पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३९१

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मसा २६८२ मसिबुंदा - मसा-संज्ञा पुं० [सं० मांसकील ] (1) शरीर पर कहीं कहीं काले हलदी, पनिया, मिर्च, जीरा, सेजपत्ता भादि। (ग) कपडा रंग का उभरा हुआ मांस का छोटा दाना जो वैधक के अनु पर टॉकने के लिए गोटा, पट्टा, किनारी आदि। (घ) ग्रंथ सार एक प्रकार काचर्म-योग माना जाता है, और जशरीर यालेख आदि लिखने के लिए दूसरे ग्रंथ आदि। में अपने होने के स्थान के विचार से शुभ अथवा अशुभ यौ०-गरम मसाला । मसालेदार । मसाले का तेल । माना जाता है। यह प्राय: सरसों अथवा मूंग के आकार से (२) ओषधियों अथवा रासायनिक द्रव्यों का योग या समूह। लेकर बेर तक के भाकार का होता है। (२) बवासीर रोग जैसे, पीतल साफ करने का मसाला, पान का मसाला, में मस के दाने जो गुदा के मुंह पर वा भीतर होते है। सिर मलने का मसाला, तेल में मिलाने का मसाला । (३) इनमें बहुत पीड़ा होती है और कभी कभी इनमें से खून साधन । जैपे,-अब तो आपको भी दिल्लगी का अच्छा भी बहता है। मसाला मिल गया। (४) तेल । जैसे,-रोशनी बुझ रही संज्ञा पुं० [सं० मशक ] मच्छद । है; मसाला लेते आना। (५) आतिशबाजी। जैसे,—उनकी मसान-संज्ञा पुं० [सं० श्मशान ] (१) वह स्थान जहों मुरदे बारात में अच्छे अच्छे मसाले टूटे थे। (६) नव-यौवना जलाए जाते हों। मरघट । और सुदरी ली। (बाजारू)। पर्या०-पितृवन । शतानक । रुद्राक्रीड़ । दाहसर । अंत- मसाली-संज्ञा स्त्री० [अ० मशाल ? ] रस्सी । होरी (ला.) शय्या। पितृकानन। क्रि०प्र०-कसना ।-बाँधना । मुहा०-मसान जगाना-तंत्र शास्त्र के अनुसार स्मशान पर मसाले का तेल-संशा पुं० [हिं० मसाला+तेल ] एक प्रकार का बैठकर शव की सिद्धि करना । मुरदा सिद्ध करना । उ०- सुगंधित तेल जो साधारण तिल के तेल में कचूरकवरी, कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहु मसान।- पालक आदि सुगंधित प्रम्य मिलाकर बनाया तुलसी। मसान पहना सन्नाटा हो जाना । जाता है। (२) भूस, पिशाच आदि । मसालेदार-वि० [अ० मसालह+का दार (प्रत्य॰)] जिसमें किसी यौ०-मसान की बीमारीबों को होनेवाला एक प्रकार का प्रकार का मसाला लगा या मिला हो। (इसका प्रयोग प्रायः रोग जिसमें वे घुल घुलकर मर जाते है। खाद्य पदार्थों के लिए ही होता है।) (३) रणभूमि । रणक्षेत्र । उ.---तुलसी महेश विधि लोक- ; मसिंदर-संक्षा पुं० [अ० मेसेंजर ] जहाज में का वह बहुत बड़ा पाल देवगन देखत विमान कौतुक मसान के।-तुलसी। रस्मा जो चरखी या दाद में लपेटा रहता है और जिसकी मसाना-संज्ञा पुं० [अ० ] पेट में की यह थैली जिसमें शाय महायता से जहाज का गिराया हुशा लंगर उठाया जाता जमा रहता है। पेशाब की थली । मूत्राशय । वस्ति ।

  • संज्ञा पुं० दे० "मसान"।

मसि-संशा स्त्री० [सं०] (1) लिखने की स्याही। रोशनाई। मसानी-संज्ञा स्त्री० [सं० श्मशानी ] स्मशान में रहनेवाली पिशा उ.-तुम्हरे देश कागद मसि खूटो।-सूर। (ख) परम चिनी, डाकिनी इत्यादि । उ.--माइ मसानी सेदि सीतला प्रेममय मृदु ससि कोन्ही । चारु चित्त भीती लिखि लीन्ही भैरू भूत हनुमंत । साहय से न्यारा रहै जो इनको --सुल.सी । (२) निर्गुशी का फल । (३) काजल । (४) पूर्जत ।-कबीर । कालिख । 3.-.-जनु मुँह लाई गेरु मलि भए खरनि अस- मसार-संथा पुं० [सं०] इंद्रनील मणिनीलम । वार ।-तुलसी मसाल-संज्ञा स्त्री० दे० 'मशाल"। उ०.---आनि इतै छन वारि मसिका-संशा स्त्री० [सं०] शेफालि.का । निर्गुडी। दे छवि धनसार मसाल । कौन काज तहँ राज जहँ सुधन- मसिकरी-संशा स्त्री० [सं० ] दावात । बदन दुतिजाल ।-रामसहाय । मसिजल-संज्ञा पुं० [सं०] लिखने की स्याही । रोशनाई। मसालची-संज्ञा पु. दे. "मशालची"। मसिदानी-संज्ञा स्त्री० [सं० मसि+का दानी ] दावात। मसिपात्र मसाल दुम्मा-संक्षा पुं० [हिं० मशाल+दुम ] एक प्रकार का पक्षी मसिधान-संज्ञा पुं० [सं०] दावास । जिसकी दुम बिल्कुल काली रहती है, बाकी सारा शरीर मसिपण्य-संज्ञा पुं० [सं०] लिखने का काम करनेवाला । चाहे जिस रंग का हो। लेखक। मसाला-संज्ञा पुं॰ [फा० मसालह ] (१) किसी पदार्थ को प्रस्तुत मसिपथ-संछा पु. ( सं०] कलम । करने के लिए आवश्यक सामग्री । ये चीजें जिनकी सहायता मसिपात्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] वावास । से कोई चीज़ तैयार होती हो। जैसे--(क) मकान बनाने । मसिदा -संज्ञा पुं॰ [सं० मसिविंदु मसिबिंदु । उ०-(क) मुनि- के लिए सुर्यो, 'धूना, ईट आदि । (ख) रसोई बनाने के लिए . मन हरत मंजु मखिबुदा ललित बदन बलि पालमुकुंदा।-