पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८१

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पलवार २८४० पलानना कराना। पालन मे किसी को प्रवृत्त करना । उ०-(क) उ०-पियर पात दुस झरे निपाते । सुख पलहा उपने होय बडे यत्न से उन्हें पलवावै । - लल्लू (शब्द॰) । (ख) लेति राते । —जायसी। (शब्द०)। पखेरू पान ते कोइलिया पलवाय ।-शकुतला, पृ०६४ । पलांग-सहा पुं० [सं० पलाश ] सूस । शिशुमार । पलवार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पल्लव ] ईख बोने का एक ढग जिसमें पलांडु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पलाएड ] प्याज । खुए निकलने के बाद खेत को रूखे पत्तों, रहट्ठों प्रादि से पलॉण-मश पुं० [हिं० पलान ] दे० 'पलान' । उ०-सहज पलाण अच्छी तरह ढक देते हैं । नगरवा । पवन करि घोडा ल लगाम चित्त चवका । चेतनि असवार विशेष-इस तरह ढंकने से खेत की तरी बनी रहती है जिससे ग्यान गुरू करि और तजो सब ढवका ।-गोरख०, पृ० १०३। सिंचाई को आवश्यकता नही होती। करेली या काली मिट्टी में यही ढग बरता जाता है । अन्यत्र भी यदि सींचने का सुमीता पला' -सज्ञा पुं० [ म० पल ] पल । निमिप । या पावश्यकता न हो तो इसी ढग को काम मे लाते हैं। पला-सग पुं० [सं० पटल ] १ तराजू का पलडा । पल्ला। उ०-वरुनी जोती पल पला, टाँडी भौंह अमूप । मन पसग पलवार-सच्चा पुं० [हिं० पाल + वार ( प्रत्य०) ] एक प्रकार की बडी नाव जिसपर माल असवाव लादकर भेजते हैं। तौले सुङग, हरुवी गरुको रूप ।-रसनिघि (शब्द॰) । २. पटला। पल्ला। आँचल । उ०--समुझि बूझि दृढ़ है रहै, वल तजि निर्बल होय । कह कबीर ता सत को पला न पकड पलवारी। --सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं० पलवार+ई ( प्रत्य०) ] नाव सेनेवाला कोय । —कबीर (शब्द०) । ३ पार्य । किनारा । उ०- मल्लाह। नासिक पुल सरात पथ चला। तेहि कर भौंहैं है दुइ पला । पलवाला-वि० [सं० पल ( = मास) +चाल (प्रत्य॰)] हृष्ट पुष्ट । -जायसी (शब्द०)। बलवान् । पलवैया - सज्ञा पुं० [हिं० पालना+वैया (प्रत्य० ) ] पालन पला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पली ] तेल की पलो । करनेवाला । भरण पोषण करनेवाला । खिलाने पिलाने पलाग्नि-समा पुं० [स०] पित्त । वाला । पालक । पलाणि-सहा पुं० [ मं० पल्याण ] २० 'पलान' । ३०-दादू करह पलस-सञ्ज्ञा पुं० [म०] दे० 'पनस' [को०] । पलारिण करि को चेतन चढि जाइ । मिलि साहिब दिन पलस्तर - सक्षा पुं० [अ० प्लास्टर मि० स० पल ( = कीचड़ या देग्यता, साझ पड जनि पाइ। --दादू०, पृ० ३६२ । गिलावा ) + स्तर (= तह) ] मिट्टी, चूने आदि के गारे का पलातक-वि० [म० पलायक ] भडोगा। भागनेवाला। दौष्ठता लेप जो दीवार आदि पर उसे वरावर सीधी पौर सुडौल हुमा । उ०-मोटर की मुहती रोशनी के पलातक पालोक मे करने के लिये किया जाता है । उसने चौंककर और लजाकर देखा। -नदी०, पृ० १६५५ । क्रि०प्र०—करना । विशेष-व्याकरण की दृष्टि से यह शब्द अग्युत्पन्न है। मुहा० -पलस्तर ढीला करना = (१) तग करना । नसें ढीली पलाद -सज्ञा पुं० [सं० पल ( = मांस)+यद ] राक्षस । कर देना । (२) गिलावा को अधिक पतला कर देना। पलादन-सशा पुं० [ मं०] १ वह जो मासभक्षी हो । २ राक्षस । पलस्तर विगढ़ना या विगढ़ जाना= दे० 'पलस्तर ढीला पलान-सज्ञा पुं० [ म० पल्याण या पल्ययन मि० फा. पालान ] होना । पलस्तर विगादना या बिगाद देना= दे० 'पलस्तर गद्दी या चारजामा जो जानवरों की पीठ पर लादने या चढ़ाने ढीला करना' । पलस्तर ढीला होना = तग होना। नसें ढीली के लिये कसा जाता है । उ० -(क) हरि घोडा ब्रह्मा कहो, हो जाना। वासुकि पीठ पलान । चाँद सुरज दोउ पायडा चढसी सत पलस्तरकारी-सक्षा स्री० [हिं० पलस्तर + फा० कारी ] पलस्तर सुजान । -कवीर (शब्द॰) । (ख) वर्पा गयो अगस्त्य की करने या किए जाने की क्रिया या भाव । पलस्तर करने या डीठी । परे पलान तुरगन पीठी ।—जायसी (शब्द॰) । होने का काम। क्रि० प्र०—कसना ।—धिना। पलहना-क्रि० अ० [सं० पल्लवन ] पल्लवित होना । पल्लव पलानना@-क्रि० स० [हिं० पलान+ना (प्रत्य॰)] १ घोड़े फूटना । पनपना । लहलहाना। उ०—(क) प्रीति बेल ऐसे प्रादि पर पलान कसना। गद्दी या चारजामा क्सना या तन डाढ़ा। पलहत सुख वाढत दुख वाढ़ा। -जायसी बांधना। उ०-उए अगस्त हस्ति तन गाजा । तुरत पलान (शब्द०) । (ख) वही भांति पलही सुखवारी । उठी करलि नह कोप संवारी । —जायसी (शब्द॰) । चढ रन राजा । -जायसी (शब्द०)। २ चढाई की तैयारी करना । धावा करने के लिये तैयार या सन्नद्ध होना । उ०- पलहलना-क्रि० प्र० [हिं० पलुहना ] प्रफुल्ल होना । प्रसन्न होना। (क) मो पर पलानत है बल को न जानत है, प्रगद । बिना उ०-भलहलत मुकट भृकुटी करूर । पलहलत नेत्र प्रारक्त ही आग या ही ते जरत हौं। -हनुमान (शब्द०) (ख) भब मूर। -ह. रासो, पृ० ११ । मोहि कलू समझो न परे भई काहे को काल पलानत है । पलहा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ से० पल्लव ] पल्लव । कोमल पत्ते । कोंपल । -हनुमान (शब्द०)।