पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/८९

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४६०५ सकत' सपूत। । का सूचक अक्षर । जैसे,-रे, ग, म, ध, नि, स। १४ छद सईस--मज्ञा पुं० [अ० साइस। दे० 'साईस'। शास्त्र मे 'सगण' शब्द का सूचक अक्षर या सक्षिप्त रूप । सउँ पु-अव्य. हिं• मो) दे० 'सो' । दे० 'सगण' । १५ घेरा । वाड (को०)। सउख-मचा पु० [अ० शौक ] दे० 'शोक' । स'--उप० एक उपसर्ग जिसका प्रयोग शब्दो के प्रारभ मे, कुछ सउजा) --मशा पु० [म० शावक या देशी] पाखे टकरने योग्य जत् । विशिष्ट अर्थ उत्पन्न करने के लिये होता है। जैसे,—(क) शिकार। साउज । बहुव्रीहि समास मे 'सह' के अर्थ मे। जैसे, -सजीव - सह + सउता-पक्षा श्री० [म० सपत्नी] दे॰ 'सौत' । जीव । सपरिवार = सह + परिवार। (ख) 'स्व' या एक ही' सउतिया -सञ्चा मी० [हि० सउत + इया (प्रत्य॰)] दे० 'सौत' । के अर्थ मे। जैसे,—सगोन । (ग) 'सु' के स्थान मे। जैसे,- सउतेला-वि० [हिं० सौत+एला (प्रत्य०) तेला) दे० 'सौतेला'। सआदत-पचा श्री० [अ० सपादत] १ मलाई । कल्याण । २ प्रताप । सऊर- पुं० [अ० शुऊर] दे० 'शउर'। इकवाल । ३ वरकत । शुभ होने का भाव (को०j । सककूर-पक्षा पुं० [रूमो सकन्कूर, अ० सकन्क र] गोह को तरह का एक जतु। यो०-मग्रादतमद =(१) सौभाग्य शील । (२) आज्ञापालक । विशेष-इसका रंग लाल या पीला होता है। इसका मास खारा सादतमदी=समादतमद होने का भाव । और फीका होता है, पर बहुत बलवर्धक माना जाता है। इसे सइपुर-अव्य० [स० सह] से । साथ । रेत की मछली या रेगमाही भी कहते है । सइ पुर--प्रव्य० [प्रा. सु तो] एक विभक्ति जो करण और अपादान सकटक'-सज्ञा पुं० [म० सकण्टक] १ करज वृक्ष । कजा। पूर्ति कारक का चिह्न है। करज । दुर्ग धकरज । २ सिवार । शैवाल । मेवार । सइअना-सक्षा पु० [स० शोभाजन, हि सहिजन] दे॰ 'सहिजन' । सकटक-वि०१ कंटकयुक्त । काँटो से भरा हुआ। केटीला। २ सइन-सज्ञा स्त्री० [सं० सन्धि] नाड़ो का व्रण । नासूर । खतरनाक । कण्टदायी [को०] । सइना-मना सी० [हिं० सेना] दे॰ 'मेना' । सकपन-वि० [म० सकम्पन] १ जो कपन के साथ हो। २ कपन- सइयो 9+~मक्षा स्त्री॰ [सं० सखी, प्रा. सहीयो] मखी । सहेली। युक्त । काँपता हुआ [को०] । सइला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म० शल्य] लकड़ी की वह खूटी या गुल्ली जो सक-ज्ञा पुं० [स० शक] दे० 'शक' । गाडी के कंधावर में लगाई जाती है। इसके लगने से बैल सक-पञ्चा सी० [हिं० शक्ति, सकत] दे॰ 'शक्ति', 'सकत' । की गरदन दो मैलो के बीच रहरी मे ठहरी रहती है और वह सकपुर--मला पुं० [अ० शक्| सदह । शका शक । इधर उधर नही हो सकता। कभी कभी यह लोहे की भी सक'--मचा पृ० [स० शाका साका। धाक । होती है। समदूल । संला । घुल्ला । सइल@-सञ्ज्ञा पुं० [स० शैल] दे० 'शैल' । उ.-मत्तभट मुकुट मुहा०-नक वॉधना = (१) धाक बांधना । (२) मर्यादा स्थापित करना। दसकध साहम सइल स ग विद्दरनि जनु बज्न टांकी । -तुलसी यी०-मकवधी धाक बाँधने या मर्यादा स्थापित करनेवाला। ग्र०, पृ०१६३ । उ.- ही सो रतनमेन सकबधी। राहु बेधि जीता सैरधी। सइवरी-मज्ञा पुं० [सं० शैवल] मेवार । शैवाल । -जायमी (शब्द०)। सई- समा मी० [अ० सही] मल्लाहो की परिभाषा मे नाव खीचने मकट' -पञ्चा पुं० [स० शकट] शकट । गाडो। छकडा । सग्गड की गून को कडा करना। उ.-कोटि भार सकटनि महँ भरि कै । भए पठावत आनंद सई-सच्चा पुं० [अ०] पराक्रम । प्रयत्न । कोलिश । करि के।-गिरिधरदास (शब्द॰) । यो०-सई मिफारिश = दौड़धूप या कोशिश पैरवी। सकट' --पक्षा पुं० [स०] शाखोट वृक्ष । सिहोर । सई-सज्ञा स्त्री॰ [म० श्री] वृद्धि । बरकत । उ०-खग मृग सवर सकट' -वि० अधम । जघन्य । नीच । कुरा [को०] । निसाचर मब की पूजो बिनु वाढी सई ।-तुलसी (शब्द०)। सकटान्न -सञ्ज्ञा पुं० [म०] जिसे किमो प्रकार का अशौच हो, उसका सई"-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक नदो का नाम जो शाहजहाँपुर से निकल अन्न । अशौचान्न । प्रशुद्ध अन्न । कर जीनपुर मे गोमती से मिलती है। उ०-सई तीर बसि विशेष-शास्त्रो मे इस प्रकार का अन्न खाने का निषेध है, चले विहाने । शृगवेरपुर सव निगराने ।-मानस, २०१८६ । और कहा गया है कि जो ऐसा अन्न खाता है, उसे भी अशीच सई-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० मखी, प्रा. सही। दे० 'सखी'। हो जाता है। सईकटा-सज्ञा पुं० [स० शतकण्टक या सकण्टक] एक प्रकार पेड। सकटी-मचा बी० [सं० शकटो] १ गाडी । २ छोटा सग्गड । डि.)। सईद-वि० [१०] १ तेजस्वी । २ भाग्यशाली। खुशनसीव । ३ सकड़ी-शा स्त्री॰ [स० शृङखली] दे॰ 'सिकडो', 'सिकरी' । कल्याणकारी। मागलिक । शुभ को०] । सकता-सञ्ज्ञा ली० [स० शक्ति] १ बल । शक्ति । सईल-सचा स्त्री० [सं० शैल, प्रा० सइल] दे० 'सइल' । ताकत । २ वैभव । सपत्ति । सामर्थ्य ।