पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३६

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पाविक पादारक पादविक-सज्ञा पु० [सं०] पथिक । मुसाफिर । पादक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० पादाक] चरणचिह्न । पैरो का निशान [को०] । पादविदारिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] घोडो का एक रोग, जिसमे उनके पादांकुलक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पादामुलक ] ३० 'पादाकुलक' पैरो के निचले भाग में गांठे हो जाती हैं। पादांगद-सचा पु० [सं० पादाङ्गद] मूपुर । पादविन्यास-सज्ञा पु० [सं०] पैर रखने की क्रिया या ढग । पादांगदी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० पादाङ्गदी ] पायल । पादागद [को०] । पादविरजा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ पादविरजस् ] जूता । खडा (को०] । पादागुलि, पादांगुली-सशा स्त्री॰ [ सं० पादाङ्गुलि, पादान ली ] पादविरजा-सशा पुं० देवता [को०] । पैर की उंगली [को०)। पादवेष्टनिक-सज्ञा पुं० [स०] पादावरण । पातावा [को०] । पादागुष्ठ-सज्ञा पुं० [सं० पादाङ्ग प्ठ ] पैर का अंगूठा । पादशब्द-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पैरो की आहट । पादांत-सचा पुं० [सं० पादान्त ] १ पैर का सिरा । २ पद्य के पादशा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० पादशाह] दे॰ 'पादशाह'। उ०-तब नजर चरण का माखीर । किसी श्लोक के चरण का मतिम भाग। लोगों कू पूछचा उन तमाम । इस शहर के पादशा का क्या यौ०-पादांतस्थ = किसी श्लोक या पद्य के चरण के है नाम । -दक्खिनी०, पृ० ३९६ । पाखीर का । पादात मे स्थित । पादशाखा-सज्ञा स्त्री० [स०] १ पैर की उगली। २ पैर की नोक। पादांतिक-क्रि० वि० [स० पादान्तिक ] समीप । चरणों मे । पादशाह-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा०] वादशाह । पास (को०] । पादशाहजादा-सचा पुं० [ फा० पादशाहजादह, ] वादशाहजादा। पादांबु - सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पादाम्य ] १. मठा । २ जल जिसमे किसी राजकुमार। समारत का पैर घोया गया हो। पादशाही-मज्ञा स्त्री॰ [फा०] बादशाही। पादाभ-संज्ञा पुं० [सं० पादाम्भस् ] दे० 'पादावु-२। पादशिष्टजल-सज्ञा पुं॰ [स०] वह जल जो प्रौटाने पर चौथाई पादाकुल-सज्ञा पुं॰ [सं० पादहकुलक ] दे० 'पादाफुलक' । रह जाय। विशेष--वैद्यक मे ऐसा जब त्रिदोषनाशक माना जाता है । पादाकुलक-सज्ञा पुं॰ [सं०] चौपाई (छद)। पादाक्रांत-वि० [ स० पादाक्रान्त ] पददलित । पैर से कुचला हुआ । पादशीली-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दुचर । कसाई । पामाल । पाशुश्र.षा-सच्चा स्त्री॰ [स०] चरणसेवा । पैर दबाना। पादात-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] पैदल सेना । पदाति सैनिक । पावशैल-सञ्चा पु० [स०] किसी पर्वत के नीचे स्थित छोटा पादाति-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पादातिक' । पहाड (को०] । पादशोथ-यचा पु० [सं०] वैद्यक मे एक प्रकार का रोग जिसमे पैर पादातिक-सज्ञा पुं० [सं०] पैदल सिपाही । पैदल सेना। मे सूजन आ जाती है। यह रोग मापसे आप भी होता है पादाध्यास-सञ्ज्ञा पु० [म०] पददलन । पैरों से कुचलना [को०)। और कभी कभी दूसरे रोगो के कारण भी होता है। विशेष पादानत-वि० [स०] पैरों में झुका हुमा। पदावनत [को०] । --दे० 'शोथ। पादानुध्यात-संज्ञा पुं॰ [सं०] छोटे की ओर से बड़े को पत्र लिखने पावश्नाका सञ्चा स्त्री॰ [स०] पैर की नली। में एक नम्रतासूचक शब्द, जिसका व्यवहार लिखनेवाला पादसेवन-मञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] चरणो की सेवा । पादशुश्रूषा । अपने लिये करता था। सेवा [को० । विशेष-प्राय सामत या जागीरदार महाराज को पत्र लिखने पादसेवा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'पादसेवन' [को०] । में इस शब्द का व्यवहार करते थे। (गुप्तो के शिलालेख )। पादस्तंभ- सज्ञा पु० [सं० पादस्तम्भ ] वह लकडी जो किसी चीज इसी प्रकार पुत्र पिता को पत्र लिखने में या कोई व्यक्ति अपने को गिरने से रोकने के लिये सहारे के तौर पर लगा दी पूर्वज का उल्लेख करते समय अपने लिये इस शब्द का जाय । चांडा व्यवहार करता था। पादस्फोट-सज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार ग्यारह प्रकार के क्षुद्र पादानुध्यान-सञ्ज्ञा पुं० [म०] दे० 'पादानुध्यात' । कुष्ठो में से एक प्रकार का कुष्ठ । विशेष- इसमें पैरो मे काले रंग की फु सियाँ होती हैं जिनमे से पादानुप्रास-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] काव्य में पदगत अनुप्रास मलकार । बहुत पानी बहता है। इसे विपादिका भी कहते हैं, और पादानोन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश०] काला नमक । यदि यही रोग हाथो मे हो जाय तो उसे विचचिका कहते हैं। पादाभ्यंजन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पादाभ्यञ्जन ] वह घी या तेल जो पादहत-वि० [स०] परो से पाहत । पैरों से ठुकराया हुपा [को॰] । पैरो में मला जाय। पादहर्ष-सज्ञा पुं० [स०] एक रोग जिसमें पैरो में प्राय मुनमुनी पादायन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पाद नामक ऋषि के गोत्र मे उत्पन्न पुरुष । होती है। पादारक-सज्ञा पुं० [स०] नाव की लंबाई में दोनो प्रोर लकडी की पाहोन-वि० [स०] १ जिसके तीन ही चरण हो। २. जिसके पट्टियो से बना हुमा वह ऊँचा भौर चौरस स्थान जिसपर चरण न हो। यात्री बैठते हैं । कुर्सी।