पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३३

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पजिका २७४२ पंडितकर रजिस्टर । ३ पंचाग । पत्रा । जत्री [को०] । पंडल-सज्ञा : [सं० पिण्ड, हि. पंढ+ल ] पिंड । शरीर । यौ०-पजिकार । पजि कारक । उ०-(क) नासा एकहि नाम की जुग जुग पुरव मास । पजिका-सा खी० [स० पञ्जिका] १ पचाग । २. शब्दश ज्यो पहल कोरी रहै वसे जो चदन पास ।-कवीर (शब्द०)। व्याख्या करनेवाली टीका । विस्तृत टीका । ३ वही खाता ( ख ) पडल पिंजर मन भंवर अरथ अनूपम वास । एक नाम (को०)। ४ यम का वह खाता जिसमे प्राणी के कर्मों का लेखा सीचा अमी फल लागा विश्वास ।-कवीर (शब्द०) । रहता है (को०) । ५ पूनी । पिउनी (को॰) । पंडव, पडवा-संज्ञा पुं० [ मं० पाण्डव ] दे० 'पाडव' । पजिकारक-सज्ञा ० [स० पञ्जिकारक ] १.पचागनिर्माता । २ पंडा'-सज्ञा पुं० [सं० पण्डित ] [स्त्री० पंढाइन] १ किसी तीर्थ लेखक । बहीखाता लिखनेवाला। ३ एक जाति । कायस्थ या मदिर का पुरोहित या पुजारी। तीर्थ पुरोहित । मदिर [को०] का पुजारी। घाटिया। पुजारी। उ०-माया महा ठगिन पजी-सच्चा श्री० [सं० पजी ] दे० 'पजि'। हम जानी। निर्गुन फांस लिए कर होले वोले मधुरी पजीकरण-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० पञ्जीकरण ] १. लेख आदि का वही या वानी। केशव के कमला ह वैठी शिव के भई भवानी । रजिस्टर पर लिखा जाना । २ रजिस्टर होना। रजिस्टर में पडा के मूरति ह वैठी तीरथ मे भई पानी। -कवीर लिखकर पक्का करना। (शब्द०)। २ रोटी बनानेवाला ब्राह्मण । रसोइया । पजीकार-सा पुं० [ स० पञ्जीकार ] १ पजी या बही लिखनेवाला पंडा-पशा रखी० [ स० पण्डा ] १ विवेकात्मिका बुद्धि । विवेक । व्यक्ति । लेखक । मुनीम । २ पचाग का निर्माता । ज्योतिषी। ज्ञान । वुद्धि । २ शास्त्रज्ञान । ५जीरी'-सज्ञा मी० [हिं० पाँच +जीरा] एक प्रकार की मिठाई जो पंडाइन-ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पढा] १ पडा की स्त्री। २. रसोइया आँटे को घी मे भूनकर उसमें धनिया, सोठ, जीरा आदि की स्त्री या रसोई वनानेवाली औरत । मिलाकर बनाई जाती है। पडापूर्व-तज्ञा पुं॰ [ म० पण्ढापूर्व ] मीमामा शास्त्रानुसार वह धर्मा- विशेष-इसका व्यवहार विशेषत नैवेद्य मे होता है। जन्माष्टमी धर्मात्मक अदृष्ट जो अपने कर्म का फल देने में अयोग्य हो । के उत्सव तथा सत्यनारायण की कथा मे पजीरी का प्रसाद विशेष-मीमासा का मत है कि प्रत्येक कर्म के करते ही, चाहे वटता है। पजीरी प्रसूता स्त्री के लिये भी बनती है और वह अधर्म हो या घमं एक अदृष्ट उत्पन्न होता है। इस अदृष्ट पठावे मे भी भेजी जाती है। मे अपने कर्म के शुभाशुभ फल देने की योग्यता होती है। पर पजीरी-सचा त्री० [ देश० ] दक्षिण का एक पौधा जो मालावार, कितने कर्मों के शुभाशुभ फल तो मिलते हैं और उनके फलो मैसूर तथा उत्तरी सरकार मे होता है और प्रोषधि के काम मे के मिलने का वर्णन अर्थवाद वाक्यो मे भी है पर कितने ऐसे आता है । यह उत्तेजक, स्वेदकारक और कफनाशक होता है। भी कर्म हैं जिनका फल नहीं मिलता। ऐसे कर्मों की विधि तो जुकाम या सर्दी मे इसकी पत्तियो और उठलों का काढ़ा दिया शास्त्रो मे है पर उनका अर्थवाद नहीं है। इस प्रकार के कर्मों जाता है । मस्कृत मे इसे इ दुपर्णी और अजपाद कहते हैं। के करने से जो अदृष्ट उत्पन्न होता है उसे 'पडापूर्व' कहते हैं । पजुम-वि० [फा०] पचम । पाँचवाँ । उ०-पजुम ख्वाब देखा मीमासको का मत है कि ऐसे अदृष्टो मे स्पष्ट फल देने की जो है इक शहर । मद जन वहाँ को रहे घर व घर । योग्यता नही होती पर वे पाप और पुण्य का क्षय करते हैं । -दयिखनी०, पृ० ३०१ । नैयायिक इस प्रकार के अदृष्ट को नहीं मानते । पटलि+-सज्ञा पु० [सं० पटल] प्रावरण। पद । उ०—परगृह जाय पंडाल-मशा पुं० [१०] किसी भारी समारोह के लिये बनाया हुमा न देखे चचलि। गुरुमुखि त्यागे माया पटलि । -प्राण, विस्तृत मडप । जैसे, ममेलन का पडाल । काग्रेस का पडाल । पृ०११ । पंड'–संज्ञा पु० [ स० पण्ड ] १ नपु सक । हिंजडा । २ वह (पेड) पहित-वि० [वि० सी० पण्डित ] [ पंडिता, पढिताइन पडितानी ] पहावत-वि० [सं० पण्डावत ] बुद्धिमान या पढ़ा लिखा [को० । जिसमे फल न लगे। पडण-सज्ञा पु० [ स० पाण्डव ] दे० 'पाडव। उ०—संग्राम पड १. विद्वान् । शास्त्रज्ञ । ज्ञानी । करवे कि खड वारण सोरिणय । रा० रू०, पृ०६०। विशेष-लोक में 'पडित' शब्द का प्रयोग पढ़े लिखे ब्राह्मणो ही पह-सज्ञा पुं० [सं० पिण्ड ] दे० 'पिंड' । उ०-वसै अपडी पड मे के लिये होता है । शिष्टाचार मे ब्राह्मणो के नाम के पहले यह ता गति लपन कोइ ।—कबीर ग्र०, पृ०१८ । शब्द रखा जाता है। पडक-सञ्चा पुं० [सं० पगढक ] दे० 'पड' । २. कुशल । प्रवीण । चतुर । ३ सस्कृत भाषा का विद्वान् । पंडग- मज्ञा पुं॰ [सं० पण्डग ] खोजा। नपुसक । पंडित-सक्षा पुं०१ पढा लिखा शास्त्रज्ञ ब्राह्मण । २ वह जो पडरा-सज्ञा पुं० [हिं० पानी+ ढरना (ढरा) ] परनाला । पनाला। सदसद् के विवेकज्ञान से युक्त हो। शास्त्रज्ञ विद्वान् । ३. नावदान । प्राह्मण । ३ एक प्रकार का गधद्रव्य । सिलक (को०) । पडल'-वि० [ म० पाण्दुर ] पाडु वर्ण का । पोला। उ०—(क) पंसितफ-सज्ञा पुं० [ स० पण्डितक ] १. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का लोने मुख पडल पै मडल प्रकाश देव, जैसे चद्र महल पै चदन नाम । २. विद्वान् व्यक्ति (को०) । चढ़ाइयतु । -देव ( शब्द०)। पंडितक-वि० शास्त्रज्ञ । विद्वान् । शिक्षित [को॰] ।