पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६६

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पाल २६७५ पालतू कपोत- मुहा०—पाल का या ढाल का=पाल द्वारा पका हुआ या डाल पालकाप्य, पालकाव्य-सञ्ज्ञा पुं० [ म०] १ एक प्राचीन ऋषि जो पर पका हुआ। करेणु के पुत्र थे और जिन्होने सर्वप्रथम हाथियो के सवध मे पाक्षर---सज्ञा पुं० [ स० पट या पार ] १. वह लवा चौडा कपडा वैज्ञानिक जानकारी प्रस्तुत की। उ०—पालकाव्य के विरह जिसे नाव के मस्तूल से लगाकर इसलिये तानते हैं जिसमें हवा वरि अग भए अति खीन ।-पृ० रा०, २७७ । २ हाथियो भरे और नाव को ढकेले । की विद्या । हाथियो के विषय मे वह शास्त्र जिसमे उनके लक्षण गुण प्रादि का वर्णन रहता है (को०) । क्रि० प्र०-चढ़ाना। -तानना।-उतारना । पालकी-सञ्ज्ञा म्बी० [ स० पत्यक] एक प्रकार की सवारी जिसे २ तबू । शामियाना । —दोवा । ३ गाडी या पालकी प्रादि आदमी कधे पर लेकर चलते हैं और जिसमें आदमी पाराम ढकने का कपडा । अोहार । से लेट सकता है । म्याना। खडखडिया । अच्छी डोली। पाल–सञ्चा स्त्री॰ [ स० पालि ] १ पानी को रोकनेवाला बांध या विशेष-पीनस, चौपाल, तामजान इत्यादि, इसके कई भेद होते किनारा । मेड । उ०-सतगुरु बरजै सिप कर क्यू करि बचे काल । दुहु दिसि देखत वहि गया पाणी फोडी पाल । हैं । कहार इसे कधे पर लेकर चलते हैं । -दादू० पृ०१५। २ भीटा। ऊंचा किनारा । कगार । पालको-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पालक ] पालक का शाक । उ०-खेलत मानसरोदक गई । जाइ पाल पर ठाढी भई । पालकी गाड़ी-सञ्चा स्त्री० [हिं० पालकी+गाडी ] वह गाडी जिसपर —जायसी (शब्द०)। ३ पानी के कटाव से कुर्मा, पालकी के समान छत हो। नदी आदि के किनारे पर भीतर की ओर बननेवाला पालखी-सञ्चा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पालकी' । उ०-पाठ सेहस खोखला स्थान । नेजा धणी। पालखी बइठ सहस पचास । -बी० रासो, पाल"-पञ्चा पु० [?] कबूतरों का जोहा खाना । पृ० ११ । मैयुन । पालगर-वि० [हिं० पालना+फा० गर ( प्रत्य० ) ] पालक । क्रि० प्र०-खाना । पालन करनेवाला । उ०-प्रथमी छट्ठा पालगर नर मट्ठा कर- पाल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ 7 ] तोप, बदूक या तमचे की नाल का घेरा या नार । तखत वयट्ठा सूध कवि थट्टा नगर मझार । -बांकी० चक्कर । (लश०)। अ०, भा० १, पृ०५७ । पाल-सञ्चा स्त्री॰ [ प्रा० पाल ] एक आभूषण । ३० 'पायल' । पालघ्न-सज्ञा पु० [सं०] १. छत्राक । खुमी । २ जलनृण । उ०-घम्म घमतइ घूघरइ, पग सोनेरो पाल। मारू चाली पालट'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पटेवाजी की एक चोट का नाम । मदिरे, जाणि छुटो छछाल |-ढोला०, दू० ५३६ । पालट-सज्ञा पुं॰ [ स० पालन, हिं०/पाल +ट ( प्रत्य० )] १ पालट-सक्षा पुं० [सं० पल्लव ] दे० 'पालव,' 'पल्लव' । पाला हुआ लडका । दत्तक पुत्र। २ वह व्यक्ति जो किसी के बदले में कार्य करे । वह व्यक्ति जिसके विषय में यह माना पालक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पालनकर्ता । २ राजा । नरपति जाता हो कि उसे किसी की ओर से कार्य करने का अधिकार (को०) । ३. अश्वरक्षक । साईस । ४ अश्व । तुरग (को॰) । मिला है । प्रतिनिधि ( व्यग्य ) । उ०—वही तुम्हारा जवान ५. चीते का पेड़ । ६. पाला हुमा लडका । दत्तक पुत्र । ७ पालट, जिसने बुढ़ौती में तुम्हारी तकदीर की उल्टे छूरे से पालन करनेवाला । पिता (को०)। ८ रक्षरण । बचाव (को॰) । हजामत बना दी ।-शरावी, पृ० ११४ । ६. वह व्यक्ति जो किसी बात का निर्वाह करे (को०)। पालटना-कि० अ० [हिं० पलटना] दे० 'पलटना' । उ०- पालक-वि० रक्षक | पाता दिण परषो दिस पालटइ, सखी बाब फरूकती जाइ ससार । पालकर-सज्ञा पु० [सं० पालक ] एक प्रकार का साग । -वी. रासो०, पृ०६८ । विशेष-इसके पौधे मे टहनियां नहीं होती, लवे लवे पत्ते एक पालड़ा-सज्ञा पुं॰ [ हिं० पलडा ] दे० 'पलडा' । उ०-एक पालडे केंद्र से चारो ओर निकलते हैं। केंद्र के बीच से एक हठन सीस धरि तोले ताके साथ । -सु दर० प्र०, भा॰ २, पृ० निकलता है जिसमें फूलो का गुच्छा लगता है। ७३१ । पालक@:--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पलग ] पलग । पय्यक । उ०-को पालो-वि० [ हिं• पालना ] पाली हुई। पालित । पाली पालक पौढे को माढ़ी। सोवनहार परा बँदि गाढ़ी ।- पोसी । उ०-भणन नामदेव सुनो त्रिलोचन, वाकी पालणी जायसी (शब्द०)। पौटिला । दक्खिनी०, पृ० ३३ । पालक जूही-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक छोटा पौधा जो दवा के काम पालती'-सज्ञा स्त्री० [अ० प्लेट? ] जोड या सीमन के तस्ते । में पाता है। (लघा०)। पालकरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पलँग ] लकडी का टुकड़ा जो चारपाई पालवी-पञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पालयी' । के सिरहाने के पायों के नीचे उसे ऊंचा करने के लिये रखा पालतू-वि० [सं० पालना ] पाला हुआ । पोसा हुआ । जैसे, जाता है। पालतू कुत्ता।