पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४१८

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। (शब्द०)। सूअरबियान ७०३८ सूकरदंष्ट्र हैं । राजपूतो मे जगली सूअरो के शिकार की प्रथा बहुत दिनो सूईकार-सज्ञा पुं० [सं० सूचीकार] सूई से मिलाई करनेवाला दर्जी । से प्रचलित है । इसके शिकार मे बहुत अधिक वीरता और उ०-जरकमी सूईवार के बहु मांति तन पं धारही।- साहस की आवश्यकता होती है। कही कही इमकी चरबी -प्रेमधन०, पृ० ११५। मे पूरिया पकाई जाती है, और इसका मास पकाकर या अचार सूईडोरा-मश पुं० [हिं० मूई + टोग] मात्रय भ की एक कमरत । के रूप मे खाया जाता है । वैद्यक के मत से जगली सूअर मेद, विशेप-पहले मोधी पकड के ममान मानयन के ऊपर बल और वीर्यवर्धक है। चढने के ममय एक बगन में से पांव मासभ को लपेटते पर्या०-शूकर । सूकर । दष्ट्री । भूदार। स्यूलनासिक । दतायुध । हुए बाहर निकालना और मिर को उठाना पटना है। उस समय वक्रवस्त्र । दीर्घतर । पाखनिक । भूक्षित । स्तब्धरोया । मुखला हाय छूटने का वडा डर रहता है। इसमें पीठ मालखभ गूल ग्रादि। की तरफ और मुह लोगो की तरफ होता है। जब पान नीचे २ निकृष्टता सूचक एक प्रकार की गाली। जैसे,--सूअर कही का। या चुकता है, तर उपर का उलटा हाथ छोडकर मालखभ को सूअरबियाना-सञ्चा स्त्री॰ [हिं० सूअर + विग्राना (= जनना)] १ छाती से लगाए रहना पड़ता है। यह पकड वही ही कठिन है। वह स्त्री जो प्रति वर्प बच्चा जनती हो। वरम वियानी । वरसा- सूक'-राज्ञा पुं० [म.] १ तीर । वाण । २ वायु । हवा । ३ कमन । इन । २ हर साल अधिक बच्चे जनने की क्रिया । । ह्रद के एक पुत्र का नाम । सूअरमुखी-सज्ञा स्त्री० [हिं० सूअर + मुखी] ज्वार का एक प्रकार । सूक-सज्ञा [म० शुक्र] शुभ नक्षत्र । शुभ नारा। उ० -(क) बडी जोन्हरी या ज्वार। जग सूझा एकै नयनाहाँ । उग्रा मूक जम नपतन्ह माहाँ ।- सूश्रा'---सज्ञा पुं० [स० शुक, प्रा० सूत्र] सुरगा। तोता । शुक । कीर । जायसी (गन्द०) । (ख) नासिक देगि लजानेउ मूग्रा। मूक प्राइ बेमर होउ ऊया।--जायमी ग्र० (गुप्त), पृ० १८२ । उ०--सूमा सरस मिलत प्रीतम सुख सिंधुवीर रस मान्यो । जानि प्रभात प्रभाती गायो भोर भयो दोउ जान्यो ।-सूर सूकछमा-वि० [सं० मूक्ष्म, पु०हिं० मृक्षम, मूछम] दे० 'मदर' । 30-गुरु जी प्रो मूकछम का कुछ भेद पाऊँ । तुमारे चरन के तो बलिहार जाऊँ।-दक्विनी०, पृ० २६० । सूत्रा--मज्ञा पुं० [स० शूक ( = नुकीला अग्र भाग)] १ बडी सूई। सूकना-क्रि० अ० [म० शुप्फ, प्रा० मुक्क + हिं० ना (प्रत्य॰)] २ सीख । (लश०)। दे० 'सूखना' । उ०—(क) मांगी वर कोटि चोट बदलो न सूआन--सञ्ज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का बडा वृक्ष । चूकत है, सूकत है मुख सुधि पाये वहां हाल है।--भक्तमाल विशेष—यह वृक्ष वरमा, चटगांव और स्याम मे होता है इसके (शब्द॰) । (ख) जैसे सूफत सलिल के विकन मीन मति पत्ते प्रति वर्ष झड जाते है। इसकी लकडी इमारत और नाव होय ।-दीनदयाल (शब्द॰) । (ग) सुनि कागर नृपराज के काम मे पाती है। इससे एक प्रकार का तेल भी निकलता है। प्रभु भी आनद मुभाड। मानी वल्ली सूकते वीरा रम जल पाइ। सूई-सज्ञा स्त्री॰ [स० सूची] १ पक्के लोहे का छोटा पतला तार --म० रा०, ११६६। जिसके एक छोर मे बहुत बारीक छेद होता है और दूसरे छोर सूकर'--सजा पुं० [स०] [सी० सूकरी] १ सूअर । शूकर । २ एक पर तेज नोक होती है । छेद मे तागा पिरोकर इससे कपडा सिया प्रकार का हिरन । ३ कुम्हार । कुभकार । ४ सफेद धान । जाता है। सूची। ५ एक नरक का नाम । ६ एक मछली (को०)। यौ० --सूई सागा । सूई डोरा। सूई का काम = सूई से बनाई हुई सूकर--माग पुं० [स० मु+ कर] सुकर्म करनेवाले । सुरुमी । उ०-- कारीगरी जो कपडो पर होती है। सूई का का= सूई वहु न्हाइ न्हाइ जेहि जल स्नेह । सव जात स्वर्ग सूकर सुदेह । का छेद । - राम च०,१०४। सूकरकद-संज्ञा पुं० [स० सूकर + कन्द] वाराहीकद । कि प्र० पिरोना।-सीना। सूकरक-मज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का शानिधान्य । मुहा०-सूई का फावडा बनाना = जरा सी बात को बहुत वडा सूकरक्षेत्र--संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन तीर्थ का नाम जो मयुग जिले बनाना । वात का वतगड करना। सूई का भाला वनाना = मे है और जो अब 'सोरो' नाम से प्रमिद्ध है। दे० 'सूई का फावडा बनाना' । उ०-जो लोग प्रिम हुमायूं सूकरखेत -मशा पुं० [स० सूकरक्षेत्र] दे० सूकरक्षेत्र' । उ०--मै पुनि फर के खिलाफ थे उन्होने मूई का भाला और तिनके का झडा निज गुर मन सुनी कथा सो सूकरखेत । समुझी नहिं तस बाल- बनाया ।—फिसाना०, भा० ३, पृ० ३०६ । पन तब अति रहेकै अचंत।-मानस, १।३०। २ पिन । ३ महीन तार का कांटा । तार या लोहे का काँटा सूकरगृह-सज्ञा पु० [०] शूकरो के रहने का स्थान । खोभार । जिससे कोई वात सूचित होती है। जैसे,—घडी की सूई, सूकरता-मज्ञा स्त्री० सं०] सूअर होने का भाव । सूअर की अवस्था । तराजू की सूई । ४ अनाज, कपास आदि का अँखुमा । ५ सूई सूप्ररपन। के आकार का एक पतला तार जिससे गोदना गोदा जाता है। सूकरदष्ट्र-मज्ञा पुं० [स०]] । प्रकार का गुदभ्रश (कांच निकलने ६ सूई के आकार का एक तार जिससे पगडी को चुनन का) रोग जिसमे खुज नी और दाद के साथ बहुत दर्द होता है और ज्वर भी हो जाता है। वैठाते है।