पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सुकरा ६०५४ मुकावनी भाव । मुकरत्व । सोकय । २ सुंदरता। उ०--जहाँ क्रिया को सुकलिल---वि० [40] भनी भाति नग हुमा यो] । सुकरता बरणत काज विरोध । तहां कहन व्याधात हे औरो मुकरप--पि. [म०] प्रत्या गुणी या योग्य । प्रन्या गुगल या बुद्धि विबोध । -मतिराम (शब्द०)। निप्पा (को०)। सुकरा--सगा सी॰ [स०] सुशोन गाय । अन्ज और सोधी गौ। सुकल्पित-पि. [i०] गास या गुगठिया । बमज पिं०] । सुकरात-सग पु० [अ०] यूनान का एक प्रसिद्ध दानिक जिगका मुकत्य--11० [०] पूग यार । उत्तम (को०)। शिप्य प्लेटो (अफलातून) था। उकनाना-त्रि० प्र० [१] पाने में पाना । प्राशयान्वित हाना । सुकराना--सरा पुं० [फा० शुमानह] ३० 'शुपाना' । उ०--प्रग्न 30- याला परम, घर गाव नरि पाय । ग्विान अनि अन्यारे जे भरे अति हो मदन मजेज। द तुच ग वाग्चे ग्व ती नकि गेमागे गुरयाय 1-गमगाय (२०)। सुकराना भेज ।--रतनहजारा (शब्द॰) । मुयायि-- पु. [40] प्रापि। मरापि । उत्तम रयाना। सुकरित--वि० [स० मुत] शुभ । गत । अच्छा। मना । उ.- मुकष्ट-- [म.] १ पति पष्टयर। . (गैग पादि) जा रष्ट- सुकरित मारग चालना बुरा न कबहूँ हार। अमिन ग्रात गाध्य (40) परानिया मुसा न सुनिया काइ।-दाद् (गद०)। सुकरीहार-सगा पुं० [मुकरी ? + हिं० हार] गले में पहनने का एक सकार'--'" ५० [#० गु] कर पीना। मुगाड-वि० युदर नका, TI? या सारयाना। प्रकार का हार। सुकर्णक'-सगा पुं० [सं०] हस्तीरुद । हाथीद । मुकाधिका-० [६० राष्टिा] कने पीना। मुकर्णक'-वि० जिसके कान सु दर हो । अच्छे कानोपाना । सुकाठो'-77 ० [ti० रा]ि भमर । भोंगा। सुकणिका--संज्ञा स्त्री० [40] मूपाको । मूमानी नाम की नता। मुकाटो'--वि० १ नु दर पार या सपाना । २ मु दर दग में मयुक्त २ महाबला। या जुधरा प्रा (०)। सुकर्णी-तशा सी० [सं०] रुद्रयामणी । द्रायन । मुफात-1 [मुगान] प्रन्या गुदा मनि मुद। सुकर्म-सज्ञा पुं० [म०] १ अन्धा काम । नतमं । २. देवानो को सुकाज-11 . [६० 3+ हिं० गाज] उत्तम गायं । पन्छा नाम । एक श्रेणी या कोटि । गुवाय। सुकर्मा'-सरा पुं० [म० मुकमन्] १ दिप्कभ प्रादि सत्ताईस योगो में सुकातिज-मग पु० [० शुसिज] मोती। (दि०)। से सातवां योग। सुकाना-गि० म० [म० शुरु प्रा० गुम, पुहि नाना] २० विशेष-ज्योतिप मे यह योग सर प्रसार के कार्यों के निये शुभ 'TITI'I माना गया है और कहा गया है कि जो बानक इस योग मे सुकानो-पु० [अ० पुसमानी] मांभी । २० 'सुग्रानी' । (दि०)। जन्म लेता है, वह परोपकारी, कलाकुशल, यशम्यो, मतम सुकाम वि० [सं०] उत्तम सामनानाला प० । करनेवाला और सदा प्रसन्न रहने वाला हाता है। सुकामद-वि० [6] कामना पूर्ण करनेवाला पिं०] । २ उत्तम कर्म करनेवाना मनुप्प । ३ विश्वकर्मा । ४ विरया- सुकामवत -11 . [म०] यह यन जो किमी उत्तम कामना मे विया जाता है । काम्यग्रत । सुकर्मा--वि० १ मत्काय करनेवाला । सुकर्मों । पुण्यात्मा । २ सक्रिय । काय कुशल (को०] । सुकामा- समालो० [सं०] वायमारणा नता । वायमान । सुकर्मी-वि० [सं० सुकमिन्] १ अच्छा काम करनेवाला। २ सुकार'-[20] [00 फी• मुकारा] १ महज माध्य । सहज होनेवाला । २ महज मे वश मे मानेवाला (पोडा या गाप धार्मिक । पुण्यवान् । ३ मदाचारी। प्रादि) । ३ सज मे प्राप्त होनेवाला। सुकल' मा पुं० [स०] १ वह जा अपनी सपत्ति का उपयोग दान और भोग में करता है। दाता और भोला । २ मधुर, पर सुकार'-सज्ञा पुं० १ अच्छे स्यभाव का घोडा । २ फुकुम शालि । अस्फुट शब्द करनेवाला। सुकाल-सज्ञा पुं० [40] १ सुममय । उत्तम समय। २ वह नमय जो अन्न आदि की उपज के विचार मे अच्छा हो। अकाल सुकल'--सज्ञा पुं० [म० शुक्ल] दे० 'शुक्ल' । उ०—दिन दिन बढ बढाइ का उलटा। अनदा । जैस सुकल पच्छ को वदा ।--लाल कवि (शब्द॰) । सुकालिन-सा पुं० [सं०] पितरो का एक गण । मनु के अनुसार ये यौ०--सुकलपच्छ = दे० 'शुक्ल पदा'। उ०--नॉमी तिथि मधु- शूद्रो के पितर माने जाते है । मास पुनीता। सुकलपच्छ अभिजित हरि प्रीता।-मानस, सुकालो-सा पु० [म० सुकालिन्] २० 'सुकालिन' । १३१६१ । सुकल'-- पुं० ['श०] एक प्रकार का ग्राम जो सावन के प्रत मे सुकालुका--तज्ञा सो० [सं०] भटकटैया। होता है। सुकावना-क्रि० स० [सं० शुष्क, हिं० सुखाना] दे० 'सुखाना'। मिन्न ।