पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२९९

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सिद्धयामल ६०१९ सिद्धात सिद्धयामल--सज्ञा पु० [स०] ए 6 तत्र का नाम । सिद्धसाधन--सज्ञा स० [स०] १ सिद्धि के लिये योग या तत्र की क्रिया सिद्धयोग---सशा पु० [स०] १ ज्योतिप का एक योग । २ एक या अनुष्ठान। २ तात्रिक क्रियानो की सिद्धि मे काम आनेवाली यौगिक रसौपध। वस्तु या पदार्थ (को०)। ३ सफेद सरसो। ४ प्रमाणित वात को फिर प्रमाणित करना। सिद्धयोगिनो-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक योगिनी का नाम । सिद्धसाग्ति-वि० [स०] जिसने व्यवहार द्वारा ही चिकित्सा अादि सिद्धयोगो--सज्ञा पु० [स० सिद्धयोगिन्] शिव । महादेव । का अनुभव प्राप्त किया हो, शास्त्र के अध्ययन द्वारा नहीं। सिद्धर--सञ्ज्ञा पु० [?] एक ब्राह्मण जो कस की प्राज्ञा से कृष्ण को सिद्धपाध्य'--मज्ञा पु० [सं०] १ एक प्रकार का मन । २ सबूत । मारने आया था। उ०-सिद्धर बाभन करम कसाई। कह्यो प्रमाण (को०)। कस सो वचन सुनाई।-सूर (शब्द०)। सिद्धसाध्य-०ि१ जो किया जानेवाला काम पूरा कर चुका हो । सिद्धरत्न-वि० [स०] जिसके पास सिद्ध या अलौकिक शक्तिवाला रत्न २ प्रमाणित । सावित । हो [को०)। सिद्धसारस्वत-वि० [स०] जो सरस्वती को सिद्ध कर चुका हो (को०] । सिद्धरस-संज्ञा पुं० [स०] १ पारा । पारद । २ रसेद्र दर्शन के अनुसार वह योगी जिससे पारा सिद्ध हो गया हो। सिद्ध सिद्धसिंधु-सशा पु० [स० सिद्धसिन्धु] प्राकाश गगा । मदाकिनी। रसायनी। सिद्धसिद्ध - वि० [स०] तनसार के अनुसार विशेष प्रभाव कारक एक मन (को०)। सिद्धरसायन-सज्ञा पुं० [स०] वह रसोषध जिससे दीर्घ जीवन और प्रभूत शक्ति प्राप्त हो। सिद्धसुसिद्ध-सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का मत्र । सिद्धनक्ष--वि० [स०] जिसका निशाना खूब सधा हो। जो कभी सिद्धसेन-सञ्ज्ञा पु० [सं०] कार्तिकेय । न चूके। सिद्धसेवित-सज्ञा पु० [स०] १ शिव या भैरव का एक रूप। वटुक सिद्धलक्ष्मी--सज्ञा स्त्री० [स०] लक्ष्मी की एक विशेष मूति [को०] । भैरव । २ वह जो सिद्धो द्वारा सेवित हो। मिद्धलोक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] सिद्धो का आवास या लोक को०] । सिद्धस्थल--सज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सिद्धस्थली] वह स्थान जो सिद्ध या सिद्धवटी-सज्ञा स्त्री० [स०] एक देवी का नाम । प्रभावकर हो। सिद्धवति--संज्ञा स्त्री० [म०] ऐंद्रजालिक या जादू की एक प्रकार की सिद्धस्थाली-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सिद्ध योगियो को बटलोई जिसमे से बत्ती [को०] । आवश्यकतानुसार जो भी ईप्सित हो और जितना चाहे उतना भोजन निकाला जा सकता है। सिद्धवस्ति-सशा पु० [२०] तैल आदि की वस्ति या पिचकारी। (मायुर्वेद)। विशेष--कहते है कि इस प्रकार की एक बटलोई व्यासजी ने पाडवो के वनवास के समय द्रौपदी को दी थी। सिद्ध विद्या--सञ्ज्ञा सी० [स०] एक महाविद्या का नाम । सिद्धविनायक-सज्ञा पु० [स०] गणेश को एक मूर्ति । सिद्धहस्त--वि० स०] १. जिसका हाथ किसी काम मे मॅजा हो। २ कार्यकुशल । प्रवीण । निपुण । सिद्धव्यजन--सज्ञा पु० [स० सिद्धव्यञ्जन] तपस्वी के वेश गुप्तचर [को०] । सिद्धहस्तता--तज्ञा स्त्री० [स०] निपुणता । प्रवीणता। कौशल । उ० - उसकी सिद्धहस्तता पर मैं मुग्ध हूँ।--कठहार (भू०), सिद्ध शावरतंत्र-सज्ञा पु० [स० सिद्धशावर तन्त्र] सावर तन्त्र । पृ०१॥ सिद्धशिला-नज्ञा स्त्री० [सं०] जैन मत के अनुसार ऊर्ध्वलोक का सिद्धागना-सज्ञा स्त्री० [स० सिद्धाङगना] सिद्ध नामक देवताग्रो की एक स्थान। स्त्रियाँ । वह नारो जिसे सिद्धि प्राप्त हो । विशेष-कहते है कि यह शिला स्वर्गपुरी के ऊपर ४५ लाख योजन लवी, इतनी ही चौडी तथा ८ योजन मोटी है । मोती के सिद्धाजन-ज्ञा पु० [स० सिद्धाञ्जन] वह अजन जिसे आँख मे लगा श्वेतहार या गोदुग्ध से भी उज्ज्वल है, सोने के समान दमकती लेने से भूमि के नीचे को वस्तुएँ (गडे खजाने आदि) भी दिखाई हुई और स्फटिक से भी निर्मल हैं। यह चौदहवे लोक की शिखा देने लगतो है। पर है और इसके ऊपर शिवपुर धाम है। यहाँ मुक्त पुरुप रहते सिद्धात--मचा पु० [स० सिद्धान्त] १ भलीभांति सोच विचार कर हैं । यहाँ किसी प्रकार का बधन या दु ख नही है। स्थिर किया हझा मत । वह वात जिसके सदा सत्य होने का सिद्ध सकल्प -वि० [स० सिद्धसडकल्प] जिसको सब कामनाएं नि गे। उसूल । २ प्रधान लक्ष्य । मुख्य उद्देश्य पूरी हो। कि मतलव । ३ वह वात जो विद्वानो या उनके प्रदाय द्वारा सत्य मानी जाती हो। मत । सिद्धसारत् -शा जी० [स०] १ अाकाश गगा । २ गगा। स्त्र मे सिद्धात चार प्रकार के सिद्धनलिल-शा पुं० [स०] कोजो । सिद्ध जल । , प्रतितन सिद्धात, अधिक सिद्ध नारक-या पुं० [सं०] सब मनोरय पूर्ण करनेवाला कल वृक्ष । -10 | सर्वतन वह सिद्धाट ।