पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१२२

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परमब्रह्मचारिणी २८३१ परमाणु परमब्रह्मचारिणी-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] दुर्गा । श्यकता नहीं। परमहंस आश्रम में प्रवेश करने पर मनुष्य परमभट्टारक-सज्ञा पुं० [सं०] एकच्छत्र राजामो की एक सब प्रकार के बधनो से मुक्त समझा जाता है । उसके लिये प्राचीन उपाधि । श्राद्ध, सध्या, तर्पण आदि आवश्यक नही। देवार्चन आदि भी उसके लिये नहीं है, किसी को नमस्कार आदि करने से परमभट्टारिका-सचा स्त्री॰ [स०] १ प्राचीन काल में प्रयुक्त साम्राज्ञी की उपाधि । २ रानियो की एक सम्मानसूचक उपाधि । उसे कोई प्रयोजन नही। उसे अध्यात्मनिष्ठ होकर निद्वंद और निराग्रह भाव से ब्रह्म में स्थित रहना चाहिए। पर परममहत्-वि० [सं०] सबसे बड़ा और व्यापक । आजकल कुछ परमइस देवमूर्तियों का पूजन आदि करते हैं, विशेष-काल, प्रात्मा, आकाश और दिक् ये सर्वगत होने के पर नमस्कार नहीं करते। कारण परम महत् कहलाते हैं। २ परमात्मा । उ०—परमहस तुम सबके ईस । बचन तुम्हारो परममहाभट्टारक-सच्चा पुं० [स०] प्रचीन काल में महाराजाधिराजो श्रुति जगदीस ।--सूर (शब्द॰)। की उपाधि। परमांगना-सचा स्त्री॰ [सं० परमानना ] श्रेष्ठ महिला। अच्छी परमरस-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] पानी मिला हुआ मट्ठा। जलमिश्रित स्त्री [को॰] । तक। परमा-सञ्चा स्त्री० [सं०] चव्य । परमर्दिदेव-सञ्चा पु० [ स०] महोबे के एक चदेलवशी राजा जो परमाg२—सञ्चा स्त्री० शोभा। छवि । खूबसूरती । उ०-बानी आल्हा मे राजा परमाल के नाम से प्रसिद्ध हैं। पृथ्वीराज ने मधुरी वास बन परमा परम बिसाल । -दीनदयाल इनपर चढ़ाई करके इनको अधीन किया था। (शब्द०)। परमर्मज्ञ-वि० [सं०] परकीय मन का ज्ञाता। दूसरे के भेद को विशेष—यह प्रयोग जाननेवाला [को०] । 'सुषमा परमा शोभा' मे 'परमा' विशेषण को पर्याय समझने के कारण चल पड़ा है। परमर्षि-सचा पुं० [स०] महान ऋषि [को०] । परमा—सञ्चा पुं० [ स० प्रमेह ] प्रमेह रोग । पस्मल'-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिमल (= फूटा हुआ, मला हुआ ?) ] परमाक्षर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] ॐकार । ब्रह्म [को॰] । ज्वार या गेहूँ का एक प्रकार का भुना हुआ दाना या चवेना । विशेष-इसे बनाने के लिये पहले ज्वार को भिगोकर कूटते हैं परमाटा-सचा पुं॰ [देश॰] सगीत मे एक ताल । और फिर भाड में भून लेते हैं। परमाटार-सञ्ज्ञा पुं० [अ० परमटा ] एक प्रकार का चिकना, चम- कीला और दबीज कपडा। परमल-मचा पु० [ स० परिमल ] दे० 'परिमल' । उ०-अरट बस लागें नही गुरु चदन की वास । रीते रहे गठीले पोले रज्जव विशेष-परमाटा प्रास्ट्रेलिया में एक स्थान है । वहां से जो ऊन परमल पास ।-रज्जब०, पृ० १२ । आता था उससे एक प्रकार का कपडा बनता था जिसका परमली, परमल-वि० [हिं० परमल + ई ] १ परिमल सबधी । ताना सूत का और बाना ऊन का होता था। उसी को पर- पुष्पपराग का । जिसमें परिमल हो । उ०—(क) सहस गुजार माटा कहते थे । पर अव परमाटा सूत का ही बनता है। मे परमली झाल है, झिलमिली उलटि के पौन भरना ।- परमाटिक-सक्षा पुं० [स०] यजुर्वेद की एक शाखा का नाम (को०] । पल०, पृ० ३० । (ख) राधे उघटत परमलू प्रगटत अद्भुत परमाण-मज्ञा पुं॰ [सं० प्रमाण ] दे॰ 'प्रमाण'। उ०-चरण प्रोप । मैन, फिरंगी की मनी छूटन लागी तोप ।-ग्रज० ग्र०, देखाड तो परमाण। स्वामी माहरै नैणो निरखू मांगू ये ज पृ०१६। मान ।-दादू०, पृ० ५६१ । परमहस-संज्ञा पुं॰ [सं०] १ सन्यासियों का एक भेद । वह संन्यासी परमाणु-सज्ञा ० [सं०] अत्यंत सूक्ष्म अणु । पृथ्वी, जल, तेज और जो ज्ञान की परमावस्था को पहुंच गया हो अर्थात् 'सच्चिदा वायु इन चार भूतो का वह छोटे से छोटा भाग जिसके फिर नद ब्रह्म मैं ही हूँ' इसका पूर्ण रूप से अनुभव जिसे हो विभाग नही हो सकते। गया हो। उ०—संन्यासी कहावै तो तू तीन्यो लोक विशेष–वैशेषिक में चार भूतो के चार तरह के परमाणु माने न्यास करि सुंदर परमहस होइ या सिघत है। -सुदर ग्र०, हैं-पृथ्वी परमाणु, जल परमाणु, तेज परमाणु और वायु- भा० २, पृ० ६१२ । परमाणु । पांचवा भूत आकाश विभु है। इससे उसके टुकडे विशेष-कुटीचक, बहूदक, हस और परमहस जो चार प्रकार नही हो सकते। परमाणु इसलिये मानने पडे हैं कि जितने के अवधूत कहे कए है उनमे परमहस सबसे श्रेष्ठ है। जिस पदार्थ देखने में आते हैं सब छोटे छोटे टुकडो से बने हैं। इन प्रकार संन्यासी होने पर शिखासूत्र का त्याग कर दंठ ग्रहण टुकडो में से किसी एक को लेकर हम वराबर टुकडे करते करते हैं उसी प्रकार परमहस अवस्था को प्राप्त कर लेने पर जाये तो अंत में ऐसे टुकडे होगे जो हमे दिखाई न पड़ेंगे। दंड की भी आवश्यकता नहीं रह जाती। निर्णयसिंधु मे किसी छेद से आती हुई सूर्य की किरणो मे जो छोटे छोटे लिखा है कि जो परमहस विद्वान् न हो उन्हे एक दड धारण कण दिखाई पड़ते हैं उनके टुकडे करने से अणु होगे। ये अणु करना चाहिए पर जो विद्वान हो उन्हें दह की कोई आव भी जिन सूक्ष्मतिसूक्ष्म कणो से मिलकर बने होगे उन्ही