पीसू २०३९ पुंडरी पीसू-सज्ञा पुं० [हिं० पिस्सू ] एक प्रकार का परदार छोटा कीडा पुछल-वि० [स० पुच्छत्त? ] दे० 'पुच्छल' । उ०-छूट रहे हैं जो मच्छरो की तरह काटता है। यह पशुमो को बहुत तग पुछल तारे होते रहते उल्कापात ।-मिट्टी०, पृ० १०६ । करता है और उनके रोएं मे बडी शीघ्रता से रेंगता है। पुज-सज्ञा पुं॰ [ म० पुञ्ज ] समूह । ढेर । पीह-सचा स्त्री० [१] चरवी। पुजदल-सशा पुं० [म० पुञ्जदल ] सुसना का साग । सूनिपएण शाक। पीहर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पितृ, ना. पिन, पिउ, पिइ+ स० गेह या घर ? प्रा० हर ] स्त्रियो के माता पिता का घर । मैका । पुजनो-वि० स्त्री० [सं० पुञ्ज ] समूहयुक्त। बहुत अधिकता- उ.-सासरै जाऊँ तो सास रिसैहै, पीहर जाऊँ खिज वाली। पु जयुक्त । उ०-नददास पावन भयो सो यह मैया ।-घनानद, पृ०५८२ । लीला गाय प्रेम रस पु जनी।-नद० प्र०, पृ० १८६ । पीहाल-सशा पुं० [हिं० पपीहा ] दे॰ 'पपीहा' । उ०-नद के पुजन्म-सञ्चा पुं० [ स० पुम् + जन्मन् ] नर शिशु का जन्म कुमार बिनु लगै उर पार ऊधो पीहा पुकार झनकार झीगुरन लेना (को०)। की।-दीन० ग्र०, पृ०४०। पुजश-अव्य. [ म० पुञ्जश ] ढेर का ढेर । बहुत सा । पोहू-सचा पुं० [हिं० पिस्सू ] दे० 'पीसू' । पुजा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पुञ्ज १ गुच्छा । समूह । २ पूपा । गट्ठा । पुजि-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] समूह । पु-सज्ञा पु० [ म० पुस ] १ पुरुष । पुमान् । मर्द । २ मानव । मानव जातीय प्राणी। सेवक । नौकर । ४ पुल्लिग जिम-वि० [ म० पुञ्जित ] एकत्रित । पुजित । राशिभुत । (व्या०)। ५ पुल्लिग शब्द । ६ मात्मा । ७ जीवित प्राणी। पुजीभूत । उ०-जलदानेन हु जलो नहु पु जिनो धूमो। ८ एक प्रकार का नरक [को०) । -कीति०, पृ०६। पुख-सज्ञा पुं० [सं० पुर] १. बाण का पिछला भाग जिसमें पर पुजिक-सज्ञा पुं॰ [सं० पुञ्जिक] जमी हुई बर्फ । वर्षोपल । करका । खोसे रहते थे। २ मगलाचार । ३ श्येन । एक प्रकार का पुजित-वि० [सं० पुञ्जित] १ पु जीभूत । राशि में एकत्रित । २ बाज पक्षी। इकट्ठ दबाया दुभा (को०] । पुखित-वि० [सं० पुखित ] ( वाण ) जिसमें पर लगे हो। पुजिष्ठ'-वि० [सं० पुञ्जिष्ठ] पुजीभूत । एकत्रित । पखयुक्त (शर)। पुजिष्ठर-सञ्ज्ञा पुं० १ धीवर । मल्लाह । मछुपा। २ बहेलिया। पुग-सशा पुं० [ स० पुङ्ग ] समूह । चिडोमार (को०] । पुगफल-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पूगफल ] दे० 'पूगीफल' । पुजी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पूंजी] दे० 'पूजी'। पुग-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक लबी पोली नली जिसे फूककर पुड-सज्ञा पु० [स० पुण्ड] १ तिलक । चंदन, केसर प्रादि पोतकर वजाते है । उ०- नरास्थि की पु गरी फूकती-बडी बडी मस्तक या शरीर पर बनाया हुमा चिह्न । टीका । लबी टाँगें फेकती, दो सुदरी एक अोर व्याही और एक भोर यौ०-उनपुट । त्रिपुंड। कुमारी कन्या को काख में खोंसे थी। -श्यामा०, पृ० १८ । पुगल'-सज्ञा पु० [ सं० पुग्नल ] प्रात्मा । २ दक्षिण की एक जाति जो पहले रेशम के कोडे पालने का काम करती थी। पुगल-वि० [2 ] श्रेष्ठ । उत्तम । पुडका -सशा खी० [ स० पुण्डक, पुण्डका ] माधवी लता। उ०- पुंगला-मज्ञा पुं० [सं० पुङ्ग ( = आत्मा ) + ल (प्रत्य॰)] वासती पुनि पुडका मुक्त फला अरु ना।-नद ग्र०, बेटा । पुत्र । प्रात्मज । उ०-ना हूँ तेरा पु गला ना तु मेरी पृ० १०६ । माय । -दविखनी०, पृ० २० । पुंडरिया-सञ्ज्ञा पु० [सं० पुण्डरीक] पुडरी का पौधा । पुंगव-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुङ्गव ] १ बैल । वृष । विशेष-किसी पद या शब्द के मागे लगने से यह शब्द श्रेष्ठ पुडरो'–सञ्चा पु० [ स० पुण्डरिन् ] एक प्रकार का पौधा जिसकी पत्तियां पाालपर्णी की पत्तियों की सी होती हैं। का प्रथं देता है जैसे, नरपु गव, वीरपु गव । विशेष-इसका रस पांख मे लगाने से प्राख के रोग दूर होते २ एक प्रौषध का नाम । हैं। वैद्यक में यह मीठा, कठुवा, कसैला, वीर्यवर्षक, शीतल पुगवफेतु-सज्ञा पुं० [सं०] वृषभध्वज । शिव । और नेत्रो को हितकारी माना गया है। पुगोफल-सज्ञा पुं॰ [सं० पूगीफल ] दे॰ 'पूगीफल' । पर्या-श्रीपुष्प । शीत । पुरीयक । प्रपौंढरीक। चाक्षुष्य । पुचिह्न-सज्ञा पुं॰ [सं० पु श्चिह्न ] शिश्न । लिंग । तालपुष्पक । साक्षपुप्प । स्थलपन । सानुज । अनुज । पुछषु-सञ्चा भी० [सं० पुच्छ, प्रा० पुछ, हिं० पूछ ] दे० 'पूछ। पुंडरी-वि० [स० पाण्डर] दे० 'पांडर"। उ०-प्रह फूटी, दिसि उ०-सप व्यूह भाकार सज्जे सभार । द्रढ फन्न पु छ रचे पुहरी हणहणिया हय थट्ट । ढोलह घण ढढोलियउ सीतल भ्रित्त सार ।-पु० रा०, ११६३४ । सुदर घट्ट ।-ढोला०, दू० ६०२ । .
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३२३
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