पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१००

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बराबर २३९३ बरियारा - बराबर-वि० [फा० बर ] (१) मान, मात्रा, संख्या, गुण, । बराम्हण, राम्हना-संज्ञा पुं० दे० "ब्राह्मण"। महत्त्व, मूल्य आदि के विचार से समान । किसी के मुका-बराय-अव्य० [फा० ) वास्ते । लिये । निमित्त । जैसे, बराय बले में उससे न कम, न अधिक । तुल्य । एक सा।। म,नाधका तुल्य। एक सा।। खुराक, वराय नाम । जैसे,—(क) चौड़ाई में दोनों कपड़े बराबर हैं। (ख) वरायन-संभा पुं० [सं० वर+आयन (प्रत्य॰)] वह लोहे का सिर के सब बाल बराबर कर दो। (ग) एक रुपया घार छला जो ब्याह के समय दूल्हे के हाथ में पहनाया जाता चवन्नियों के बराबर है। (घ) इसके चार बराबर हिस्से ! है। इसमें स्त्रों के स्थान में गुंजा लगे रहते हैं। उ.- कर दो। (२) समान पद या मर्यादावाला । जैसे,—(क) विहंमत आव लोहारिनि हाथ रायन हो। तुलसी । यहाँ सब आदमी बराबर है। (ख) तुम्हारे बरावर झठा बरार-संज्ञा पुं० [देश॰] (1) एक प्रकार का जंगली जानवर । हूँढ़ने से न मिलेगा। (२) यह 'वंदा जो गाँवों में घर पीछे लिया जाता हो। मुहा०-यराबर काबराबरी करनेवाला। समान । जैसे,---बरा बरारक-संज्ञा पुं० [हिं०] हीरा । बर का लड़का है, उसे मार भी तो नहीं सकते। | बरारी-संशा स्त्री० [ देश. ] संपूर्ण जाति की एक रागिनी जो (३) जिसकी सतह ऊँची नीची न हो। जो खुरखुरा न दोपहर के समय गाई जाती है। कोई कोई इसे भैरव राग हो। समतल की रागिनी मानते हैं। मुहा०--बराबर करना समाप्त कर देना । अंत कर देना। थरारीश्याम-संशा पुं० [सं०] संपूर्ण जाति का एक संकर राग न रहने देना । जैसे,—उन्होंने दोही चार बरस में अपने बड़ों जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। को सब कमाई बराबर कर दी। बगव-संभा पुं० [हिं० बगना+आव (प्रत्य॰)] 'यराना' का भाव । (४) जैसा चाहिए वैसा । टीक । बच्चाव । परहेज़ । निवारण । उ०—मानहुँ विवि खंजन क्रि० वि० (१) लगातार । निरंतर। बिना रुके हुए। लर शुक करत बराव । -विश्राम । जैसे,-बराबर आगे बढ़ते चले जाना । (२) एक ही बगस-संज्ञा पुं० [सं० पोतास? ] एक प्रकार का कपूर जो भीम- पंक्ति में । एक माय । जैसे,-पब सिपाही बराबर चलते मेनी कपूर भी कहलाता है। विशेष-दे. "कपूर"। हैं। (३) साथ । (क.)। जैसे, हमारे बराबर रहना । (४) संज्ञा पुं० [ अंग्रेस ] जहाज़ में पाल की वह रस्सी जिसकी सदा । हमेशा । जैसे,—आप तो बराबर यही कहा करते हैं। सहायता से पाल को घुमाते हैं। बराबरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बराबर+ई (प्रत्य॰)] (1) बराबर | घराह-संज्ञा पुं० दे० “वराह"। होने की क्रिया या भाव । समानता। तुल्यता । (२) क्रि० वि० [फा०] (१) के तौर पर । जैसे, बराह मेहर- सादृश्य । (३) मुक्काबला । सामना। बानी । (२) ज़रिये से । द्वारा । बरामद-वि० [फा०] (1) जो बाहर निकला हुभा हो । बाहर | बराही-संज्ञा स्त्री० [देश० ] एक प्रकार को घटिया ऊख । आया हुआ। सामने आया हुआ। (२) खोई हुई, चोरी बरिभात-संज्ञा पुं० दे."घरात"। गई हुई या न मिलती हुई वस्तु जो कहीं से निकाली | बरिच्छा-संज्ञा पुं० दे. "यरछा"। जाय । जैसे, चोरी का माल बरामद करना। बरियाई -क्रि० वि० [सं० वलात् ] बलात् । हठात् । जबरदस्ती क्रि० प्र०करना।—होना । से । उ०--मंत्रिन पुर देखा बिनु साई। मो कह दीन संज्ञा स्त्री. (१) वह जमीन जो नदी के हट जाने से निकल राज बरियाई।-तुलसी। आई हो । दियारा। गंग-बरार । (२) निकासी । आमदनी | बरियाग-वि० [हिं० बल+आर (प्रत्य०) ] बली । बलवान् । उ.-बड़ो तुम्हार बरामद हूँ को लिखि कीनो है साफ।। मज़बृत्त । बरियारा-संज्ञा पुं० [सं० वला ] एक छोटा झाड़दार छतनारा बरामदा-संज्ञा पुं० [फा०] (1) मकानों में वह छाया हुआ पौधा जो हाथ सवा हाथ ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ तंग और लंगा भाग जो मकान की सीमा के कुछ बाहर नुलपी की मी पर कुछ बड़ी और स्खुलते रंग की होती निकला रहता है और जो खंभों, रेलिंग या बुड़िया है। इसमें पीले पीले फूल लगते हैं जिनके झड़ जाने पर आदि के आधार पर ठहरा हुआ होता है। बारजा । कोदो के से बीज पढ़ते हैं। पौधे की जड़ दवा के काम में छजा । (२) मकान के आगे का वह स्थान जो ऊपर से बहुत आती है। वैद्यक में बरियारा कडुवा, मधुर, पित्ता- छाया या पटा हो पर सामने या तीनों ओर स्नुला हो। तिसार-नाशक, अलवीर्यवर्द्धक, पुष्टिकारक और कफ- दालान । ओसारा। रोधविशोधक माना जाता है। इसके पौधे की छाल से बरामीटर-संज्ञा पुं० दे. "बैरोमीटर"। बहुत अच्छा रेशा निकलता है ओ अनेक कामों में आ ५९९