पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१७४

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पर्वक २८८३ पर्वत दुर्ग २ चातुर्मास्य । ३ प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा अथवा अमावास्या पुराणो मे पर्वतो के सवध में अनेक कथाएं हैं। सबसे अधिक तक का समय। पक्ष । ४ दिन । ५ क्षरण । ६. अवसर । प्रसिद्ध कथा यह है कि पहले पर्वतो के पख होते थे। अग्नि- मौका। ७ उत्सव । ८ सचिस्यान । वह स्थान जहाँ दो पुराण में लिखा है कि एक बार सब पर्वत उडकर असुरो के चीजें, विशेषत दो मग जुडे हो । जैसे, कुहनी अथवा गन्ने में निवासस्थान समुद्र में पहुंचकर उपद्रव करने लगे, जिसके कारण की गाँठ। ६ यज्ञ आदि के समय होनेवाला उत्सव अथवा असुरो ने देवतापो से युद्ध ठान दिया। युद्ध में विजय प्राप्त कार्य । १० प्रश । खड । भाग । टुकडा । हिस्सा । जैसे महा करने के उपरात देवतानो ने पर्वतो के पर काट दिए और भारत के अठारह पर्व, उंगली के पर्व ( पोर ) आदि । उन्हें यथास्थान बैठा दिया । कालिका पुराण में लिखा है कि ११ सूर्य अथवा चद्रमा का ग्रहण । जगत् की स्थिति के लिये विष्णु ने पर्वतो को कामरूपी बनाया पर्वक-सया पु० [स०] पैर का घुटना। था-वे जव जैसा रूप चाहते थे, तव वैसा रूप धारण कर लेते थे। पौराणिक भूगोल में अनेक पर्वतो के नाम पाए पर्वकार-सञ्ज्ञा पु० [स०] वह ब्राह्मण जो धन के लोभ से पर्व के हैं और उनके विस्तार आदि का भी उनमें बहुत कुछ दिन का काम और दिनो में करे। धनार्थ अन्य वेश धारण वर्णन है। उनके 'वर्षपर्वत' और 'कुलपर्वत' आदि कुछ भेद करनेवाला । वेशातरधारी। भी हैं। वराह पुराण मे लिखा है कि श्रेष्ठ पर्वतो पर पर्वकारी-सञ्चा पुं० [ म० पर्वकारिन् ] दे० 'पर्वकार'। देवता लोग और दूसरे पर्वतो पर दानव आदि निवास पर्वकाल-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ पर्व का समय । वह समय जब कोई करते हैं। इसके अतिरिक्त किसी पर्वत पर नागो का, किसी पर्व हो। पुण्यकाल । २ चद्रमा के क्षय का समय । जैसे, पर सप्तर्षियो का, किसी पर ब्रह्मा का, किमी पर अन्नि का, अमावास्या आदि। किसी पर इद्र का निवास माना गया है। पर्वत कही कही पर्वगामी-सज्ञा पु० [ म० पर्णगामिन् ] वह जो किसी पर्व के दिन पृथ्वी को धारण करनेवाले और कही कही उसके पति भी माने गए हैं। स्त्री के साथ भोग करे। ऐसा मनुष्य नरक का अधिकारी होता है। पर्या०- महीव्र। शिखरी । धर। अद्रि । गोत्र । गिरि । ग्रावा । पर्वण-सद्धा पु० [स०] १ पूरा करने की क्रिया या भाव । २. एक अचल । शैल । स्थावर । पृथुशेखर। धरणीकोलक । कुहार जीमूत । भूधर । स्थिर । कटकी । भृगी। अग। नग । पर्वणिका - सज्ञा स्त्री० [सं०] पर्वणी नाम का अाँख का रोग । भूभृत । अवनीधर । कुधर । धराधर । वृक्षवान् । पर्वणी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ सुश्रुत के अनुसार आँख की सधि में २ पर्वत की तरह किसी चीज का लगा हुआ बहुत ऊँचा होनेवाला एक प्रकार का रोग जिसमे प्रांख की सघि में जलन ढेर । जैसे,—देखते देखते उन्होने पुस्तको का पर्वत लगा और कुछ सूजन होती है । २. पूर्णिमा । पौर्णमासी । ३ प्रति दिया। ३ पुराणानुसार एक देवपि का नाम जिनकी पद् । परिवा। प्रतिपदा (को०)। ४. समारोह । उत्सव (को०)। नारद ऋषि के साथ बहुत मित्रता थी। ४ एक प्रकार की पर्वत-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ जमीन के ऊपर वह बहुत अधिक उठा हुमा मछली जिसका मास वायुनाशक, स्निग्ध, बलवर्धक और शुक्र- प्राकृतिक भाग जो पास पास की जमीन से बहुत अधिक ऊँचा कारक माना जाता है। ५ वृक्ष । पेड । ६. एक प्रकार का होता है और जो प्राय पत्थर ही पत्थर होता है । पहाड । साग । ७ दशनामी सप्रदाय के अतर्गत एक प्रकार के सन्यासी। ऐमे सन्यासी पुराने जमाने मे व्यान और धारणा करके विशेष-बहुत अधिक ऊँची सम भूमि पर्वत नही कहलाती। पर्वतो के नीचे रहा करते थे। ८ महाभारत के अनुसार पर्वत उसी को कहते हैं जो पास पास की भूमि को देखते हुए एक गधर्व का नाम । ६ सभूति के गर्भ से उत्पन्न मरीचि बहुत अधिक ऊँचा हो। कई देशो मे अनेक ऐसी अधित्यकाएँ के एक पुत्र का नाम । १० सात की सम्या का वाचक या ऊंची समतल भूमियां हैं जो दूसरे देशो के पहाडो से कम शब्द (को०)। ऊँची नही हैं, परतु न तो वे आस पास की भूमि से ऊंची हैं और न कोणाकार, अत वे पर्वत के अतर्गत नहीं हैं । साधा- पर्वतकाफ-सज्ञा पुं॰ [ स०] द्रोणकाक । डोम कौना । रण पर्वतो पर प्राय अनेक प्रकार की धातुएं, वनस्पतियां पर्वतकीला-पज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] घरित्री । वृथिवी को०] । और वृक्ष प्रादि होते हैं और वहुत ऊँचे पर्वतो का ऊपरी भाग, पर्वतज-वि॰ [ म० ] जो पर्दत से उत्पन्न हुप्रा हो। जिसे पर्वत की चोटी या शिखर कहते हैं, बहुधा वरफ से ढंका पर्वतजा-सज्ञा स्त्री॰ [म०] १ पार्वती । गिरिजा । २. नदी (को०) । रहता है । कुछ पर्वत ऐसे भी होते हैं जिनपर वनस्पतियाँ तो पर्वतजाल-सड़ा पु० [मं०] पहाडो का सिलसिला । पर्वतश्रेणी [को०] । विलकुल नहीं या बहुत कम होती हैं परतु जिनकी चोटी पर गड्ढा होता है, जिसमे से सदा अथवा कभी कभी आग निकला पर्वतऋण-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० ] एक प्रकार का तृण जो पशु बडे चाव से खाते हैं और जो पशुपो के लिये बहुत वलकारक होता करती है, ऐसे पर्वत ज्वालामुखी कहलाते हैं। (दे० 'ज्वाला- है। तृणाग्थ्य । मुखी पर्वत' ) । पर्वत प्राय श्रेणी के रूप मे बहुत दूर तक गए हुए मिलते हैं। पर्वत दुर्ग-सज्ञा पुं॰ [ स० ] पहाडी किला। राक्षस का नाम ।