२६८० पिंगाक्ष' पाहुनी सबसे पुराना प्रतीत होता है और उसकी व्युत्पत्ति वही है जो पिंगला-सज्ञा स्त्री० [सं० पिङ्गला ] १ हठ योग और तत्र में जो ऊपर दी गई है। तीन प्रधान नाडियां मानी गई हैं उनमे से एक । पाहुनी-सज्ञा स्त्री० [ हिं० पाहुना ] स्त्री अतिथि । अभ्यागत स्त्री। विशेष-दस नाडियो में से इला, पिंगला और सुपुम्ना ये तीन मेहमान औरत । उ०-पाहुनी करि दै तनक मह्यो । हो प्रधान मानी गई है। शरीर के बाएँ भाग में पिंगला नाडी लागी गृहकाज रसोई जसुमति विनय कहो।-सूर होती है । ये तीनो क्रमश ब्रह्मा, विष्णु और शिव स्वरूपिणी ( शब्द०)। ३ आतिथ्य । मेहमानदारी । अतिथि का आदर हैं । तपसार में लिखा है, इला नाडी में चद्र और पिंगला सत्कार । खातिर तवाजा । नाही मे सूर्य का निवास रहता है। जिस समय पिंगला नाही पाहुर-सज्ञा पुं० [स० प्राभूत, प्रा० पाहुड (= भेंट)] १ भेंट । कार्य करती है उस समय साँस दाहिने नथने से निकलती है। नजर । वह द्रव्य जो किसी के समानार्य उसे दिया जाय । प्राणतोपिणी में बहुत से कार्य गिनाए गए हैं जो यदि पिंगला २ वह वस्तु या धन जो किसी संबधी या इष्टमित्र के यहाँ नाही के कार्यकाल मे किए जायें तो शुभ फल देते हैं जैसे, व्यवहार में भेजा जाय । सौगात । कठिन विषयो का पठनपाठन, स्त्री प्रसग, नाव पर चढना, सुरापान, शत्रु के नगर ढाना, पशु बेचना, जुग्रा खेलना, पाहू-सज्ञा पुं० [१] मनुष्य । व्यक्ति । शरुस । इत्यादि। पिंग'-वि० [स० पिझ] १ पीला । पीलापन लिए हुए । २ भूरापन २. लक्ष्मी का नाम । ३ गोरोचन । ४ शीशम का पेड़ । ५ एक लिए लाल । तामडा । दीपशिखा के रग का। उ०-सित चिडिया। ६ राजनीति । ७ दक्षिण दिग्गज की स्त्री । ८. सरोज पर क्रीडा करना जैसे मधुमय पिंग पराग ।--कामा- एक धातु । पीतल (को०)। ६ एक वेश्या का नाम । यनी, पृ० २३ । ३ सुघनी रग का । भूरापन लिए पीला। यौ०-पिंगचक्षु । पिंगजट । पिंगलोचन । पिगाक्ष । पिंगास्य । विशेष-इसकी कथा भागवत में इस प्रकार है । विदेह नगर में पिंगला नाम की एक वेश्या रहती थी। उसने एक दिन एक पिग-सज्ञा पुं० १ भैसा । २ चूहा । मूसा । ३ हरताल । ४ पिंग सु दर धनिक को जाते देखा। उसके लिये वह बेचैन हो उठी वर्ण या रग। पर वह न पाया। रात भर वह उसी की चिता मे पढी पिंगकपिशा-सज्ञा स्त्री० [ स० पिझकपिशा ] गुवरेले के प्राकार रही । अत मे उसने विचार किया कि मैं कैसी नासमझ हैं कि का एक कीडा जिसका रग काला और तामडा होता है। पाम में कात रहते दूर के कात के लिये मर रही हैं । इस तेलपायी। तेलचटा। प्रकार उसे यह ज्ञान हो गया कि प्राशा ही सारे दुखो का पिगचक्षु'-वि० [स० पिङ्गचक्षुस्] जिसकी आँखें भूरे या तामडे रग मूल है। जिन्होंने सब प्रकार की प्राशा छोड दी है वे ही की हो। सुखी हैं । उसने भगवान् के चरणो मे चित्त लगाया और पिंगचक्षु-सझा पुं० १ नक्र नामक जलजतु | नाक । २ कर्कट । शाति प्राप्त की। महाभारत में भी जहाँ भीष्म ने युधिष्ठिर केकडा [को०) । को मोक्ष धर्म का उपदेश किया है वहाँ इस पिंगला वेश्या पिंगजट-सज्ञा पुं॰ [ स० पिङ्गजट ] शिव [को॰] । का उदाहरण दिया है। साख्यसूत्र में भी 'निगश सुसी पिगमूल-गा पुं० [सं० पिङ्गमूल ] गाजर [को॰] । पिंगलावत्' पाया है। पिंगल'-वि० [सं० पिङ्गल ] १ पोला। पीत । २. भूरापन । पिंगलाक्ष-सझा पु० [ सं० पिङ्गलाक्ष ] शिव [को०] । लिए लाल । दीपशिखा के रंग का तामडा । ३ भूरापन लिए पिंगलौह-सज्ञा पुं॰ [ स० पिड गलौह ] पीतल (फो०] । पीला | सुघनी रग का । ऊदे रग का। पिगलिका-सज्ञा स्त्री॰ [ म० पिट गलिको ] १ वगला । बलाका । पिंगल-सज्ञा पुं० १ एक प्राचीन मुनि या प्राचार्य जिन्होने छद सूत्र २ एक प्रकार का उल्लू (को०)। ३ मवखी की जाति का एक बनाए । ये छद शास्त्र के मादि प्राचार्य माने जाते हैं और इनके कीडा जिसके काटने से जलन और सूजन होती है (सुश्रुत)। ग्रथ की गणना वेदागो में है। २ उक्त मुनि का बनाया छद - पिगलित-वि० [स० पिट गलित] पिंगल वर्ण का । शास्त्र । ३ छद शास्त्र । ४. साठ संवत्सरो मे से ५१वा पिंगसार- सा पु० [स० पिड गसार ] हरताल । सवत्सर । ५ एक नाग का नाम । ६. भैरव राग का एक पिंगस्फटिक -सज्ञा पु० [म० पिट गस्फटिक ] गोमेदक मणि । पुत्र अर्थात् एक राग जो सवेरे गाया जाता है । ७. सूर्य का एक पारिपाश्विक या गण। ८ एक निधि का नाम । पिंगा'--सना श्री[ म पिड गा] १ गोरोचन । २ हींग। ३ बदर । कपि । १० अग्नि । ११ नकुल । नेवला । १२ एक हलदी। ४ बसलोचन । ५ चउिका देवी। ६ धनुप व यश का नाम । १३. एक पर्वत का नाम । १४ मार्कंडेय डोरी । प्रत्यचा (को०)। ७ एक रक्तवाहिती नाडी। पुराण में वरिणत भारत के उत्तर पश्चिम में एक देश । १५ पिगा'-सग पुं० [सं० पट गु] १ वह पुरुष जिसके पैर टेढे हो । २ पीतल । १६ हरताल । १७ उल्लू पक्षी। १८ उशीर । वह जिसकी या पिंगवर्ण हो । पिंगाक्ष । खस । १९ रास्ना। २. एक प्रकार का फनदार साप । पिंगाक्ष'-वि० [ मं० पिट गारा ] [वि० स्त्री० पिंगाशी ] जिनकी २१ एक प्रकार का स्थावर विप । अखि भूरी या तामड़े रग की हो।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२७८
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