पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सरसाम ४६६७ सरस्थान (शब्द॰) । (ख) मुदर सूधी गुगोल रची विधि कोमलता प्रति सरस्वती--सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ एक प्राचीन नदी जो पजार में वहती ही मरसात है। -हरिप्रोध (शब्द॰) । यी और जिसकी क्षीण धारा कुरक्षेत्र के पास अब भी है। २ सरसाम-पन्ना पुं० [फा०] मन्निपात । त्रिदोष । वाई । विद्या या वाणो की देवी । वाग्देवी। भारती । शारदा । सरसा-व० [फा० सरशार] १ डूबा हुआ। मन्न। २ गटाप । विरोप--प्रेतो मे इन नदी का उल्लेग बहुत है और उनके तट चूर । मदमस्त (नशे मे)। का देण नहुन पदिन्नं माना गया है। पर वहाँ यह नदी अनिश्चित सी है । बहन से स्थनो मे तो मित्र नदी के लिये ही सरसिक-सज्ञा पुं० [सं०] सारस पक्षी (को०) । इसका प्रयोग जान पड़ता है। कुरुक्षेत्र के पास से होकर बहने- सरमिका-सधा रमी० [सं०] १ हिंगुपत्नी। २ छोटा ताल । वाबली। वाली मध्यदेशवाली मरस्वती के लिये इस शब्द का प्रयोग सरसिज'--सबा पुं० [स०] १ यह जो ताल मे होता हो । २ कमल । थोटी हो जगहों मे हुया है। कुछ विद्वानो का अनुमान है कि ३ सारस पक्षी (को०)। पारनियो के प्रावना ग्रय में अफगानिस्तान की जिम 'हरवती' सरसिज --वि० सर मे जात । ताल मे पैदा होनेवाला । नदी का उल्लेख है, वास्तव मे वही मून मरस्वती है । पीछे सरसिजयोनि-सम्रा पुं० [स०] कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा । पजाव को नदी का यह नाम दिया गया। ऋग्मेद मे उम नदी सरसिरुह-समा पृ० [स०] (मर मे उत्पन्न) कमल । के समुद्र मे गिरने का उल्लेख है। पर पीछे की कयानो मे यो०-सरसिरहाधु = सूर्य । इमको धारा लुप्न होकर भीतर भीतर प्रयाग मे जाकर गगा से मिलती हुई कही गई है । वेदो मे सरस्वती नदियों को माता सरमी--सज्ञा स्त्री० [स०] १ छोटा ताल | छोटा सरोवर । तलया। कही गई है और उमको सात वहिनें बताई गई है। एक स्थान २ पुष्करिणी । वावली। उ.--कठुला कठ बधनहा नीके । पर वह स्वर्णमार्ग से बहती हुई और वृत्रासुर का नाश नयन सरोज नयन सरसी के । —सूर (शब्द०)। ३ एक वर्ण करनेवाली कही गई है । वेद मनो मे जहाँ देवता रूप मे उमका वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे न, ज, भ, ज, ज, ज, र होते है । आह्वान है, वहाँ पूपा, इद्र और मरुन आदि के माय इमका सरसीक--सज्ञा पुं० [स०] मारस पक्षी। सबध है। कुछ मनो मे यह इडा और भारती के माय तीन सरसीरुह-सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] १ सरसी मे उत्पन्न होनेवाला, कमल । यज्ञदेवियो मे रखी गई है। वाजमनेयो सहिता मे कया है कि २ सारस पक्षी। सरस्वती ने वाचादेवो के द्वारा इद्र को शक्ति प्रदान की थी। सरसूलगोरटी-सशा स्री० [देश॰] सफेद कटमरैया । श्वेत झिटी । आगे चलकर ब्राह्मण ग्रयो मे सरस्वती वाग्देवी ही मान ली सरसेटा--सज्ञा स्त्री० [अनु०] १ झगडा । तकरार । झझट । बखेडा । गई है। पुराणो मे सरस्वती देवो नह्मा को पुद्री और स्त्री दोनो कही गई है और उसका वाहन हम बताया गया है । सरसेटना-क्रि० स० [अनु० सरसेट) १ खरी खोटी सुनाना । महाभारत मे एक स्थान पर सरस्वती वो दक्ष प्रजापति की कन्या फटकारना। भला बुरा कहना। २ रगेदना। रपटना। ३ लिखा है लक्ष्मी और मरस्वती देवो का वर मी प्रसिद्ध है। तेजी ( समाप्त करना । ३ विद्या। रम। ४ एक रागिनी जो शकरामरण और नट सरसो--सज्ञा स्त्री० [म० सर्पप, तुल० फा० सर्शक] एक धान्य या नागयण के योग से उत्पन्न मानो जाती है । " ब्राह्मो बृटो। पौधा जिसके गोल गोल छोटे बीजो से तेल निकलता है। एक ६. मालकगना । ज्योतिष्मतो लता। ७ सामनता । ८ एक तेलहन । छद का नाम । ६ गाय १० वचन । वणी। शब्द । घर विशेष-भारत के प्राय सभी पातो मे इसकी खेती की जाती है। (को०)। ११ नदी । मरिता । मो०)। १२ उत्कृष्ट या श्रेष्ठ इमका डठल दो तीन हाथ ऊंचा होता है। पत्ते हरे और कटे म्त्री। मध एव शिष्ट महिला (को०)। १३ दुर्गा देवी किनारेवाले होते हैं। ये चिकने होने और डठी से सटे रहते का एक स। महासरस्वती (को०)। १४ वौद्धो को एक है। फलियां दो तीन अगुल लबी और गोत होती है जिनमे देवी (को०)। महीन बीज के दाने भरे होते हैं । कात्तिक म गेहूं के साथ सरस्वतीकठाभरण-पया पुं० [स० मरम्बतो कराठाभरण] १ नान तथा अलग भी इसे बोते है । माघ तक यह तैयार हो जाता है। के साठ मुन भेदा मे से एक । २ मोजकृत अलकार का मरसो दो प्रकार की होती है-लान और पीली या गपेद । एक प्रय। ३ एक पाठगाना जिसे पार के परमारवशी राजा इसे लोग मसाले के काम में भी लाते है । इसमा तेल, जो पटुना मोज ने म्यापिन किया था। तेल कहलाता है, नित्य के व्यवहार मे पाता है । इसके पत्तो सरस्वती पूजन-सा सी० [म०] > 'गरम्वनी पूजा' । का साग बनता है। सरस्वती पूजा-रा पी० [सं०] मरस्वती का उत्सव जो नही मत सरसौहाँ - वि० [हि० सरम + प्रौहाँ (प्रत्य॰)] सरम बनाया हुया । पचमो को और ही आश्विन के नवरात्र में होता है। रसयुक्त किया हुअा। रमोला। उ०-तिय तरमी, मनि सरम्बान्'-वि० [सं० सरस्वत्] १ जलपूर्ण । जनयुक्त । २ रममय । किए करि मरमोहे नेह । घर परसाहैं है रहे और बरगी रसीना । ३ मुन्वादु । न्वादिष्ट । ८ मय । गोभन । चुम्न- मेह । -बिहारी (गन्द०)। दुरस्त । ५ भावनाप्रधान । माबुक। हि० ०० १०-२१ -