तीनो हो। सविनी सगीतज्ञ सगविनी-सशा स्त्री० [स० सङगविनी] वह वाडा या खरका नहाँ संगी'-वि० [फा० म ग (= पत्थर)] पन्थर का । नगीन । जैसे,- गाएँ दुहने के लिये एकत्र की जाती ह [को०) । सगी मकान । संगसार-रज्ञा पुं० [फा०] प्राचीन काल का एक प्रकार का सगीत'-सा पु० [सं० मद् गीत१ नृत्य, गीत और वाद्य का प्रारदड । समाहार। वह कार्य जिममे नाचना, गाना गौर वजाना विशेष-यह दडविधान प्राय अरव, फारम श्रादि देगोगे प्रचलित था। इस दड मे अपराधी भूमि मे प्राधा गाउ दिया विशेप -सगीत का मुख्य उद्देश्य मनोरजन है, और भिन्न भिन्न जाता था और लोग पत्थर मार भारकर उनको हत्या कर देशो मे भिन्न भिन्न प्रकार से मनोरजन के लिये गाना बजाना डालते थे। हुआ करता है। सभवत भारतवर्ष में ही सबमे पहले मगीत सगसार-वि० नष्ट | चौपट । ध्वस्त । की ओर लोगो का ध्यान गया या। वैदिक काल में ही यहाँ सगसाल-सज्ञा पुं० [फा०] अफगानिस्तान को उत्तरी सीमा पर एक के लोग मनो का गान करते और उसके साथ माय हस्तक्षेप आदि करते और बाजा बजाते थे। धीरे धीरे उन कला ने पहाडी मे कटी हुई पत्थर की बहुत बडी मूति का नाम । इतनी उन्नति की कि 'सामवेद' की रचना हुई। इस प्रकार विशेष-अफगानिस्तान को उत्तरीय सीमा पर तुर्किस्तान के मार्ग मानो सामवेद भारतीय मगीत का सबसे प्राचीन और पूर्व- मे समुद्र से आठ हजार फुट को ऊचाई पर हिंदुकुश की घाटी मे बहुत सो पुरानी इमारतो के चिह्न है । वही पहाड रूप है । पीछे सगीत का वडा प्रचार प्रा । मुर, नर सभी मे इसने प्रेम करने लगे। रामायण और महाभारत के समय में बनी हुई दो बडी मूर्तियाँ भी हैं जिनमे से एक १८० और इस देश मे इसका बडा आदर था। नाचने, गाने और वजाने दूसरी ११७ फुट ऊँची है। वहाँवाले इन्हें सगसाल और का अभ्यास सभी सभ्य लोग करते थे। सगीत शास्त्र के प्रथम शाह्यम्मा कहते है। प्राचार्य 'भरत' माने जाते है। इनके पश्चात् काराप, मतग, सगसी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० संडसो दे० 'संडसो' । पाष्टि, नारद, हनुमत् प्रादि ने मगीत शास्त्र की वालोचना सगसुरमा-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] काले रग को वह उपधातु जिसे पीसकर को। कहते है कि प्राचीन यूनान, अरब और फारसवालो ने आँखो मे लगाने का सुरमा बनाया जाता है । विशेष भारतवासियो से ही सगीत शास्त्र की शिक्षा ग्रहण की थी। दे० 'सुरमा'। कुछ लोगो का मत है कि स्वर, ताल, नृत्य, भाव, कोक और हल संग सुलेमानी--सज्ञा पुं० [फा० सग+अ० मुलेमानी] एक पकार इन सातो के समाहार को सगीत कहते है, पर अधिकाश के रंगीन पत्थर के नग जिनकी मालाएँ आदि बनाकर लोग गान, वाद्य और नृत्य को ही सगीत मानते हैं, और मुसलमान फकीर पहना करते हैं। यदि वास्तविक दृष्टि से देखा जाय तो शेष चारो का भी समा- सगाती-संक्षा पुं० [हिं० सग+आती (प्रत्य॰)] १ वह जो सग रहता वेश इन्ही तीनो मे हो जाता है। इनमे से गीत पीर वाद्य हो । साथी । सगी । २ दोस्त । मित्र । को 'श्राव्य मगीत' तथा नृत्य को सगीत कहते हैं। संगीत सगाम -सज्ञा पुं० [सं० सड ग्राम] दे॰ 'सग्राम' । उ०-राउत्ता के और भी दो भेद किए गए है-मार्ग और देगी। कहते है पुत्ता चलए बहुत्ता अतरे पटरे सोहता। सगाम सुहव्वा जनि कि किसी समय महादेव के सामने भरत ने अपनी मगीतविद्या गधन्वा रूले परमत मोहता।-कोति०, पृ. ४८ । का परिचय दिया था। उस सगीत के पथप्रदर्शक ब्रह्मा थे सगायन-सज्ञा पुं० [सं० सड़ गायन] बहुतो का एक मात्र गाना या और वह सगीत मुक्तिदाता था। वही सगीत 'मा' कहलाता था। इसके अतिरिक्त भिन्न भिन्न देशो में लोग अपने अपने स्तवन करना। ढग पर जो गाते बजाते और नाचते है, उमे देशी कहते है। सगाव-पशा पुं० [स० सट गाव] वार्तालाप । वातचीत किो०] । कुछ लोग केवल गाने और बजाने को ही और कुछ ना केवल सगिनी--सा सी० [हिं० सगी का स्त्री० रूप] १ साथ रहनेवाली गाने का ही, भ्रम से, सगीत कहते हैं । स्त्री। सहचरी । २ पत्नी । भा । जोरू । सगी'-मया पुं० [स० सडिगन्, हि० मग+ई (प्रत्य॰)]१ वह जो २ नामूहिक गान । महगान । एक साथ मिाकर गाया हुआ गान सदा सग रहता हो । साथी । २ मित्र । बधु । (को०) । ३ कई वाद्यो वा एक स्वर ताल मे बजना । सगी'-वि० १ स युक्त । मिला हुआ । २ अनुरक्त । बासस्त। संगीत'-वि० जो साथ मिलकर गाया गया हो [को०] । ३ कामुक । ४ अविच्छिन्न । सतत । ५ वाछा करनेवाला। सगीतक-या पुं० [सं० नट गीतक] १. विभिन्न म्बरो या पात्रा स्पृही (यो०] । का पारम्परिक मेल । २ गीत, नृत्य और वाद्य द्वारा नाम हिक सगो-मया श्री० [देश॰] एक प्रकार का कपडा जो विवाह आदि मे मनोरजन [को०] । वर का पाजामा तथा स्त्रियो के लहंगे इत्यादि के बनाने के संगीतज्ञ-मझा पु० [सं० सद गीतज्ञ] वह सो सगीतविद्या का काम मे आता है। ज्ञाता हो।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३१
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