पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म० निकाला हुआ। पकमडूक २७२६ पंख पंफमडूक-[ मं० पकमण्डूक ] १ घोंघा । २ छोटी सीप । सुतही। ८ ( जीवो या प्राणियो की ) वर्तमान पीढ़ी (को०)। ६ पृथ्वी पकरुह-मचा पुं० [ स० पक्के रुह ] कमल । उ०—पुनि पुनि प्रभु पद (को०)। १० प्रसिद्धि (को०)। ११ पाक (को॰) । कमल गहि जोरि पकरह पानि । बोली गिरिजा वचन वर पक्तिकटक-वि० [ पडि क्तकयटक ] पक्तिदूषक । मनहु प्रेम रस सानि ।—मानस, १२११६ । पंक्तिका-सञ्ज्ञा श्री० [ म० पडि क्तका ] पक्ति । लाइन [को०] । पंकवारि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पङ्कवारि ] कांजी। पक्तिकृत-वि० [ म० पडि क्तकृत ] श्रेणीबद्ध । पकवास-मज्ञा पु० [ म० पङ्कवास ] केकडा । कर्कट । पंक्तिग्रीव-सज्ञा पुं० [ सं० पडि क्तग्रीव ] रावण । पकशुक्तिमा सी० [ स० पङ्कशुक्ति ] १. ताल मे होनेवाली पक्तिचर-सशा पुं॰ [ २० पडि क्तचर ] कुरर पक्षी। सीप । सुतही। २ घोघा। पंक्तिच्युत-वि० [ म० पटि क्तच्युत ] किसी कलक, दोष आदि के पकशूरण-मज्ञा पु० [सं० पङ्कशूरण ] कमल की जह । को०] । कारण जाति की श्रेणी से बाहर किया हुमा । विरादरी से पकसूरण-सक्षा पु० [सं० पङ्कसूरण ] दे० 'पकशूरण' [को०] । पकार-पशा पु० [ मं० पङ्कार ] १ एक पेड जो गडहो के कीचडो में पक्तिदूष-वि० [म०] दे० 'पक्तिदूषक' (को०] । होता है । इस पौधे में स्त्री भौर पुरुष दो अलग जातियाँ होती पंकिदूषक'—वि० [म० पडि क्तदूपक ] पगत को दूपित करनेवाला। हैं। २ जलकुन्जक । ३. सिंघाडा । ४. सेवार । ५. पुल । नीच । कुजाति । जिसके साथ एक पक्ति में बैठकर भोजन ६ बाँध । सेतु । ७ सीढ़ी। नहीं कर सकते। पकिल'-वि० [ म० पतिल ] जिसमे कीचड हो। कीचडवाला । पंक्तिदूषक'—सशा पु० ऐसे ब्राह्मण जिनको मनु प्रादि के मत से श्राद्ध उ०-उतरकर पर्वत से निझरी भूमि पर पकिल हुई, सलिल में भोजन कराना या दानादि देना निपिद्ध माना गया है। देह कलुषित हुआ।-अनामिका, पृ० ७ ॥ विशेप-इनकी गणना मनुस्मृति अध्याय ३ मे दी गई है। पकिल-सज्ञा पुं० वढी नाव । बजहा । पक्तिपावन-सज्ञा पु० [ स० पड क्तिपावन ] १ वह ब्राह्मण जिनको पकिलता-मज्ञा स्त्री॰ [ स० पक्किलता ] कीचयुक्त होने की अवस्था यज्ञादि में बुलाना, भोजन कराना और दान देना श्रेष्ठ माना या भाव । २. मैल । गदगी । ३ कालिमा । कलुष [को०] । गया है। पकेज-सज्ञा पुं० [ स० पक्केज ] दे॰ 'पंकज'। विशेष-मनु आदि स्मृतियो मे ऐसे ब्राह्मणो की गणना दी गई पकेरुह-सञ्ज्ञा पुं० [ से० पङ्केरुह ] १. पकरुह । कमल । २ सारस है । शास्त्रों का कथन है कि ऐसा ब्राह्मण यदि एक भी मिले (को०) । तो वह ब्राह्मणो की पक्ति को पवित्र कर देता है। पकेशय-वि० [सं० पकेशय ] कीचड में निवास करनेवाला [को०] । पकेशया-सझा स्री० [म० पकेशया ] जोक । २ वह गृहस्थ जो पचाग्नियुक्त हो। पक्तिवद्ध-वि० [म. पहि क्तवद्ध] थेणीवद्ध। पांति मे लगा हुप्रा । पक्चर--सन्ना पुं० [अ० ] ( रबड के ) ट्यूब या ब्लेडर में किसी कतार में बंधा हुआ। नोकदार चीज के चुभने से होनेवाला छेद । १०-मोटरकार के पिछले दोनो पहियों में पक्चर हो गए ।तारिका, पक्तिबाह्य-वि० [ मै० पटि क्तवाह्य ] पगत से निकाला हुआ । पृ०१५४ । जातिच्युत । पक्ति-सज्ञा लो. [ म० पटि क्त ] १ ऐसा समूह जिसमें बहुत सी पंक्तिबीज-देश० पु० [म० पछि क्तवीज ] १ बबूल । २ उरगा । ३ (विशेषत एक ही या एक ही प्रकार की ) वस्तुएँ एक दूसरे करिणकार । के उपरात एक सीध में हों। श्रेणी। पाती। कतार । पंक्तिरथ-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पदिक्तरथ ] राजा दशरथ । लाइन । २ चालीस अक्षरों का एक वैदिक छंद जिसका वर्ण पंक्ती-सशा सी० [ म० पडि क्त ] एक वणिक छद । दे० 'पक्ति'३। नील, गोत्र भार्गव, देवता वरुण और स्वर पचम है । ३. एक उ०—भाग गुनै को। नारि नरा को । नाहिं लखती। वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में पांच पांच अक्षर प्रर्थात् एक अक्षर पक्ती। भगण और प्रत में दो गुरु होते हैं। ४. दस की सख्या। ५. पंक्यज-सज्ञा पु० [ स० पङ्कज ] दे० 'पकज'। उ०—सिव सेना मे दस दस योतामों की श्रेणी। ६. कुलीन ब्राह्मणों सनकादिक नारदा, ब्रह्म लिया निज बास जी। कहैं कवीर पद की श्रेणी। पक्यजा, अब नेडा चरण निवास जी।—कबीर ग्र०, पृ०६८ । यो०-पक्तिच्युत । पक्तिपावन । पंख-सञ्ज्ञा पु० [म० पक्ष, प्रा० पक्ख ] १. पर । डैना । वह अवयव ७ भोज में एक साथ बैठकर खानेवालो की श्रेणी। जैसे,- जिससे चिडिया, फतिगे आदि हवा में उहते हैं । उ०—(क) उनके साथ हम एक पक्ति में नहीं खा सकते । पख छत्ता परबस परा सूपा के बुधि नाहि ।—कबीर (शब्द०)। यो०-पक्तिमेद। ( ख ) काटेसि पख परा खग घरनी।—तुलसी (शब्द०)। विशेप-हिंदू प्राचार के मनुसार पतित आदि के साथ एक पक्ति मुहा०-पख जमना =(१) न रहने का लक्षण उत्पन्न होना। में बैठकर भोजन करने का निपेध है। भागने या चले जाने का लक्षण देख पडना । जैसे,—इस नौकर