पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१९७

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सलिलकुक्कुट ५०१७ सलीपर सलिलकुक्कुट-सज्ञा पु० [सं०] एक जल पक्षी । जल कुक्कुट (को०] । सलिलाजलि--सज्ञा स्रो० [सं० मलिलार्जाल] मृतक के उद्देश्य से दी सलिलक्रिया संज्ञा स्त्री॰ [स०] १ प्रेत का तर्पण । जलाजलि । उदक- जानेवाली जलाजलि। क्रिया। विशेप दे० 'उदकक्रिया'। २ मृतक क्रिया के समय सलिलाकर-सञ्ज्ञा पुं० [स०] समुद्र । सागर । शव को नहलाना (को०)। सलिलाधिप-- मा पु० [म.] जल के अधिष्ठाता देवता, वरुण । सलिलगर्गरी-सज्ञा श्री० [स०] पानी की गगरी (को०)। सलिलार्णव--मचा पु० [स०] समुद्र । सागर । मलिलगुरु-वि० [म०] १. जलपूर्ण । पानी से भरा हुआ। २ अश्रु सलिलार्थी-वि० [सं० सलिलायिन् ] जत का इच्छुक । प्यासा की। से परिपूर्ण [को०] । सलिलालय-मा पु० [स०] समुद्र । सलिलचर-वि० [स०] जल मे विचरण करनेवाला जलचर । सलिलाशन - वि० [म०] केवल जल पोकर रहनेवाला । यौ०-सलिल चरकेतन-कामदेव का एक नाम | सलिलाराय-सशा पु० [सं०] जलाशय । तालाव । मलिलज-सहा पु० [सं०] १ कम्ल । पद्म । २ वह जो जल से सलिलाहार-सञ्ज्ञा पु० [स०],१ वह जो केवल जल पीकर रहता हो । उत्पन्न हो । जलजात । जलजोव या वस्तुएँ । २ केवल जल पीकर रहने की क्रिया । सलिलजन्मा-सज्ञा पु० [स० सलिलजन्मन्] १ कमल । पद्म । सलिलंद्र-मवा पु० [स० मलिलेन्द्र) जल के अधिष्ठाता देवता, २ वह जो जल से उत्पन्न हो । जलजात । वरुण । सलिलद'- वि० [स०] सलिल देनेवाला। जल देनेवाला । जो जल दे। सलिलेधन-सञ्ज्ञा पुं० [म० सलिलेन्धन] बडवानल । सलिलद'-सधा ५० मेघ । बादल । सलिलेचर--सञ्ज्ञा पु० [स०] जल मे रहनेवाला जीव । जलचर । सलिलघर-सज्ञा पु० [सं०] १ मोथा। मुस्तक । २. वादल । मेघ सलिलेश-सा पुं० [स०] जल के अधिष्ठाता देवता-~-वरुण । (को०)। ३. अमृतपायी । देवता (को०) । सलिलेशय-वि० [स०] जल मे सोनेवाला । जलशायो। सलिलदायी-वि० स० सलिलदायिन्। जल बरसानेवाला। वर्ण सलिलेश्वर-मज्ञा पु० [सं०] सलिलेद्र । वरुण ।को०) । करनेवाला [को०। सलिलोद्भव-पचा पु० [स०] १ कमल । २ जल मे उत्पन्न होने- सलिलनिधि-सज्ञा पु० [स०] १ जलनिधि । समुद्र । २ सरसी छद वाली कोई चीज। का एक नाम । सलिलोद्भव-वि० जल मे उत्पन्न [को०] । सलिलनिपात-सज्ञा पुं० [स०] जल गिरना । वर्षा होना [को॰] । सलिलोपजीवी--वि० [स० सनिलोरजोविन्। केवल जल पर निर्भर सलिलनिपेक-सञ्ज्ञा पु० [स०] जलसिंचन । जल द्वारा सीचना (को०)। रहनेवाला । जलोपजीवी। सलिलपति-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ जल के स्वामी-वरुण । २ समुद्र । सलिलोपजीवो--सञ्ज्ञा पु० मल्लाह । मछुवा को०) । सलिलोपप्लव-सज्ञा पु० [स०] जलप्रलय जलप्लावन (को०) । सलिलप्रिय-सञ्ज्ञा पु० [सं०] सूअर । शूकर । सलिलीका'-सज्ञा पुं० [सं० सलिलौकस्] जोक । जलौका । सलिलभर-सहा पु० [स०] ताल । झोल । पोखरा [को॰] । सलिलौका--वि० जल मे रहनेवाला को०] । सलिलमुच्-सज्ञा पु० [स०] मेघ । वादल । सलिलौदन--सज्ञा पुं० [१०] पकाया हुअा अन्न । प्रोदन । सलिलयोनि--सज्ञा पु० [स०] १ ब्रह्मा। २ वह वस्तु जो जल मे सलीका-सज्ञा पु० [अ० सलीकह । १ काम करने का ठीक ठीक उत्पन्न होती हो। अच्छा ढग । शऊर | तमीज । २ हुनर । लियाकन। ३ चाल- सलिलरय-सञ्चा पु० [स०] जल की धारा । सलिल का प्रवाह [को०] । चलन । बरताव । ४ तहजीव । सभ्यता । सलिलराज-सचा पु० [स०] १ जल का स्वामी, वरण । २ क्रि० प्र०-ग्राना ।-सिखाना ।-सीखना ।--होना । समुद्र । सागर। सलीकामद-वि० [अ० सलीकह + फा० मद (प्रत्य॰)] १ जिसे सलिलराशि-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ जलाशय । जलाधार। २ समुद्र । सलीका हो । शऊरदार । तमीजदार । २ हुनरमद । ३ शिष्ट । सागर (को०] । सभ्य। सलिलवात, सलिलवायु-पना पु० [सं०] सलिल को सस्पर्श कर के सलीकेदार--वि० [अ० सलीकह दार] दे० 'सलीकामद' । सलीखा-सदा ५० [स० शल्क (=छिलका)] तज । त्वकपन् । सलिलस्तभी-वि० [स० सलिलस्तम्भिन्] जल की गति का अवरोध सलीता--सञ्ज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का बहुत गोटा कपडा करनेवाला । जलस्तभन करनेवाला (को०] । मारकीन या गजी को तरह का होता है। सलिलस्थलचर-वि० [स०] जो जन और स्थल दोनो मे विचरण सलीपर-सञ्ज्ञा पु० [अ० स्लिपर, १ एक प्रकार का हलका जूता जिसके करता हो । जैसे,—हस, साँप आदि । पहनने पर पजा ढंका रहता है और एंडी खुलो रहती है। सागर। ग्राती हुई वायु। प्रायः