पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/५९

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पड़ती है। सवत् ४८७५ समक्ष सवत्-तशा पुं० [म० सम्वत् दे० 'सवत्' । हुए थे, जिनपर छोटे छोटे पानी के हौज तथा चारो गोर राबुल सबत -मा पु० [स० सम्वत्] दे० 'सवत्' । उ०-सबत सोरह सै के घने जगल लगे हुए थे।-पीतल०, भा॰ २, पृ० ३७ । एकतीना। करो कथा हरिपद धरि सोसा। -सानस, १३४ । २ गेहूँ अपवा जौ की बाल । ३ केश । अलक । जुत्फ । सबद्ध-वि० [स० नम्बर १ बँधा हुआ। जुडा हुआ । लगा हुआ। सबुल खताई-सज्ञा पुं० [फा०] तुर्किस्तान का एक पौधा जो औषध २ मधयुक्त । मिला हुआ। ३ बद । ४ सयुक्त । सहित । के काम मे पाता है और जिसकी पत्तियो की नसे गिटाई मे ५ अनुरक्त (को०)। ६ विपयक (को॰) । सबद्धदप-० [म० सम्बद्वदर्प] अभिमानी । घमडी । दर्पयुक्त [को॰] । सबेसर- पक्षा पुं० [सं० सम्+हि० बसेरा] निद्रा । नीद। (डि०) । सवर-सज्ञा पु० [स० सम्बर] १ निग्रह । निरोध। प्रतिबध । रोक । सबोध-सज्ञा पुं० [स० सम्बोध] १ सम्यक ज्ञान । पूरा बोध । २ २. सेतु । बाँध । पुल (को०)। ३ दे० 'शवर'। पूर्ण तत्ववोध । प्री जानकारी। ३ धीरज । सात्वना । यौ०-मवररिपु = मनसिज । कामदेव । ढारस । ४ समझाना । व्याख्यान करना । सूचित कारना (d) ५ प्रेपण । क्षेपण (को०)। ६ हानि । विनाश (को०)। सवरए-पज्ञा पु० [स० सवरण] रोकना । दे० 'सवरण'। सबोधन-ससा पु० [स० राम्बोधन] [वि० सबोधित, सवोग] १ सबल-सज्ञा पु० [स० सम्वल] १ शाल्मली। सेमल का वृक्ष। २ जगाना । नीद से उठाना । २ पुकारना। श्राहान करना । ३ रास्ते का भोजन । सफर खर्च । ३. गेहूँ की फसल का एक रोग जो पूरब को हवा अधिक चलने से होता है। ४ सेतु । व्याकरण मे वह कारक जिससे शब्द का किसी को पुकारने बाँध (को०)। या बुता के लिये प्रयोग गचित होता है। जैसे,--हे राग ! ५ सखिया। आखु पापाण। सोमलक्षार । ४ जताना । शान कराना। विदित कराना। ५ नाटक गे शेप अर्य के लिये दे० 'शवर' और 'शबल' । आकाशभापित। ६ सगभाना बुझाना। समाधान करना। सवाद-पझा पू० [स० सम्बाद] दे० 'संवाद' । उ०-सो सवाद ७ सबोधन में प्रयुक्त किया जानेवाला शन्द (को०। ८ जान- उदार जेहि विधि भा आगे कहब ।—मानस, १।१२० । कारी करना । समझना (को०)। सबाव-सबा पु० [स० सम्बाध] १ बाधा । अडचन । कठिनता। २ भीड । सघर्ष। ३ भग। योनि । ४. कष्ट । पीडा। सबोधना--नि० स० [सं० सम्बोधन] सगझाना। प्रबोध देना। दवाव । पीडन । ५ नरक का पथ । ६ डर । भय (को०)। सात्वना देना। उ०--(क) बाजी सत दीने बगसि सबोधे रात ७ मॅकरा रास्ता । तग राह (को॰) । भ्रात । -पृ० रा०, ५।३१। (य) ज्यो ज्यो ऐसी वातन मँदोदरी सवोधे त्यो त्यो, देव दुख पाये कहे पैसे समुभाए । सवाध-वि०१ सकीर्ण । तग। २ जनपूर्ण। भीड से भरा हुआ। याकी वात माने सिय लैने जाइ गिते यह पोरन बिमारि यागो ३ भरा । पूर्ण । सकुल। सौगुन वढाइए ।--हृदयराम (शब्द०)। सवाधक-सञ्ज्ञा पु० [स० सम्बाधक] १ दवानेवाला । सतानेवाला। २ सबोधि--सना जी० [सं० मम्नोधि] (वौद्ध दर्शन मे) पूर्ण ज्ञान (यो०। वाधा पहुंचानेवाला । ३ भीड करनेवाला (को॰) । सबोधित-वि० [सं० मम्बोधिन] १ जिसे चेताया गया हो। बोध सवाधन-सत्रा पुं० [स० सम्बाधन] १ दबाव । रेलपेल । २ रोकना । वाधा देना । ३ अवरोध । रोक । फाटक । ४ योनि । भग। कराया हुआ। २ जिसका ध्यान आकृष्ट किया गया हो। ५ शूलाग्न । ६ द्वारपाल । ग्राहत । पुकारा हुमा [mo) । सबाधना----सरा खो० [स० सम्वाधना] रगडने या घिसने की क्रिया । सबोध्य--सन्ना पुं० [स० राम्बोध्य] १ वह जिराको सवोधन किया घर्पण (को॰] । जाय।२ जिरो गमभागा या जताया जाय । सबी-मता सी० [स० शिम्बी] फली । समोसा--सचा पुं० [फा० गवोमह, '] एक पकवान जो सिंघाडे के सबुक---सक्षा पुं० [८० शम्बुक, शम्बूक] १ दे० 'शबुक', 'शबूक' । उ०- आकार का हाता है । दे० 'समोगा'। सबुक मेक सेवार समाना। इहाँ न विपय कथा रस नाना । सबौधिया--सहा पुं० [दश०] वैश्यो की एक जाति । -मानस, ११३८ । २ दे० 'शवूक' । सबृहए--सझा पुं० [म० सम्बृ हण] १ अच्छी प्रकार गे पुष्ट या तेजस्- सवुद्ध-वि० [स० सम्बुद्ध] १ जाग्रत । ज्ञानप्राप्त । सचेत । २. युक्त करना । २ वह जो पुष्टिकारक हो । शक्तिप्रद [को०)। ज्ञानी । ज्ञानवान् । ३ पूर्ण रूप से जाना हुआ । ज्ञात । सभक्त-वि० [सं० सम्भक्त] १ विभक्त । जो बाँट दिया गया हो । सवुद्ध-सहा पु० १ वुद्ध । २ जिन । २. TITI भाग लेनेवाला । ३ अत करण में किसी सवुद्धि-त-ग सी० [स० सम्वुद्धि] १ पूर्ण ज्ञान । सम्यक् बोध । २ । भक्त । ४ उपभोग करनेवाला [ital बुद्धिमानी। होशियारी । ३ दूर से पुकार । आह्वान । ४ सभक्ति १० सम्मकिन] १ प्रदान करने का भाव । दे पदवी। उपाधि (को०)। ५ (व्याकरण मे) सबोधन कारक भाग या हिम्मा लेना। ३ श्रद्धा या तथा उसकी विभक्ति का चिह्न (को०) । ६ पूर्ण चेतना (को०)। । सबुल-सा पु० [फा० सवुल] १ एक सुगवित बनौपधि । वालण्ड । मम्मक्ष] १ क माय भोजन उ०-नकली नदियो के किनारो पर पत्थर के नकली टीले वने इता हो। ३ भक्षण। भोजन स