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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२१४

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पाव २६२३ पासासार वच्चा होने के पीछे प्रसूता का कुछ दिनो के लिये अपने माँ होना। जैसे,—चोर या शरावी के पवि नहीं होते। धरती वाप या और सवधियों के यहां जाना । पाँव फैलाना = (१) पर पाँव न रहना = (१) बहुत घमड होना । घमद या शेखी अधिक पाने के लिये हाथ बढ़ाना । मुह बाना । पाकर भी के मारे सीधे पैर न पहना । (२) प्रानद के मारे पग स्थिर अधिक का लोभ करना । जैसे,—तहत पाँव न फैलामो अव न रहना । फूले प्रग न समाना। धरती पवि न रखना = और न देंगे । (२) बच्चो की तरह पहना। हठ करना । घमट के मारे सीधे पर न घरना । वहुत ऊँचा होवर चलना। जिद करना। मचलना। (विशेष दे० 'पांव पसारना )। घमड या योखी से फूलना । इतराना । मानद के मारे उछलना। पाँव बढ़ाना = (१) चलने में पैर प्रागे रखना । (२) बडे बडे बहुत प्रसन्न होना। डग रखना । फाल भरना । जल्दी जल्दी चलना । (३) अघि- पाँधचप्पी-मशा स्त्री० [हिं० पवि + चापना ( = दबाना) ] थकावट कार बढ़ाना । पतिक्रमण करना । पाँव पाहर निकालना = दे० दूर करने या पाराम पहुँचाने लिये पर दवाने की क्रिया । 'पाँव निकलना'। पाँव बाहर निकालना= दे० 'पाँव निकलना'। मि०प्र०—करना ।—होना । पाँव विचलना = (१) पर इधर उधर हो जाना। पैर का पाँवर-वि० [सं० पामर] पतित । पापी। नीव । अधम । उ०- ठीक न पहना या जमा न रहना पैर फिसलना । पर रपटना । देखे नरनारि कहैं, साग खाइ जाएं माइ, याहु पीन पावरनि जैसे,—कीचड में पांव फिसल गया । (२) स्थिर न रहना। पीना खाइ पोखे हैं।-तुलसी ग्र०, पृ० ३१६ । दृढ़ता न रहना । (३) धर्म पर स्थिरता न रहना। ईमान डिगना । नीयत में फर्क माना। पाँव भर जाना = थकावट से पाँवरी'-संशा स्त्री० [हिं० पाँव+हा (प्रत्य॰)] १ दे० 'पार्वती'। पैर में वीझ सा मालूम होना। पैर थकना । पाँव भारी होना = २ सोपान । सीढ़ी। ३ पैर रखने का स्थान । ४ जूता । पेट होना । गर्भ रहना। हमल होना । किसी से पाँव भी न पादुका । खडाऊँ। उ०-भो रैदास नाम अस ताको। करे धुलवाना = किसी को अपनी तुच्छ सेवा के योग्य भी न सम- कर्म रचियो जूता को । रचि पावरी संत कह देवै । सत चरण झना । अत्यत तुच्छ और छोटा समझना । पाँव में क्या मेंहदी जल शिर धरि लेव। -रघुराज (शब्द०)। लगी है ? = क्या पैर में मेंहदी लगाकर बैठे हो कि छूटने के पाँवरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हि० पौरि, पौरी ] १ पौरी । वह कोठरी जो डर से जाना या कोई काम करना नहीं चाहते ? ( व्यग्य ) । किसी घर के भीतर घुसते ही रास्ते मे पडती हो। ड्योढी । पाँव में येड़ी पहना=किसी प्रकार के बधन या जजाल में २ वैठक । दालान । उ०-पंग पैग पर कुआँ वादरी। साजी फेंसना । जैसे, गृहस्थी या वाल वच्चो के | पाँव में सिर वैठक और पांवरी।-जायसी न०, पृ०११ । देना = दे० 'पाव पर सिर रखना' । पाँव रगड़ना = (१) क्लेश पाँस-सशा स्त्री० [सं० पांशु ] १ राख, गोवर, मल, मूत्र, अस्थि, या पीड़ा से पैर हिलाना या पीटना। छटपटाना । (२) क्षार, सडी गली चीजें आदि जो खेतो को उपजाऊ करने के बहुत दौड़ धूप करना । बहुत हैरान होना। बहुत कोशिश लिये उनमें डाली जाती है। खाद । करना । पाँव रह जाना = (१) पैरो का अशक्त हो जाना। क्रि० प्र०-डालना । —देना । पैरो का काम देने लायक न रहना । (२) थकावट से पैरो का वेकाम हो जाना । जैसे,-चलते चलने पांव रह गए। पाँव २. किसी वस्तु को सडाने पर उठा हुप्रा खमीर । ३. शराव रोपना = अडना । प्रण करना । प्रतिज्ञा करना । पाँव निकाला हुमा महा। लगना = (१) पैर छूना । प्रणाम करना। चरण-स्पर्श-पूर्वक पसिना-क्रि० स० [हिं० पाँस+ना ( प्रत्य० ) ] सेत मे नमस्कार करना । (२) पर पडना । विनती करना । पाँव खाद देना। लगा होना = ऐसा स्थान जहाँ अनेक बार पैर पड़ चुके हो, पाँसा-सझा पुं० [सं० पाशक ] हाथीदांत या किसी हड्डी के बने अर्थात् माना जाना हो चुका हो। घूमा फिरा हुआ होना । चार पाँच प्रगुल लवे बत्ती के प्राकार के चौपहल टुकडे । वार वार प्राते जाते रहने के कारण परिचित होना । जैसे, उ०-(क) चौपर खेलत भवन प्रापने हरि द्वारिका मंझार । वहाँ की जमीन पांव लगी हुई है ठीक जगह आपसे पाप पहुंच पसे हार परम भातुर सो कीन्हे प्रनत उचार ।-सूर जाता हूँ। पाँच पटना = (१) पर खीच कर मोडना जिससे (शब्द०)। (ख) कौरव पांसा कपट बनाए । धर्मपुत्र को वह दूर तक फैला न रहे । पैर सुफेडना । (२) किनारा जुवा सेलाए ।-(शब्द०)। खीचना । दूर रहना । लगाव न रखना । तटस्थ होना । (३) विशेष-इससे चौसर का खेल खेलते हैं। ये सत्या मे ३ होते मरना । (४) इधर उधर घूमना छोडना । पाँव सुकेडना = हैं । प्रत्येक पहल में कुछ विंदु से बने रहते हैं। उन्हीं विदुषों पांव समेटना। पैर फैला न रहने देना । पाँच से पाँव चाँध. की गणना से दाव समझा जाता है। कर रखना = (१) घरावर अपने पास रखना। पास से अलग न होने देना । (२) बडी चौकसी रखना । निगाह के बाहर क्रि०प्र०-पडना।-फेंकना । न होने देना। पवि सो जाना = (१) पैर सुन्न हो जाना। मुहा०-पाँसा उलटना-क्सिी प्रयल का उलटा फल होना । स्तब्ध हो जाना । (२) पर झन्ना उठना। (विसी के) पवि पामा उलटा पड़ना = दे० 'पांसा उलटना' । न होना = ठहरने की शक्ति या साहस न होना । रडता न पासासास-संशा पुं० [हिं० सा-सं• सारि ] चौपट । ३०-