पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५९

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वीसर तीसर-सहा श्री• [हिं० तीसरा] खेत की तीसरी जुताई। तुंगक- सझा पुं० [सं० तङ्गक] १. पुन्नाग वृक्ष । नागकेसर । २ महा. तीसरा-वि० हि. तीन+सरा (प्रत्य॰)] १. क्रम में तीन के भारत के अनुसार एक तीथं । स्थान पर पड़नेवाला। जो दो के उपरांत हो। जिसके पहले विशेप-पहले यहीं सारस्वत मुनि प्रषियों को वेद पढ़ाया करते दो और हों। २०--सरे तीसरे पाचमे सातमे पाठमें थे। पहबार जब वैवष्ट हो गए, तब मपिरा के पुराने एक वो मया पारबो कीजिए।-ठाकुर०, पृ. ३।३जिसका 'मोशम्' शब्द का उच्चारण किया। भारत प्रस्तुत विषय कोई संवध न हो। संबंध रखनेवालो। साथ ही पुला हुपा सब पेष उपस्थित हो गया। घटना मिना कोई पौर। से,-हमारी पात, तुम्हारी बात, के उपरक्ष्य में इस स्थान पर ऋषियों पर पतामोदा तीसरा जो कहे, वही हो। भारी यश किया था। यौ०-तीसरा पहर दोपहर के बाद का समय । दिम का तुगता-तमा श्री० [सं० लता ] उँचाई। दोसरा पहर । अपराह्न। तुगत्व-सहा पं० [सं० तङ्गत्व] उच्चता । ऊंचाई। तीसा-- पु.हिं० सौस+ (प्रत्य॰)] क्रम में तीस स्पाव तुंगनाथ-सबा पुं० [सं० तुङ्गवाय] हिमाचय पर एक शिवलिंग पौर पर परवाता जो बनतीस परतहो। पिस पहले तीर्थस्पान। स्वतीस पोर हो। तुगनाभ-संपु० [सं० वाप] सुद्ध, पनुपरकीड़ा वो विषयों में गिमापा गया है। इसके काटने से जलन और वीसी'-मासी० [सं० मतसी] मतसी नामक तेलहन । वि०३० पोशा होती है। 'मलसो'। न तुगनास-वि० [सं० जनाम] लपी नाकवाला [को॰] । दीसीर--सहा बौ[हितौठ+६ (प्रत्य] 1. फल प्रापि गिवने. का एक मान पो तीस गाहिपों पर्याप्त एक सौ पचासका तु गवाहु-सा पुं० [•ङ्गवाह तलवार के २२ हापों में से एक " होता है। एक प्रकार की छेनी जिससे लोहे की यालियों तु गवीज-- पुं० [सं० तुङ्गी ] पारा [को०] । मादि पर नकाशी करते हैं। तुंगभद्र-सका पुं० [सं० तुगमन] मतवाला हायो। तीहा-सा . . .ष्टि ?] तसल्ली। प्राश्वासन । २. तुंगभद्रा-मरी• [सं० तुङ्गमा दक्षिण की एक नदी जो सत्यादि घे। पौरता।३तोष । पर्वत से निकलकर कृष्णा नदी में बा मियी है। दीहार-- स० [हितिहास] तिहाई। बैस, पाषा तोहा। तुंगमुख-सका पुं० [.तुङ्गमुण्] मेंडा (को०)। पिशेष-इसका प्रयोग समास दी में होता है। तुंगरस--सबा . [ ङ्गरस] एक प्रकार का गवद्रव्य [को०] । दुल-स० [हिं०] ३. 'म' पाता करतारपरता तुगला- पुं० [ देश० ] एक प्रकार की छोटी झाली जो पश्चिमी हरता देव ।--पृ० रा०, १॥२१॥ हिमालय में १०.० फुट की ऊँचाई तक पाई जाती है। विशेष-पढ़वाल में लोग इसकी पत्तियों का तमाकू या सुरती के तुंग'-वि० [सं० 11 उन्नतऊंचा। 10-सारा पर्वत पाम स्थान पर स्पषहार करते है। इसके फल खट्ट होते है भोर दुग सरल सवाहरित देवदायमों का पा। किन्नर, पृ० इमली की तरह काम में लाए जाते हैं। ४२।२ । प्रपर .-1 फकीर माह सुल्तान सिर सिर कम पलाये।-प्राण, पृ० २१३ प्रधान मुख्य। तुगवेणा-या बी० [सं० तुगणा] महाभारत के अनुसार एक नवी जिसका नाम महानदी, (वरण गपा) प्रादि के साथ पाया है। तुग'- सका.१ पुन्नाग पक्ष। २. पर्वत। पहाट वारियल। कदाचित् यह तुपमदा का दूसरा नाम हो। ४ किंजक । कमल का सिर । ५ शिव । १ वृष प्रहा.. तुगा-सका बी० [सं० तुङ्गा ] . वशवोधन । २ शमी वृक्ष । ३ प्रहों की उप राथि। दे० 'सच्च। एक वर्णवच का बाम तुगा विस प्रत्येक चरण में दो नगण पौर दो गुरु होते है। तुंग नामक वत्त । ४ मैसुर की एक नदी (को०)। जैसे-नग पह बिहारी। कहत पक्षि पियारी। एक तुंगारण्य-सहा पुं० [सं०ङ्गारस्य ] झाँसी कोस मोरया के छोटा झार या पेजो मुखेमान पहाड तथा पच्छिमी हिमालय पास का एक जगल। इस स्थान पर एक मदिर है मौर मेला पर कुमाऊँ म होता है। बगता है। पर बेतवा नदी के तट पर है। उ०-नदी बेतर्व तीर जई तीरपगारण्य । नगर मोड्यो उहें बसे पानी सल विशेष-सकी मी, छाल पौर पठी रंगने और चमड़ा मे धन्य । व (वय.)। सिझाने काम में माती है। इसकी पकड़ी पूरोप में सर- वारों के मक्कापीरोखटेपालिपीमते मामय पर सुगारन्ना -बापुं० [सं० सुनारएया देणारा, पहाडी सोग इसकी टहनियों टोकरे भी बनाते हैं। पह पेड गारि-सचा पु० [सं० तुजारि सफेद कनेर का पेट। तमक पा समाक जातिकारी मामी, दरेंगी पौर परंडी तुगिनी-ची. [सं० लिनी] महा शतावरीपरी सतावरी गिमा-या बी० [सं० तुनिमन्] तु पता। मपाई को०] । २०. सिंहासन (को०)। .पदर या निपुण व्यक्ति (२०)। १२ तुगी'--सका बी[सं० तुङ्गी] १. हलवी। रात्रि । ३.बनतुलसी। युष । भूटा समूह (को०)। पपई। ममरी।