० रा०,२६।१४।। यादि बनाने का क्रम प्राय; वैसा ही था, जैसा आजकल है। चतुरंग-संश पुं० [सं० चतुरा ] शतरंज का खेल। हार जीत भी कई प्रकार की होती थी। जैसे,--सिहासन, - चतुराजी, नपाहाष्ट, पट्पद काककाठ, बृहन्मीफा इत्यादि। विशेष-इस खेल के उत्पतिस्थान के विषय में लोगों के भिन्न चतरंगिक-7 पुं० [सं० चतुरङ्गिक] एक प्रकार का घोड़ा जिसके भिन्न मत हैं। कोई इसे चीन देश से निकला हुया बतलाते माथे पर चार भौंरी होती है [को० ।- है, कोई मिन्न से पौर कोई यूनान से। पर अधिकांश चतरंगिणी--वि० [सं० चतुर्राङ्गणी] चार अंगोंवाली (विशेषतः लोगों का मत है, और ठीक भी है. कि यह खेल भारतवर्ष सेना) से निकला है । यहाँ से यह खेल फारस में गया; फारस से चतरंगिणी-मंशा की यह सेना जिसमें हाथी, घोड़े, रव और अरव में और अंख से यूरोपीय देशों में पहुंचा। फारसी में पंदल, ये चारो चंग हों। इसे चतरंग भी कहते हैं। पर अरबबाले इसे शातरंज, चतरंगिनी--वि०, मंच सी० [चतुरङ्गिणी] दे० 'चतुरंगिणी' । . शतरंज यादि कहने लगे। फारस में ऐसा प्रवाद है कि यह चतरंगी@- वि० [सं० चतुरङ्गिन्] १. जिसकी गति चारो ओर खेल नौशेरयों के समय में हिंदुस्तान से फारस में गया और हो । २. चतुर 1 30-चित्रनहारे चिमिरे चतुरंगी नाह। इसका निकालनेवाला दाहिर का बेटा कोई सस्ता नामक का चहुबान तु वित्ति कवि मन मनुछन हरि लाह।-पृ० था। ये दोनों नाम किसी भारतीय नाम के अपभ्रंश हैं। रा०, ११७६६ २५ निकाले जाने का कारण फारसी पस्तकों में यह लिखा चतुरंगल'-पंया पु० [सं० चतुरज गुल] अमलतास । है कि भारत का कोई पद्धप्रिय राजा. जो नौशेरवा का चतरंगुल-थि० चार अंगुल लंबा या चौड़ा [कोग। - . समकालीन था, किसी रोग से अपायत हो गया। उसी का चतुरंगुला-मंशमी [पुं० चतुरङ्गुला] शीतली लता। ना बहलाने के लिये सस्ता नामक एक व्यक्ति ने चतरंग का चतुरंत'--वि० [म चतुरन्त बोतरफा किनारेवाला कि० । खेल निकाला। यह प्रचांद इस भारतीय प्रवाद से मिलता जुलता __ चतुरंत'--संरा पं०, वो पृथिवी।। १क यह खेल मंदोदरी ने अपने पति को बहुत युद्धासका चतुरंता-संज्ञा० [सं० चतुरन्ता] पृथिवी की दखकर निकाला था। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि भारतवर्ष चतुर'--वि० पुं० [सं०] [वि०ी चतुरा] १. टेढ़ी चाल चलनेवाला। में इस खेल का प्रचार नौशेरवा से बहुत पहले था। चतुरंग वक्रगानी । २. फुरतीला । तेज । जिसे पालस्य न हो ३. पर संस्कृत में अनेक ग्रंथ जिनमें चतरंगली, चतूरंग प्रर्वगा। होजियार । निपुग । 30-दिन होना कीडन, चतुरंगप्रकाश और चतरंगविनोद मामफ चार ग्रंथ चतुर प्रवीनू । सकल कला सब विद्या हीन"। ४. धनं। मिलते हैं । प्रायः सात सौ वर्ष हुए त्रिभंगाचार्य नामक एक चालाक। 2. सुदर (को०)। ... दक्षिणी विद्वान इस विशा में बहत निपुण थे। उनके अनेक चतुर संहा पु: १. शृगार रस में नायक का एक भेंद । वह मायक