लल्लू (शब्द०)। सुतली ६०७५ सुर्तिवत' सुतली-सज्ञा स्त्री० [हिं० सूत + लो (प्रत्य॰)] रूई, सन या इसी प्रकार सुता- सज्ञा स्त्री० [स०] १ लडकी । कन्या। पुत्री । बेटी। २ सखी। के और रेशो के सूतो या डोरो को एक मे वटकर बनाया हुआ सहेली। (डिं०)। लवा और कुछ मोटा खड जिसका उपयोग चीजे बाँधने, कुएँ सुतात्मज-सज्ञा पु० [स०] [स्त्री॰ सुतात्मजा] १ लडके का लडका । से पानी खीचने, पलग वुनने तथा इसी प्रकार के और कामो पोता। २ लडकी का लडका । नाती। मे होता है। रस्सी। डोरी । सुनरी । सुतादान-सज्ञा पुं० [स०] कन्यादान (को०)। सुतवत्'--वि० [स०] १ पुत्रवाला। जिसके पुत्र हो। २ पुन के सुतान - वि० [स०] मधुर स्वरवाला । सुस्वर । सुकठ (को०] । समान । पुत्रतुल्य। सुताना -क्रि० स० [हि० सुलाना] दे॰ 'सुलाना' । सुतवत्-सज्ञा पु० पुत्र का पिता। सुतापति -सञ्ज्ञा पुं० [स०] कन्या का पति । दामाद । जामाता । सुतवत्सल - सज्ञा पुं० [स०] [जी० सुतवत्सला] वह पिता जो पुत्र के सुतार'-सञ्ज्ञा पु० [स० सूत्रकार, प्रा० सुत्तार>सुत्तार] १ वढई । प्रति वात्सल्य से युक्त हो [को०] । २ शिल्पकार । कारीगर। सुतवस्करा-सज्ञा स्त्री० [म०] सात पुत्र प्रसव करनेवाली स्त्री। वह सुतार-वि॰ [स० सु+ तार] अच्छा। उत्तम । उ०--कनक रतन स्त्री जिसके सात पुत्र है। मणि पालनो अति गढनौ काम सुतार । विविध खिलौना भॉति सुतवान्--वि०, सज्ञा पु० [स• सुतवत्] दे॰ 'सुतवत्' । भाति के गजमुक्ता बहुधार । —सूर (शब्द॰) । सुतवाना-क्रि० स० [हिं० सुताना] दे० 'सुलवाना'। उ०—फिर सुतार--सज्ञा पु० सुभीता । उपयुक्त समय । सुविधा । सेजचतुर को अच्छा बिछौना करवा पलग पर सुतवाया।- क्रि० प्र०-बठना। सुतार-वि० [स०] १ अत्यत उज्वल । २ जिसकी आँख की पुतलियाँ सुतश्रेएो-सज्ञा स्त्री॰ [स०] मूसाकानी। मूपिकपर्णी। विशेष दे० सुदर हो। ३ अत्यत उच्च । 'मूसाकानी'। सुतार'-सज्ञा पु० १ एक प्रकार का सुगधिद्रव्य । २ एक आचार्य का नाम । ३ साख्य दर्शन के अनुसार एक प्रकार की सिद्धि । सुतसुत-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पुत्र का लडका । पौन (को०] । गुरु से पढे हुए अध्यात्मशास्त्र का ठोक ठोक अर्थ समझना। सुतसोम-सञ्ज्ञा पुं० [म.] १ भीमसेन के एक पुत्र का नाम । २ सुतार -सज्ञा पु० [देश॰] हुदहुद नामक पक्षी। वह जो सोम का सेवन करता हो । सोम तर्पण करनेवाला। सुतारका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] बौद्धो की चौबीस शासन देवियो मे से सुतसोमा--सचा स्त्री॰ [स०] श्रीकृष्ण की एक पत्नी [को०] । एक देवी का नाम । सुतस्थान-सञ्ज्ञा पु० [सं०] जन्मकुडली मे लग्न से पचम स्थान । सुतारा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ साख्य के अनुसार नौ प्रकार की तुष्टियो विशेष-फलित ज्योतिष क अनुसार सुतस्थान पर जितने ग्रहो की मे से एक । २ साख्य के अनुसार आठ प्रकार की सिद्धियो मे दृष्टि रहता है, उतनी हो सताने हातो ह। पुल्लिग ग्रहो की से एक । दे० 'सुतार" | ३ एक आभूपण। दृष्टि से पुत्र और स्त्री ग्रहा को दृष्टि स कन्याए होती है। सुतारो'-सज्ञा स्त्री॰ [स० सूत्रकार] १ मोचियो का सूपा जिससे वे जूता सात है । २ सुतार या वढइ का काम । सुतर-सञ्ज्ञा पुं० [स० सूत्रधर, प्रा० सूत + हर दे० सुतर' । उ०- सुधरि मुवारक तिय वदन परी अनक अभिराम | मनो सौम पर सुतारी'चा पु० [हिं० सुतार शिल्पकार। कारोगर। उ०-- हरिजन माण का काठरा आप सुतारी आहि । मुएहू न त्यागत सूत हूं राखी सुतहर काम । -मुबारक (शब्द०)। टकानज ताह त छाड्या नाहि।-विश्राम (शब्द०)। सुतहा'-सज्ञा पुं० [हि• सूत + हा (प्रत्य॰)] सूत का व्यापारी। सुतार्थी-वि० [स० सुतायिन्] पुन का कामना करनेवाला। जिसे पुत्र सूत बचनवाला। का अभिलाषा ही। पुनाया। सुतहा -वि० सूत का । सूत सवधी। सुताल-संशा पु० [सं०] सगात म ताल का भेद [को०] । सुतहा'-सज्ञा पु० [स० शुक्ति] दे० 'सुतही। सुताली-सहा खा[स० सूत्रकार द० 'सुतारी'। सुतहार-सञ्ज्ञा [स० सूत्रधार, प्रा० सुत्तधार, सुत्तहार] दे० सुतासधु-संज्ञा सा॰ [स० सिन्धुसुता] लक्ष्मी । सिंधुसुता । उ०-- 'सुतार"। उ०-कनक रतनमय पालनो रच्यो मनहुँ मार चाक्रत हाई नीर म बहुरि बुडका दई सहित सुतासिधु तहँ दरस सुतहार । विविध खेलौना किंकिनी लागे मजुल मुकुताहार। पाए ।--सूर० (राधा०), प० २५७७ । तुलसा (शब्द०)। सुतासुत--सञ्ज्ञा पु० [स०] पुत्रो का पुन । दोहिन । नातो। सुहिबुक योग सझा पुं० [स०] विवाह का एक योग । सुतिातडा, सुतितिडी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सुतिन्तिडा, सुतिन्तिडी] इमली (को०] । विशेष-विवाह के समय लग्न मे यदि कोई दोष हो और सुतहि- सुति-ता खा. [स०] सामरस का निष्कषण (को०] । बुक योग हो, तो सारे दोष दूर हो जाते है। सुतिम@--तज्ञा ना॰ [स० सु + हिं० तिय] सुदर स्त्रो। उ०--भगति सुतही-सचा स्त्री॰ [स० शुक्ति] दे॰ 'सुतुही'। सुतिन कल करन विभूपन ।--मानस, १।२० । सुतहौनिया-मशा पु० [देश॰] दे॰ 'सुथोनिया'। सुतिक्त--सज्ञा पुं० [स०] पित्तपापड़ा । पर्पटक ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३५५
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