पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५७

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, वीर्यकत् वोर्थसेनि १. ऋषभदेव । २ मजितनाथ । ३ सभवनाथ । ४ पभिनंदन। सचयकारक, (E) कृत्याकृत्य मयं का विनियोजक, (१०) १. सुपतिनाप । ६ पपप्रम। ७ सुराश्वनाथ । ८ चद्रप्रभ । . प्रदेष्टा, (११) नगराध्यक्ष, (१२) कार्य निर्माणकारक, सुधिनाप । १०. शीतलमाथ। ११. श्रेपासनाय। १२. (१३) धर्माध्यक्ष, (१४) सभाध्यक्ष, (१५) दरपाल, (१६) वासुपूज्य स्वामी । १३ विमलनाथ । १४ पनंतनाथ । १५. दुर्गपाल, (१७) राष्ट्रातपाल पौर (१८) पटवीपाल । धर्मनाथ । १६ शातिनाप । १७ कुतुनाथ। १८ अमरनाथ । २८. मागं । पय (को०)। २९ बलाशय (फो०)। ३०. साधना। १६ मल्लिनाप । २०. मुनि सुनत । २१. नमिनाथ । २२. माध्यम (को०)। ३१ स्रोत । मुल (को०)। ३२. मंत्रणा । नेमिनाम । २३ पावनाय । २४ महावीर स्वामी। इनमें से परामर्श से कृततीर्थ-जो 'मंत्रणा कर चुका हो। ३३. ऋषम, वासुपूज्य पोर नेमिनाथ की मूर्तियाँ योगाभ्यास चात्वाल भोर तरकर के बीच का देवी का पप (को०)। में बैठी हुई और पाकी सघ की मूर्तियां खड़ी बनाई तीर्थ-वि० १ पवित्र । पावन । पूत । २ मुक्त करनेवाला। जाती है। रक्षक (को०। २ विष्णु (को०)। ३. हाली (को०)। तीर्थक-संज्ञा पुं० [सं०] १ वाहाण। उ.-युवागचाग कहते हैं कि तीर्थकत-सहा पुं० [से. तीर्थङ्क १ नियों के वेवता। जिन । मिथ्याष्टितीर्थक भी ऐसा ही कहते हैं। संपूर्ण० प्रभिः २. शास्त्रकार । प्र०, पृ० ३५४ । २ तीर्थकर। ३. वह जो तीथ की यात्रा तीय - सच्चा पुं० [सं०] १. वह पवित्र वा पुण्य स्थान जहाँ धर्म- करता हो। भाव से लोग यात्रा, पूजा या स्नान मादिके लिये जाते तीथंक-वि०१ पवित्र । २. पूज्य [को०] । हो। से, हिंदुों के लिये काशी, प्रयाग, जगन्नाथ, तीर्थकमल-सबा [मतीर्थकमण्डलु ] वह कमाल पिसमें गया, द्वारका प्रादि, पयवा मुसलमानों के लिये मक्का तीर्थजल हो [को०] । पौर मदीना। तीर्थकर पुं० [सं०] १. विषणु । २. जिन । ३. शास्त्रकार (को०)। विशेष-हिंदपों के शास्त्रों में तीर्थ तीन प्रकार के माने गए हैं,- तीर्थकाक-पा० [0] १. प्तीयं का कौवा । २ प्रत्यत लोमी (१) जगम, जैसे, ब्राह्मण मौर साधु मादि, (२) मानस, व्यक्ति (को०] । पैसे, सत्य, क्षमा, दया, धान, सतोप, ब्रह्मचर्य, ज्ञान, धय, मधुर तीर्थकन--समा पु० [सं०] १. जिन । २ शास्तकार [को०) । भाषण मादि; और (३) स्यावर, से, काथी, प्रयाग, गया तीर्थचर्या-सा खौ.सं०] तीर्थयात्रा [को०] । पादि। इस शब्द के प्रत में 'राज', 'पति' अथवा इसी तीर्थदेव--सपा पुं० [सं०] शिव । महादेव । प्रकार का पौर पद लगाने से 'प्रयाग' अर्थ निकपता है- तीपराज या तीर्थपति-प्रयाय 1 सीथं जाने अथवा वहाँ से लौट तीर्थपति-सहा पुं० [हिं०] ३० तीर्थराज'। माने समय हिंदुपों के शास्त्रों मे सिर मुंडाकर पाद्ध करने तीर्थपाद-सहा . [सं०] विष्णु । और ब्राह्मणों को भोजन कराने का भी विधान है। तीर्थपादीय-सत्रा पुं० सं०] वैष्णव । २ कोई पवित्र स्थान | ३ हाथ में से कुछ विशिष्ट स्थान। तीर्थपुरोहित-प्रथा ([सं०] तीर्थ का पण [को०] | विशेष-दाहिने हाथ मेंगूठे का अपरी माग ब्रह्मा, अंगूठे तीर्थयात्रा-सका खी० [सं०] पवित्र स्थानों में वर्णन स्नामानिलिये पौर तनी का मध्य भाग पितृतीपं, कनिष्ठा उंगली के नीचे जाना । तीर्थाटन । का भाग प्राजापत्य तीर्थ पौर'उगलियों का अगला भाग येव- तीर्थराज-सका पुं० [सं०] प्रयाग। तीर्थ माना जाता है। इन तीर्थों से क्रमश मापमन, पिंडदान, दीर्थराजि-सहा बी-म.] काशी (को०] । पितृकार्य मोर देवकार्य किया जाता है। तीर्थराजी-सी०सं०] काशी। ४ शास्त्र!.यज्ञ।६ स्थान स्थल । ७ उपाय। अवसर। ६.नारीख। रजस्वला का रक्त १. पवतार। " विशेष-काची में सब तीर्थ हैं, इसी से यह नाम पहा है। परणामृत । देव-स्नान-जन । १२ उपाध्याय । गुरु । १३ तीर्थवाफ-सबा पुं० [सं०] सिर के पास, [को०]} मत्रो घमात्य । १४ योनि । १५ दर्शन । १६. पाट । १७. तीर्थवायस पुं० [सं०] दे० 'तीर्थकाक' (को०)। ब्राह्मण। वि।१८ निधान । कारण। १६ मग्नि । २० तीर्थविधि-सका बो. [सं.] कार्य में करणीय कार्य। बसे. पुण्यकाल । २१ मन्यासियों की एक उपाधि । २२. वह जो क्षौरकर्म (को०] । तार दे। तारनेवाला। २३ वैरभाव को त्यागकर परस्पर तीर्थशिला-सश बी० [सं० ] घाट तक पानेवासी पत्पर की उचित व्यवहार । २४ ईश्वर । ५ माता पिता । २६. सीढ़िया (को॰] । पतिथि । मेहमान । २७ राष्ट्र को पठारह संपत्तियाँ। विशेप-राष्ट्र की इन, पठारह सपत्तियों के नाम हैं,-(१) तीर्थशोच-सधा पुं० [सं०] तीर्थस्थल पर घाट मादि का परिष्कार मत्री, (२) पुरोहित, (३) युवराज, (४) सूपति, (५) __करने या कराने की क्रिया [को०] । द्वारपाल, (६) मंसिक, (0) कारागाराध्यक्ष, (२) द्रव्य तीर्थसेनि-सहा त्री० [म.] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम ।