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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२०३

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पहुँचा २६१२ पटुमि संयोकि०-जाना। तक यह खबर उन्हें पहुंचा देना । ६ परिणाम के रूप में ६ समझने में समर्थ होना । किसी विषय की कठिन बातों के प्राप्त कराना । अनुभव कगना । जैसे,--(क) उन्होने अपने समझने की सामर्थ्य रखना। दूर तक इवना । जानवारी उपदेशो मे मुझे बडा लाभ पहुंचाया। (ख) आपकी लापर- रखना । जैसे,—( क ) कानून में ये अच्छा पहुँचते हैं। (ख) वाही ने उन्हे बहुत हानि पहुँचाई । ७. किसी विषय मे किमी इस विषय में वे कुछ भी नहीं पहुंचते । के वगवर कर देना । समकक्ष कर देना । ममान वना देना। सयोकि०-देना। मुहा०-पहुँचनेवाला = पता वा खवर रखनेवाला। जानकार । भेद या रहस्य जानने मे समर्थ । छिपी बातो का ज्ञान रखने- पहुंची-सज्ञा पी० [ हिं० पहुँचा ] हाथ की कलाई पर पहनने का वाला। जैसे,--वह बडा पहुँचनेवाला है, उससे यह बात एक प्राभूषण जिममे वहत से गोल या कंगूरेदार दाने कई अधिक दिनो छिपी न रहेगी। पहुँचा हुश्रा = (१) जिसे सब पक्तियो मे गूथे हुए होते हैं। उ०-पग नूपुर पो पहुँची कर कुछ मालूम हो। गुप्त और प्रकट सब का जाननेवाला । कजन, मजु बनी मनिमाल हिए । नव नील कलेवर पीत झंगा अभिज्ञ । पता रखनेवाला । (२) दक्ष । निपुण । उस्ताद । झलकै पुलकै नृप गोद लिए। -तुलसी ग्र०, पृ० १५५ । ७ आई अथवा भेजी हुई चीज किसी को मिलना। प्राप्त होना । २ युद्ध काल में कलाई पर उसकी रक्षा के लिये, पहनने मिलना । जैसे,- खवर पहुंचना, सलाम पहुँचना । ८ परि- का लोहे का एक प्रकार का प्रावरण । उ०-सजे सनाहट णाम के रूप में प्राप्त होना। अनुभव में आना। अनुभूत पहुंची टोपा । लोहतार पहिरे सब प्रोपा । —जायसी होना । जैसे,—( क ) आपके वचनो से मुझे बडा सुख पहुंचा। (शब्द०)। ( ख ) पापकी दवा से उन्हें कोई लाभ नहीं पहुंचा। ६ पहु-सत्रा पुं॰ [ म० प्रभु, प्रा० पहु ] प्रभु । प्रिय । स्वामी । उ०- किसी विषय मे किसी के बरावर होना। समकक्ष होना । कौन गुन पहु परवस भेल सजनी, बुझलि तनिक भल मद । तुल्य होना । जैसे,—किसी हिंदी कवि की कविता तुलसीदास -विद्यापति, पृ० १२६ । की कविता को नहीं पहुँचती। पहु'--संज्ञा स्त्री० [सं० प्रभा ] दे० 'पो'। ०-पहु फट्टत सवितर पहुँचा -सशा पुं० [० प्रकोष्ठ ] सज्ञा स्त्री० पहुंची ] हाथ की कुहनी उवत, पहुवर मिल्लव धाय । -प० रासो, पृ० १४१ । के नीचे का भाग। वाहु के नीचे का वह भाग जो जोड पर पहुनई-सज्ञा स्त्री० [हिं० पहुनाई ] दे० 'पहुनाई' । उ०-वारवार मोटा और आगे की ओर पतला होता है। अग्रवाहु और पहुनई ऐहैं राम लखन दोऊ भाई । —तुलसी (शब्द॰) । थेली के बीच का भाग कलाई । गट्टा । मणिबंध । पहुना -सज्ञा पुं० [हिं०] दे० पाहुना' । मुहा०-पहुँचा पकहना=बलात् कुछ मांगने, पूछने अथवा पहुनाई–सश मा० [हिं० पहुना+ई (प्रत्य॰)] किसी के पाहुने होने तकाजा या झगडा करने के लिये किसी को रोक रखना। का भाव। अतिथि रूप मे कही जाना या माना। मेहमान जैसे,--जब तुमने विसी का कर्ज नहीं खाया है तब तुम्हारा होकर जाना या माना। पहुंचा कोन पकह सकता है ? क्रि० प्र०-याना। -जाना। पहुँचाना-क्रि० न० [हिं० पहुंच का सकर्मक रूप ] १ किसी वस्तु मुहा०- पहुनाई करना = दूसगे के यहाँ खाते फिरना । आतिथ्य या व्यक्ति को एक स्थान से ले जाकर दूसरे स्थान पर पर चैन करना। भोज या दावतें उडाना। जैसे,-पाजकल प्राप्त या प्रस्तुत कराना। किसी उद्दिष्ट स्थान तक गमन तो तुम खुव पहुनाई करते हो। कराना। उपस्थित कराना । ले जाना । जैसे,—उनका नौकर २ आए हुए व्यक्ति का भोजन पान आदि से सत्कार करना । मेरी किताब पहुंचा गया। किसी के साथ जाना। अतिथिसरकार। मेहमानदारी। खातिर तवाजा। उ०- किसी के साथ इसलिये जाना जिसमे वह अकेला न पड़े। शिष्टाचार के लिये भी ऐसा किया जाता है। उ०-जरा (क) घर गुरु गृह प्रिय सदन सासुरे भइ जहँ जहँ पहुनाई। -तुलसी (शब्द॰) । (ख) विविध भांति होइहि पहनाई । आप ही चलकर मुझे वहाँ पहुंचा पाइए। -तुलसी (शब्द)। सयो० क्रि०-देना। पहुनी-सज्ञा पी० [हिं० पहुनाई ] दे० 'पहनाई। ३ किसी को स्थिति विशेष मे प्राप्त कराना। किसी को विशेष पहुन्नी-पज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] वह पच्चर जो पल्ला या धरन आदि अवस्था तक ले जाना । जैसे,-(क) उन्हें इस उच्च पद चीरते समय चिरे हुए प्रश के बीच मे इसलिये दे देते हैं तक पहुंचानेवाले पाप ही हैं। (ख) उन्होंने चिकित्सा न कि पारे के चलाने के लिये यथेष्ट प्रतर रहे । करके अपने भाई को इस दुरवस्था को पहुंचा दिया। पहुप-पञ्चा पुं० [सं० पुप्प ] दे० 'पुष्प'। उ०—अहो ब्रह्म सयो० कि०-देना। मैं सपना देखा । वादल उमग पहप की रेखा। -कवीर ४ प्रविष्ट कराना । घुसाना । वैठाना । जैसे,—ांखों मे तरी सा०पू०६.1 पहुंचाना, बरतन की पेंदी में गरमी पहुंचाना। ५ कोई चीज पहुम-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे॰ 'पुहमी' । लाकर या ले जाकर किसी को प्राप्त कराना। जैसे,-सध्या पहमि-तशा खी० [देश॰] दे० 'पुहमी'। उ०-दीखति शैल शिखर