पाटकरण २६३२ पाटलिपुत्र पाटकरण-सज्ञा पुं॰ [सं०] शुद्ध जाति के रागों का एक भेद । अरुचि, सूजन, रुधिरविकार, श्वास और तृष्णा आदि को दूर करनेवाला माना है। पाटचर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] चोर । पाटण--सबा पुं० [सं० पत्तन ] नगर । पर्या-पाटला | कवुरा। अमोघा । फलेरुहा । अवुवासिनी। पाटद-सक्षा पुं० [सं०] कपास । कृप्यासा । कालवृता। कुमी । ताम्रपुप्पी। कुवेराची । तोयपुष्पी। वसतदूती। स्थाली । स्थिरगधा। श्रबुवासी। पाटन-सज्ञा मी० [हिं० पाट ना] १ पाटने की क्रिया या भाव । कोकिला। पटाव । २ जो कुछ पाटकर बनाया जाय । कच्ची या पक्की छत । ३ मकान की पहली मंजिल से ऊपर की २ पाटल का फूल (को०)। ३ गुलाबी रंग । सफेदी लिए लाल मजिलें। ४ सपं का विष उतारने के मत्र का एक भेद । रग (को०)। ४ एक प्रकार का धान (को०)। ५ केशर जिसको सांप ने काटा हो उसके कान के पास पाटन मत्र (को०) । ६ गुलाब का फूल । ७ लाल लोध्र (को॰) । चिल्लाकर पढ़ा जाता है। उ०—काम भुवग विषय लहरी पाटल-वि० [सं० ] ललाई लिए श्वेत वर्ण का। गुलावी वर्ण सी । मणि मयूर पाटन गहरी सी। -विश्राम (शब्द॰) । का [को०] । ५ कई प्राचीन नगरों के नाम । पाटलक-वि० [सं०] पाटल वर्ण का [को०] । पाटन-सज्ञा पुं० [ स०] पाटने की क्रिया या भाव । चीरना। पाटलकोट-सज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का कीडा । भेदना । विदारना। फाड़ना । पाट लचतु-वि० [सं० पाटलचक्षुप् ] जिसकी आँख में मोतियाबिंद पाटन-तशा पु० [सं० पत्तन ] दे० 'पट्टन' ।उ०—ऐसे पाटन प्राइक का रोग हो [को०] । सौदा करो बनाय।-कवीर पा०, भा०४, पृ० २४ । पाटलद्र म-सज्ञा पुं० [सं०] पुन्नाग वृक्ष। राजचपक । पाटनक्रिया-सञ्चा स्त्री० [सं०] शल्यचिकित्सा। शल्यक्रिया । पाटला-सशा पुं० [स०] १ पाडर का वृक्ष । २ लाल लोध । घाव आदि चीरना (को०] । ३. जलकु भी । ४ दुर्गा का एक रूप । पाटना-क्रि० स० [हिं० पाट ] १ किसी नीचे स्थान को उसके आस पास के धरातल के बराबर कर देना । किसी गहराई को पाटला-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार का बढ़िया सोना जो भारत मिट्टी, कूड़े आदि से भर देना । २ किसी चीज की रेल में ही शुद्ध करके काम में लाया जाता है। यह बंक के सोने पेल कर देना । ढेर लगा देना । उ०--नाटक नाट्य धार से कुछ हलका और सस्ता होता है। घाटन में सुख पाटन कमनीया। -रघुराज (शब्द॰) । ३ पाटलावती-मज्ञा ली० [स०] १ दुर्गा । २. प्राचीन काल की दो दीवारो के बीच या किसी गहरे स्थान के पार पार धरन, एक नदी का नाम । लकष्ठी के बल्ले प्रादि बिछाकर आधार बनाना । छत बनाना । पाटलि-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ पाडर का वृक्ष । उ०-त्रिविध ४. तृप्त करना । सीचना । ५ पूर्ण करना । निबाह करना। समीर बद पाटलि, सुगंघि सनी । --शकुतला, पृ० ५। उ०-जमुना घाटनि गहबर बाटनि । पटुता पाज पैजपन २ पौडफली। पाटनि ।-धनानद, पृ० २५६ । पाटलिक'—वि० [सं०] १. दूसरों की गुप्त बातों को जाननेवाला । पाटनीय-वि० [सं०] चीरने योग्य । फाडने योग्य (को०] । २ देशकाल की जानकारी रखनेवाला [को०] । पाटमहादेइ-सच्चा स्त्री॰ [सं० पट्ट महादेवी ] दे० 'पाटमहिषी' । पाटलिकर-सश पुं० १ छात्र । विद्यार्थी । शिष्य । २ पाटलिपुत्र । उ.-पाट महादेव हिएँ न हारू । समुझि जीउ चित चेत पाटलित-वि० [सं०] लाल किया हुआ । लालिमायुक्त [को०] । संभारू। -पदमावत, पृ० ३४३ । पाटलिपुत्र-सक्षा पुं० [सं०] मगध का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक पाटमहिषी-तशा स्त्री० [सं० पट्ट (= सिंहासन) + महिपी (= नगर जो इस समय भी बिहार का मुख्य नगर है । प्राजकल रानी ) ] यह रानी जो राजा के स थ सिंहासन पर बैठ यह पटना के नाम से प्रसिद्ध है। सकती हो । पटरानी । प्रधान रानी । उ०-जनक पाटमहिषी विशेष-प्राचीन पाटलिपुत्र वर्तमान पटना से प्राय २३ मील जग जानी । सीय मातु किमि जाइ वखानी । —मानस, पूर्व गगा के तट पर जहां इस समय कुम्हरार नामक ग्राम है, १। ३२४॥ स्थित था। खुदाई से वहां उसके बहुत से चिह्न मिले हैं । पाटरानी-सशा स्त्री॰ [ पुं० पट्ट (= सिंहासन) +रानी ] पटरानी। वुद्ध की परवर्ती कई शताब्दियों में यह नगर भारत का प्रधान रानी। सर्वप्रधान नगर और अत्यत उन्नत तथा समृद्ध था। विदेशी पाटल'-सा पुं० [सं०] १ पाडर या पाडर का पेड जिसके पत्ते यात्रियो ने अपने यात्रावृत्तातो में इसकी वही प्रशसा लिखी वेल के समान होते हैं। उ०-भीर रहे भननाय पुहप पाटल है । प्राचीन पुस्तकों में इसका नाम पुष्पपुर और कुसुमपुर भी के महकत । -बज० ग्र०, पृ० १०१ । लिखा है । वर्तमान पटना शेरशाह सूर का बसाया हुमा है । विशेप--लाल और सफेद फूलो के भेद से यह दो प्रकार का ब्रह्मपुराण मे लिखा है कि महाराज उदायी या उदयन ने गगा होता है। वैद्यफ मे इसे उपण, कषाय, स्वादिष्ट तथा के दाहिने किनारे पर इस नगर को बसाया। यह मगधराज
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२३
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