पार २९६२ पारंग . हुप्रा उसकी एक तरफ से दूसरी तरफ तक। जैसे,—(क) सख्यावाचक शब्द तब रख सकते जब 'पार' का व्यवहार दीवार के आरपार छेद हो गया। (ख) यह सडक पहाड सामान्यत ( विना किसी विशेषता के ) 'किनारा' के अर्थ में के पारपार गई है । ( ग ) बांध के पारपार सुरग होता है । पर उसका प्रयोग सापेक्ष है। खोदी गई। ४ छोर । प्रत । अखीर । हद । परिमिति । मुहा०—पार करना = किसी वस्तु के ऊपर, नीचे या भीतर से मुहा०-पार पाना = मत तक पहुंचना । समाप्ति तक पहुंचना । होते हुए उसकी दूसरी ओर पहुंचना । किसी वस्तु से होते आदि से अत तक जाना या पूरा करना । क०--शेष शारदा हुए उसके आगे निकल जाना । लांघते, भेदते या ऊपर से होते सहस ध्रुति कहत न पावै पार । —तुलसी (शब्द०)। किसी हुए दूसरे पावं मे जाना। जैसे, (क) मनुष्य या रास्ते का से पार पाना=किसी के विरुद्ध सफलता प्राप्त करना । जीतना पहाड को पार करना । (ख) गेंद का दीवार को पार करना जैसे,—वह बडा चालाक है, तुम उससे नहीं पार पा सकते। (ग) सुरग का बांध को पार करके निकलना । (घ) तीर पार–प्रव्य० परे। आगे। दूर । लगाव से अलग । उ०—विप्र, का कलेजे को पार करना। धेनु, सुर, सत हित लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित विशेष-यदि कोई दूसरे मार्ग से जहाँ वह वस्तु न पडती हो तनु माया गुन गो पार । तुलसी (शब्द॰) । जाकर उस वस्तु को दूसरी ओर पहुंच जाय तो उसे पार पार-वि० [सं० पर ] अन्य । पर । पराया। दे० 'पर' । उ०- करना न कहेंगे। पार करने का अभिप्राय है वस्तु से होकर पार कइ सेवइ राज दुवार ।-वी० रासो०, पृ०६६। उसकी दूसरी तरफ पहुंचना । ( किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के ) पार करना = (१) किसी पारई --सशा स्त्री० [सं० पार ] मिट्टी का वडा कसोरा । परई । उ०-मनि भाजन मधु पारई पूरन प्रमी निहारि । का वस्तु के ऊपर, नीचे या भीतर से ले जाकर उसको दूसरी ओर पहुँचाना । लॅघाकर या घुसाकर दूसरी पोर निकालना या छाँडिय का सग्रहिय कहह विवेक विचारि । -तुलसी (शब्द०)। जे जाना । जैसे,—(क) इस मधे को हाथ पकड़ाकर टीले के पार कर दो। (ख) इस बार तीर पेड के पार कर देंगे । पारक्-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सोना। (ग) भाला कलेजे के पार कर दिया । (२) कष्ट या दुख पारक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] [स्त्री० पारको ] १ पालन करनेवाला। से बाहर करना। उबारना। उद्धार करना । जैसे,—किसी १ प्रीति करनेवाला । ३ पूर्ति करनेवाला । ४ पार करने- प्रकार इस विपत्ति से पार करो। पार होना=किसी वस्तु के वाला । ५ उद्धार करनेवाला। ऊपर, नीचे या भीतर से होते हुए उसकी दूसरी पोर पहुँचना। पारकाम-वि० [सं०] उस पार जाने का इच्छुक । जो उस पार किसी वस्तु पर से जाकर, उसे लांघकर या उसमें घुसकर जाना चाहता हो [को०] । उसकी दूसरी तरफ निकलना । जैसे, (क) गेंद का दीवार पारक्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पुण्य कार्य जिससे परलोक सुधरता के पार होना । (ख) कटार का कलेजे के पार होना। उ० है । २ विरोधी । अरि । शत्रु [को०] । इत मुख तें गग्गा कढ़ी उतै कढ़ी जमघार । 'वार' कहन पायो पारक्य-वि० पराया । परकीय । दूसरे का । नही, भई करेजे पार । (शब्द०)। ३. प्रामने सामने के दोनों किनारो में से एक दूसरे की अपेक्षा पारखG-सा सी० [स० परीक्षा, प्रा० परिक्ख, हिं० परिख, पारिश ] दे० 'पारिख', 'पारख । से कोई एक । किसी वस्तु के पूरे विस्तार के बीचोबीच से गई हुई कल्पित रेखा के दोनों छोरों पर पहनेवाले तटो पारखा - वि० [ सं० परीक्षक ] जिसमें परखने या जांचने की शक्ति हो। पारखी। उ०-(क) इतने समय पयंत तो विना । या पाश्वों में से कोई एक । अोर । तरफ । जैसे,—(क) नदी के इस पार से उस पार तुम नही जा सकते । (ख) पारख गुरु के कोई मुक्ति नहीं पावेगा । -कवीर म०, पृ० १६६ । (ख) विना पारख गुरु के अघों की तरह दीवार में इस पार से उस पार तक छेद हो गया। (ग) जव टटोलते फिरते हैं। —कबीर सा०, पृ० ६७५ । पोस्ती ने पी पोस्त तब कूडी के इस पार या उस पार ।- हरिश्चद्र (शब्द०)। पारखद-मज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पार्षद'। विशेष-इस शब्द का प्रयोग उसी किनारे या पार्श्व के अर्थ पारखि-सज्ञा पुं० [हिं० पारखी ] परीक्षक दे० 'पारखी' । उ०- में होगा जिसका कथन सामने के दूसरे किनारे या पार्श्व रतन छिपाए ना छिपै पारखि होइ सो परीख । —जायसी का सबध लिए हुए होगा । जैसे, 'इस पार कहने से यह समझा ग्र० (गुप्त), पृ० ३०३ । जाता है कि कहनेवाले के ध्यान में दोनों किनारे हैं जिनमें से पारखी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पारिण+ई (प्रत्य॰)] १ वह जिसे वह एक ही और इगित करता है। यही कारण है, जिससे परख या पहचान हो। वह जिसमें परीक्षा करने की योग्यता 'इस' और 'उस' की जगह 'एक' और 'दो' सख्यावाचक हो। २ परखनेवाला। जांचनेवाला । परीक्षक । जैसे, पदों का प्रयोग इस शब्द के पहले नही करते । 'एक पार से रतनपारखी। दूसरे पार तक नहीं बोला जाता। इसी प्रकार दोनों 'किनारे' पारग-वि० [सं०] १ पार जानेवाला । २ काम को पूरा करने- के अर्थ में दोनों पार' बोलना भी ठीक नहीं जान पडता । वाला । समर्थ । ३ पूरा जानकार । पूर्ण ज्ञाता।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२५३
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