पलटना २८५ पलटे दगा पाना वायापलट हो जाना । जैसे,—दो साल हुए मैंने तुमको कितना पलटनिया'-सज्ञा पुं॰ [ हि० पलटन + इया (प्रत्य॰)] । वह जो गुण देवा या, पर अब तो तुम्हारी हालत ही पलट गई है। पलटन मे काम करता हो। सेना का सिपाही। सैनिक । विशेष -इस अर्थ में यह क्रिया 'जाना' के साथ सदा सयुक्त जैसे,—नगर मे गोरे पलटनियो का पहरा था। रहती है, अकेले नहीं प्रयुक्त होती है । पलटनिया-वि० पलटन मे काम करनेवाला । पलटन का। ३ अच्छी स्थिति या दशा प्राप्त होना । इप्ट या वाछित जैसे,—सन् १८६३ के पहले सुपरिटेंडेट और असिस्टेंट या मिलना। किसी के दिन फिरना या पलटनिये अफसर होते थे। लौटना। जैसे,—(क) धैर्य रखो, तुम्हारे भी दिन अवश्य पलटेंगे। (ग) वरमो वाद इस घर के दिन पलटे हैं । (ग) पलटा-सज्ञा ० [हिं० पलटना ] १ पलटने की क्रिया या भाव । नीचे से ऊपर या ऊपर से नीचे होने की क्रिया या आपो रात तक तो उनका पाना वरावर पट रहा इसके बाद जो पलटा तो सारी कसर निकल पाई। ४ मुडना । घूमना । भाव । घूमने, उलटने या चक्कर खाने की क्रिया या भाव । परिवर्तन । पोडे फिरना। जैसे,-मैंने पलटकर देखा तो तुम भी पर पीछे आ रहे थे। ५ लौटना। वापस होना। जैसे,—तुम क्रि० प्र०-देना ।—पाना । कलकत्ते से कवतक पलटागे । (क्व०)। मुहा०-पलटा खाना = दशा या स्थिति का उलट जाना। पलटना-फि० स० १ किसी वस्तु की घिति को उलटना । किसी घूमकर या बदलकर विपरीत स्थिति या दशा मे पहुच जाना। वस्तु के निचले भाग को ऊपर या ऊपर के भाग को नीचे चक्कर खाना । उ०- उसके बाद ही न जाने । ग्रहचक ने परना । उलटी वस्तु को सीधी या सीधी को उलटी करना । कैसा पलटा खाया । - दुर्गाप्रसाद (शब्द०)। उलटना । प्रौधाना । जैसे,—( किसी वरतन यादि के लिये ) २ वदला । प्रतिफल । जैसे,—उसने अपनी करनी का अच्छी तरह तो रखा था, तुमने व्यर्थ ही पलट दिया। पलटा पा लिया। सयोकि०-देना। क्रि० प्र०-देना ।—पाना । २ किसी वस्तु की अवस्था उलट देना। किसी वस्तु को ३ नाव में वह पटरी जिसपर नाव का खेनेवाला बैठता है । ठीक उसकी उलटी दशा मे पहुँचा देना। अवनत को ४ गान में जल्दी जल्दी थोडे से स्वरो पर चक्कर लगाना । उन्नत या उन्नत को अपनत करना । काया पलट देना। जैसे,-दो ही वर्ष में तुम्हारी प्रवधकुशलता ने इस गांव की गाते समय ऊंचे स्वर तक पहुंचकर खूबसूरती के साथ फिर नीचे स्वरो की तरफ मुडना। ५ लोहे या पीतल की वही दशा पलट दी। खुरचनी जिसका फल चौकोर न होकर गोलाकार होता है । विशेप-इस अर्थ मे यह मिया सदा 'देना' या 'डालना' के इससे बटलोही मे से चावल निकालते और पूरी आदि उलटते साप मयुक्त होती है, अकेले नही आती। हैं । ६ कुश्ती का एक पेंच । ३ फेरना । बार वार उलटना। उ०-देव तेऽच गोरी के पितात गात वात लगे, ज्यो ज्यो सीरे पानी पोरे पान विशेष-इसमे जब ऊपरवाला पहलवान नीचे पड़े हुए पहलवान मो पलटियत । -देव (शब्द०)। ४ वदलना । एक वस्तु की कमर पकहता है तब नीचेवाला पट्ठा अपने दाहिने पैर मो त्याग पर दूमगे को ग्रहण करना । एक को हटाकर के पजे ऊपरवाले की टाँगो के वीच से डालकर उसकी वाई दूमगे को स्थापित करना । उ०-मृगननी हग की फरक टांग को फंसा लेता है और दाहिने हाथ से उसकी बाई कर उद्याह तन फूल । विन ही प्रिय आगमन के पलटन लगी कलाई पकडकर झटके के साथ अपने दाहिनी ओर मुड जाता दुएन । -विहारी (पाब्द०)। ५ बदलना । एक चीज देकर है और ऊपर का पहलवान चित गिर जाता है । दूसरी लेना । बदले मे लेना। वदला करना । (अप्रयुक्त) । पलटाना-क्रि० स० [हि० पलटना] १ लौटाना । फेरना । वापस उ०-(प) नरतनु पार विषय मन देही । पलटि सुधा ते करना । उ०-(क) तब सारथि स्यदन पलटावा । ले नरेश सठ यिष तेही । —तुलसी (शब्द०)। (ब) नजजन दुखित के आगे अावा ।-सवल (शब्द०) । २ बदरना (अप्रयुक्त)। प्रति तन छीत । ग्टत इटक चित्र चातर श्यामघन तनु उ०—काया कचन जतन कराया । बहुत भांति के लीन । नाहि पलटत वसन भूपन रगन दीपक तात । मलिन पलटाया।-कवीर (शब्द०)। बदन वितमि रहत जिमि तरनि हीन जल जात ।-सूर पलटाव-सज्ञा पु० [हिं० पलटना ] पलटने की क्रिया । (गब्द०) । ६ नही हुई बात वो अस्वीकार कर दूसरी बात पलटावना-क्रि० स० [हिं० पलटाना ] दे० 'पलटाना' । गहना । एप पात प्रन्यपा परके दूसरी वहना । एक वात में मुसकर दूसी पहना। जैने,-तुम्हारा क्या ठिकाना, पलटी-मया मरा [हिं०] • 'पलटा'। तुम ता रोद ही यहार पलटा इन्ते हो। ७ लौटाना । पलटे-क्रि० वि० [हिं० पलटा ] बदले में । एवज में। प्रतिफल फेरना । वापस करना। उ०-फिरि फिरि नृपति चलावत स्वरूप |--उ०-(क) पापु दयो मन फेरि लै, पलटे दीनी पात । रहो मुमत यहाँ तोहि पलटी प्राण जीवन कसे वन पीठ । पौन वानि वह रावरी लाल लुकावत दीठ |-विहारी जात । -सूर (मन्द०)। (शब्द०) । (ख) जे सुर सिद्ध मुनीस योगि वुध वेद पुरान
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१७९
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