पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२१९

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1 माली। प्रमेह । सांदप्टिक न्याय ५०३९ साप्रत' सादृष्टिक न्याय--मज्ञा पु० [म० मान्दृष्टिक न्याय] एक प्रकार का साध्य--वि० [स० सान्ध्य] १ सव्या संवधी । नायकानीन । नया न्याय जिसका प्रयोग उम समय किया जाता है, जब कोई चीज का । उ०-साध्य मेघ की अमल अर्गना मी भली। पैन रही देखकर उसी तरह की पहले देखी हुई कोई चीज याद या यी जहाँ कनक रेखावली।-नु०, पृ० ८५। २ प्रात काल जाती है। से सबंधित । प्रभात का । प्रामातिक (को०)। साद्र'---संज्ञा पु० [म० सान्द्र] १ वन । जगल . २. ढेर। राशि (को०)। साध्यकुसुमा--सज्ञा भी० [स० मान्ध्यकुनुमा] वे वृक्ष, पीवे और बेले साद्र-वि० १ घना । गहरा । घोर । २ मृदु । कोमल । ३ स्निग्ध । अादि जो सध्या के समय फूनती हा । चिकना। ५. सु दर। खूबसूरत । ५ माटा । कसा हुआ। साध्यभोजन--मञ्चा पु० [स० सान्ध्यभोजन] सायकालीन भोजन । गफ (को०)। ६ बलवान् । वलिष्ट । शक्तिमान् । प्रचड (को०)। वियारी । व्यालू (को॰] । ७ पर्याप्त । अतिशय । अधिक (को०): ८ माफिक । रुचिकर। सापत्तिक-वि० [म० साम्पत्तिक] सपत्ति से सबध रखनेवाला। अनुकूल (को०)। आथिक । माली। साद्रकुतूहन-वि० [स० सान्द्रकुतूहल] अत्यत कौतूहल से युक्त । यो सापद-वि० [स० साम्पद] सपत्ति सवधी। सपत्ति का। यायिक । अत्यत उत्सुक हो [को०। साद्रता-मज्ञा स्त्री० [म० मान्द्रता] माद्र होने का भाव । सापन्निक-वि० [स० साम्मनिक] सपन्नतापूवक रहनेवाला । विलान- साद्रत्वक्क--वि॰ [स० सान्द्र न्वक्क] घनी या मोटी छालवाला [को०] । पूर्वक रहनेवाला [को०] । माद्रपु-फ--लशा पु० [५० सान्द्रपुप्प] विभीतक । बहेडा । सापरत---अव्य[म० साम्प्रत] दे० 'साप्रत' । उ०--माजी माने साद्रप्रमेह--मज्ञा पु० [म० मान्द्रपमेह] दे० 'माद्रप्रसाद ।' उ०- वेदमत सुणे सदा सुरगाह । सती गाठमी सापरत दसमी श्री साद्रप्रमेह से रात्रि मे पान मे धरने से जैसा होवे ऐसा मूत्र दुरगाह ।-बांकी० ग्र०, भा०, २, पृ० २५ । होय ।--माधव०, पृ० १८३ । सापराय'-वि० [१० साम्पराय] १ आवश्यकता या ग्रापत्ति के कारण जिसकी अपेक्षा हुई हो । २ युद्ध से सबद्ध। सामरिक । ३ साद्रप्रसाद--सज्ञा पु० [म० मान्द्र प्रसाद] एक प्रकार का कफज परलोक या भविष्य से सबधित (को०] । विशेष--इस प्रमेहरोग मे कुछ मूत्र तो गाढा और कुछ पतला निक- सापराय--प्रज्ञा पु० १ इहलोक से परलोक मे जाने का मार्ग । २ विपत्ति । आपत्ति । ३ जरूरत के समय काम पानेवाला सहायक लता है । यदि ऐसे रोगी का मूत्र किसी वरतन मे रख दिया या मिन। ४ झगडा। सघर्प । ५ भविप्य । भविष्य का जाय, तो उसका गाढा अश नीचे बैठा जाता है और पतला अश जीवन । ६ अनिश्चय । ७ मविप्य की जिज्ञासा। ८ अन्वे- ऊपर रह जाता है। पण । गवेषणा । जिज्ञासा [को०] । साद्रमणि-सा ५० [म० सान्द्रमणि] एक प्राचीन ऋपि का नाम । सामूत्र-वि० [स० सान्द्रमूत्र] जिमका मूत्र साद्रप्रमाद के रोगी की सापरायए-शा पु० [स० साम्परायण] मृत्यु जो इस लोक मे दूसरे लोक मे ले जाती है किो०] । तरह गाढा या लमदार हो [को०] । सापरायिक' - वि० [म० साम्परायिक] १ परलोक सबधी। पर- साद्रमेह-सञ्ज्ञा पु० [म. सान्द्रमेह] दे० 'साद्रप्रसाद' । लौकिक । २ युद्ध मे काम पानवाला। ३ युद्ध सनवी। युद्ध सादस्निग्ध-वि० [स० सान्द्रस्निग्ध] गाढा और चिपचिपा या लस- का। ४ जरूरत के समय काम पानेवाला। ५ व्यसना म दार (को०)। पडा हुआ । विपत्तिग्रस्त (को०)। ६ दाहकम सबधी ग्रोव्वं- सादस्पर्श - वि० [म० सान्द्रस्पर्श] जो छूने मे चिकना या कोमल देहिक (को०)। हो किो०] । सापरायिक-सञ्ज्ञा पुं० १ युद्ध । समर । २ लडाई का रथ (को०)। साद्रोह-वि० [५० स्वामिद्रोह] स्वामिद्रोही । स्वामी से शत्रुता करनेवाला । उ०~भग्यो वै वगाली करनाटवाली। भग्यौ सापरायिक कल्प-सज्ञा पु० [म० साम्परायिक करप] एक प्रकार भागि माद्रोह कूरमवाली।--पृ० रा०, २४।२६० । का सैनिक व्यूह (को०] । साध'--वि. [स० सान्ध] १ सधि सबधी । सधि का । २ जो जोड सापातिक--वि० [स० साम्पातिक] मपात सबधी । सपात का । या सधि पर स्थित हो। सापादिक--वि० [स० माम्पादिक गुणकारी । लाभदायक (को०] । साध-सज्ञा पुं० एक प्राचीन ऋपि का नाम । साप्रत'--प्रव्य० [स० साम्प्रत] १ इनी समय । मद्य । अभी। साधिक--सज्ञा पु० [म० साधिक १ वह जो मद्य बनाता या बेचता तत्काल । २ अब । अधुना (को०)। ३ ठीक ढग म। उचित हो। कलाल। शौडिक । २ वह जो सधि करता हो । सघि रीति से (को०)। करनेवाला। साप्रत'-वि० १ युक्त । मिला हुआ । २ योग्य । उचित । उपयुक्त साधिविग्नहिक-नश पु० [म० सान्धिविग्रहिक] प्राचीन काल का (को०) । ३ सगत । प्रासगिक । सामयिक (को०)। ४ प्रत्यक्ष । राज्यो का वह अधिकारी जिसे सघि और विग्रह करने का प्रकट । व्यक्त। उ०--दाता जग माता पिता दाता साप्रत मधिकार हुआ करता था। देव ।--चांकी०म०, भा० १,०४७ ।