पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१९५

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सलजम सलावत सलजम-सचा पु० [फा० शलजम] दे॰ 'शलजम' । सलज्ज-वि० [सं०] जिसे लज्जा हो। शर्म और हयावाला । लज्जाशील। सलटुक-सञ्ज्ञा पु० [स०] चौलाई का साग । सलतता--सज्ञा स्त्री० [हि• सलतनत१ सुमीता । पाराम । २ व्यवस्था । प्रवध जुगाड । सलतनत--सज्ञा स्त्री० [अ० सल्तनत] १ राज्य। बादशाहत । २ साम्राज्य । ३ इतजाम। प्रबध । मुहा०-सलतनत वैठना-प्रबध ठीक होना । इतजाम वैठना। ४ सुभीता। पाराम । जैसे,—पहले जरा सलतनत से वैठ लो, तब वाते होगी। सलना-क्रि० अ० [स० शल्य] १ साला जाना। छिदना । भिदना । २. किसी छेद मे किसी चीज का डाला या पहनाया जाना । ३. गडना । चुभना। सलना-समा पुं० लकडी छेदने का वरमा । सलना--सबा पुं० [स०] मोती। सलपत्र-सबा पु० [सं०] दालचीनी । गुडत्वक् । सलपन-सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] दो तीन हाथ ऊंची एक झाडी जिसकी टहनियो पर सफेद रोएँ होते है । विशेष-यह प्राय सारे भा त, लका, बरमा, चीन और मलाया मे पाई जाती है। यह वर्षा ऋतु मे फूलती है । इसका व्यवहार ओषधि के रूप मे होता है। सलफ-सक्षा पुं० [अ० सलफ] पूर्वयुरुप । पूर्वज। पुराने जमाने के पुरखे लोग [को०] । सलव-वि० [अ० सल्व] नष्ट । बरवाद । जैसे,—साल ही भर मे उन्होने वाप दादा की सारी कमाई सलव कर दी। सलब-सज्ञा पु० दे० 'सल्ब' । सनम-सञ्ज्ञा पुं० [स० शलभ] दे० 'शलभ'। सलमह-सक्षा पु० [फा०] बयुवा नाम का साग । सलमा-सञ्ज्ञा पु० [अ० सलम] सोने या चाँदी का बना हुआ चमकदार गोल लपेटा हुआ तार जो टोपी, साडी आदि मे बेलबूटे बनाने के काम मे आता है । बादला । सलवट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सिलवट] दे॰ 'सिलवट'। सलवन-सज्ञा पु० [स० शालिपण] सरिवन । सलवात -सक्षा स्त्री० [अ०] १ बरकत । २ रहमत । मेहरवानी। ३ गाली । दुर्वचन । कुवाच्य । क्रि० प्र०-सुनाना। सलवार-सचा पु० [फा० शलवार] एक प्रकार का ढीला पायजामा जिममे चुन्नटे रहती हैं। सलसल बोल-सचा पुं० [अ०] बहुमूत्र रोग या मधुप्रमेह नामक रोग । सलसलाना'--क्रि० अ० [अनु०। १ धीरे घोरे खुजली होना। सरसराहट होना। २ गुदगुदी होना। ३ कीडो का पेट के बल चलन। । सरसराना। रेगना। ४ आर्द्र या गीला होने से कार्य के अनुपयुक्त होना। सलसलाना-क्रि० स० १ खुजलाना। २. गुदगुदाना । ३ शीघ्रता से कोई कार्य करना। सलसलाहट-मज्ञा स्त्री० अनु०] १ सलसल शब्द या ध्वनि । २ सलसलाने का भाव या क्रिया । २ खुजली। खारिश । ४ गुदगुदी। कुलकुलो। सलसी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] माजूफल की जाति का एक प्रकार का वडा वृक्ष जो वूक भी कहलाता है। विशेप दे० 'क' । सनहज-सबा बी० [म० श्यालजाया] साले की पत्नी । सरहज । सला--मक्षा स्त्री॰ [क०] १ निमत्रित करना। २ आवाज देना। बुलाना को सलाई'-सञ्ज्ञा नी० [सं० शलाका] १ धातु की बनी हुई कोई पनली छोटी छड। जैसे,-सु गाने की सलाई। घाव मे दवा भरने की सलाई । मोजा या गुलूबद बुनने को मलाई । मुहा०—सलाई फेरना (१) आँखो मे सुरमा या औषध लगाना। (२) सलाई गरम करके अवा करने के लिये आँखो मे लगाना। अॉखे फोडना। २ दियासलाई । माचिस । सलाई .-मक्षा स्त्री० [हि० सालना] १ सालने को क्रिया या भाव । २. सालने की मजदूरी। सलाई-सद्धा स्रो० [स० शल्लकी] १ सलई। शल्लकी। २ चोड की लकडी। सलाक'-सज्ञा स्त्री० [फा०] सोने या चादी की सलाई [को०] । सलाकर-मचा श्री० [फा० सलाख वाण । तीर। उ० -शुद्ध मलाक समान लसी अति रोपमयो दृग दोठि तिहारी। -केशव (शब्द०)। सलाकना -कि० अ० [स० शलाका + हिं० ना (प्रत्य॰)] सलाई या इसी तरह की और किसी चीज से किमो दूसरी चोज पर लकीर खोचना । सलाई की सहायता से चिह्न करना । सलाख - सज्ञा स्त्री॰ [फा० सलाख, मि० स० शलाका १ लोहे ग्रादि धातु की बनी हुई छड। २ शलाका। सनाई। २ लकार। खत। सलाजीत-सचा बी० [हिं० शिलाजीत] दे० शिलाजीत' । सलात -सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० नमाज (को०] । सलातीन -सचा पु० [अ० सुनतान का वहु व.] शासक वर्ग (को०] । सलाद -सज्ञा पुं० [अ० सैलाड] १ गाजर, मूली, राई, प्याज प्रादि पत्तो का अंगरेजो ढग से मिरके आदि म डाला अचार। २ एक विशिष्ट जाति के कद क पत्ते जा प्राय. कन्दे खाए जात है और बहुत पाचक होते है । इसक कई भेद हात है। सलाबत-सज्ञा श्री० [अ०] १ कठोरता । सख्नो ।२ प्रताप । शौर्य । वीरता (को०)।