- मनिष्टिव, मनिष्ठीव, सनिष्ठेव" ४६४ सन्नाटा सनिष्ठिव, मनिष्ठीव, सनिष्ठेवर--सञ्ज्ञा पु० वह शब्द या कथन जिसके झुका हुया । अवनत । म्लान । ८ निकटम्य । समपक्तीं। सटा उच्चारण मे मुंह से थूक के छोटे उडते हो। हुआ। ६ वैठा हुअा। आसीन । १० गत । प्रस्थित । ११ धीमा। मद । जैसे,--स्वर (को०] । सनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ अादरयुक्त प्रार्थना या निवेदन । २ दिशा। यौ०-सन्नकट = गद्गद कठवाला। रुंधे गलेवाला। सन्न- ३. गौरी का एक नाम (को०)। ४ हाथी का कान फटफटाना । जिह व = जो चुप हो। मौन । सन्नधी = उत्माहरहित । ५ काति । दीप्ति। विषण्ण। सन्नभाव % त्याक्ताश । म्लान । उद्विग्न । सन्न- सनीचर-सञ्ज्ञा पुं० [स० शनैश्चर] रे 'शनैश्चर' । मुसल = कार्य मे अप्रयुक्त या रखा हुआ मूसल । सन्नवाक्, सनोचरी--मज्ञा पु० हि. सनीचर+ई (प्रत्य)] शनि की दशा, सन्नवाच - मद स्वर में बोलनेवाला। जो धीमी आवाज मे जिसमे दुख, व्याधि आदि की अधिकता होती है । बोलता हो। सन्नशरीर = श्लयदेह । थका हुआ। सन्तहप = मुहा०-मीन की सनीचरी = मीन राशि पर शनि की स्थिति की आनदरहित । उत्साहहीन । विगरण। दशा जिसका फल राजा और प्रजा दोनो का नाश माना जाता सन्नक'-वि० [स०] जो लवा न हो । नाटा । बौना किो०] । है । उ०-एक तो कराल कलिकाल सूल मूल ता मे कोढ मे सन्नक'-पञ्ज्ञा पु० [स०] पियाल वृक्ष । चिरौजी का पेड । की खाज सी सनीचरी है मीन की।-तुलसी (शब्द॰) । सन्नकद्रु, सन्नकद्रुम-ममा पु० [म०] चिरौजी का पेड (को॰) । सनोड़'-अव्य० [स० सनीड] १ पडोस मे । वगल मे । २ समीप । सन्नत' -वि॰ [स०] १ झुका हुआ । २ नोचे गया हुआ । ३ खिन्न । निकट। उदास (को०]। सनोड'-सज्ञा पुं० नंकटय । प्रतिवेशिता । समीपता [को०] । यौ०-सन्नतभ्रू = जिसकी भौहे भुको हो। टेढो भौहोवाला । सनीड-वि० १ पडोसो। बगल का। २ पास का। समीप का। सन्नत-सज्ञा पु० राम की सेना का एक वदर । ३ एक ही नीड में रहनेवाला (को॰) । सन्नतर--वि० [स०] अत्यत धीमा। अत्यत मद या मढ़ । जसे,-- सनोल-वि० [सं०] दे॰ 'सनीड' । स्वर।को। सनेमि-वि० [स०] १ पूर्ण । पूरा । २ नेमियुक्त । परिधियुक्त । सन्नति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ झुकाव । २ नम्रता : विनय । ३ किसी जिसमे मडल हो (वो०]। ओर प्रवृत्ति । मन का झुकाव । ४ कृपादृष्टि । मेहरवानी । सनेस, सनेसाा-सज्ञा पुं० [स० सन्देश] दे० 'सदेश' । ५ दक्ष की पुत्री और ऋतु की स्त्री का नाम । ६. ध्वनि । सनेह-सञ्ज्ञा पु० [स० स्नेह] दे० 'स्नेह' । आवाज । ७ एक प्रकार का यज्ञ (को०) । सनेहिया-सञ्ज्ञा पुं० [हिंसनेह + इया (प्रत्य॰)] दे० 'सनेही' । सन्नद्ध-वि० [सं०] १ वैधा हुआ। कसा या जकडा हुआ । २ सनेही'-वि० [स० स्नेही, स्नेहिन्] स्नेह या प्रेम करनेवाला । प्रेमी। कवच आदि बाँधकर तैयार । ३ तैयार । आमादा। उद्यत । सनेही-सज्ञा पुं० चाहनेवाला । प्रियतम । प्यारा। ४ लगा हुआ। जुडा हुया । मिला हुआ । ५ पास का । समीप सन सन - अव्यः [म० शनै शनै ] दे० 'शन शनै'। का । ६ हिंसक । घातक (को०)। ७ फूटने या खिलने की ओर सनोबर-सक्षा पु० [अ०] चीड का पेड । अभिगुख । विकासोन्मुख (को०)। ८ अानदयुक्त । मोहक (को०) । ६ युक्त । सपन्न (को०)। सन्न-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ चिरीजो का पेड। पियाल वृक्ष । २ परि- यौ०-सन्नद्ध कवच %जिसने कवच या जिरहबज्नर धारण किया मारण मे स्वल्पता। कमी। अल्पता (को०)। ३. नाश । ध्वस । विनाश (को०)। हो । कवची। सन्नद्धयोध = पूर्णत सज्जित या तैयार योद्धाश्रो सन्न-वि० [सं० शून्य, हिं० सुन्न] १, सज्ञाशून्य । सवेदनारहित । विना चेतना का सा। स्तब्ध । जड । जैसे,—यह भोपण सवाद सन्नय-पक्षा पुं० [स०] १ समूह । झुड। सरया। परिमाण । तादाद । सुनते ही वह सन्न रह गया। २ भौचक । ठक। स्तभित । २ पिछला हिस्सा। पिछला अश । ३ सेना का ३ एकवारगी खामोश । सहसा मौन । एकदम चुप । ४ डर पिछला भाग [को०] । से चुप । भय से नीरव । जैसे,—उसके डाँटते ही वह सन्न सन्नयन--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ एक साथ करना । समीप लाना। हो गया। २ सबद्ध करने की क्रिया को०] 1 क्रि० प्र०-करना ।—होना । सन्नहन-सक्षा पु० [स०] १ एक साथ अच्छी तरह बांधना। नढना । पिरोना । २ तैयार होना । तत्पर होना। मुहा०—सन्न मारना = मन्नाटा खीचना । एकवारगी चुप सन्नद्ध होना। ३ हो जाना। रस्सी । जेवर । ४ युद्धोपकरण, लडाई के हथियार आदि से युक्त होना। ५ उद्योग या प्रयत्न करना । ५ कसान कसाव सन्न -वि० [सं०] १ जो सिकुड गया हो। सकुचित । २ समाप्त । या खिंचाव । ७ तैयारी को। नप्ट । मत । ३ दुवल । क्षीण । ४ सुम्त । विपरण। विणद- सन्नाटा'-पचा पुं० [स० शून्य, हिं० सुन्न + पाटा (प्रत्य॰)] १ युक्त । ६ जिनमे कोई हरकत न हो। गतिहीन । मद । ७. चारो ओर किसी प्रकार का शब्द न सुनाई पडने को अवस्था । से युक्त।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१२६
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