पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३८०

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पृथ्वीको पृथुशिरा २०६९ पृथुशिरा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] काली जोक । सूक्ष्म ज्वलत नीहारिका के रूप में या। नीहारिका मडल के पृथुझंगक-सज्ञा पुं॰ [स० पृथुङ्गक ] मेढा । अत्यत वेग से घूमने से उसके कुछ प्रश अलग हो होकर मध्यस्थ द्रव्य की परिक्रमा करने लगे। ये ही पृथक हुए अश पृथुशेखर-सञ्चा पु० [सं०] पहाड़ । पर्वत । पृथ्वी, मगल, बुध आदि ग्रह है जो सूर्य (मध्यस्थ द्रव्य ) की पृथुश्रवा -सज्ञा पु० [सं० पृथुश्रवस ] १ कार्तिकेय के एक अनुचर परिक्रमा कर रहे हैं। ज्वलन वायुरूप पदार्थ ठढा होकर का नाम । २ पुराणानुसार नवें मनु के एक पुत्र का नाम । तरल ज्वलत द्रव्य रूप में पाया, फिर ज्यो ज्यो और ठढा ३ एक नाग (को०)। होता गया उसपर ठोस पपडी जमती गई। उपनिषदों पृथुश्रवार-वि० १ अत्यधिक प्रसिद्ध । २ वडे कानोवाला। जिससे के अनुसार परमात्मा से पहले प्राकाश की उत्पत्ति हुई, कान बढे हो। पाकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल पृथुश्रोणी-वि० सी० [स०] भारी नितबोवाली । से पृथ्वी उत्पन्न हुई। मनु के अनुसार महत्तत्व, अहकार पृथुसंपद्-वि० [स० पृथुसम्पत् ] घनी । सपतिशाली [को०)। तत्व और पचतम्माश्रामो से इस जगत् की सृष्टि हुई पृथुस्कध-सज्ञा पुं० [सं० पृथुस्कन्ध ] सूपर । है। प्राय इसी से मिलता जुलता सृष्टि की उत्पत्ति का पृथूदक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] सरस्वती नदी के दक्षिण तट पर का एक क्रम कई पुगणो आदि में भी पाया जाता है । (विशेष- प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ। दे० सृष्टि ) । इसके अतिरिक्त पुराणो में पृथ्वी की उत्पत्ति विशेष-पुराणो में कहा है कि राजा पृथु ने अपने पिता वेणु के सबध मे अनेक प्रकार की कथाएँ भी पाई जाती के मरने पर यही उनकी प्रत्येष्टि क्रिया की थी और बारह हैं। कही कही यह कया है कि पृथ्वी मधुकैटभ के मेद दिनों तक अभ्यागतो को जल पिलाया था। इसी से इसका से उत्पन्न हुई जिससे उसका नाम 'मेदिनी' पडा । कही यह नाम पडा । आजकल इस स्थान को पोहोमा कहते हैं। लिखा है कि बहुत दिनो तक में रहने के कारण जब पृथदर-सज्ञा पुं० [सं०] १ मेढा । मेष । २ जिसका पेट बहुत विराट् पुरुष के रोमकूपो मे मैल भर गई तब उस मैल से पृथ्वी उत्पन्न हुई। पुराणों मे पृथ्वी शेषनाग के फन पर, वडा हो । बड़े पेटवाला। कछुए की पीठ पर स्थित कही गई है। इसी प्रकार पृथ्वी पर पृथ्वींद्र--सञ्ज्ञा पु० [सं० पृथ्वीन्द्र ] राजा (को०] । होनेवाले सद्भिदों, पर्वतो और जीवो आदि की उत्पत्ति के पृथ्वी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. सौर जगत् का वह ग्रह जिसपर हम सबंध में भी अनेक कथाएँ पाई जाती है। कुछ पुराणों में इस सब लोग रहते हैं। वह लोकपिंड जिसपर हम मनुष्य प्रादि पृथ्वी का प्राकार तिकोना, कुछ में चौकोर और कुछ मे प्राणी रहते हैं। कमल के पचे के समान बतलाया गया है पर ज्योतिष के ग्रथो विशेप-सौर जगत् में यह ग्रह दूरी के विचार से सूर्य से तीसरा में पृथ्वी गोलाकार ही मानी गई है। ग्रह हैं। (सूर्य और पृथ्वी के बीच मे खुष और शुक्र ये दो ग्रह पर्या०-अचला । अदिति । श्रनता। अवनी । श्राया । इदा। मौर हैं)। इसकी परिधि लगभग २५००० मील और व्यास इरा। इला । उर्वरा । रवी । कु । क्ष्मा । धामा। निति लगभग ८००० मील है। इसका प्राकार नारगी के समान क्षोयी। गो। गोत्रा। जगती। ज्या। घरणी। धरती। गोल है मौर इसके दोनो सिरे जिन्हे ध्रुव कहते हैं कुछ चिपटे धरा । धरित्री। धात्री। निश्चला। पारा । भू। भूमि । हैं । यह दिन रात में एक बार अपने अक्ष पर घूमती है और महि। मही। मेदिनी। रत्नगर्भा। रस्नाचती। रसा। ३६५ दिन ६ घटे ६ मिनट अर्थात् एक सौर वर्ष में एक बार सूर्य की परिक्रमा करती है। सूर्य से यह ६,३०, ००,००० वसुधरा । वसुधा । वसुमती। विपुला। श्यामा । सहा । स्थिरा । सागरमेखला। मील की दूरी पर है। जल के मान से इसका धनत्व ५६ है । इसके अपने पक्ष पर धूमने के कारण दिन और रात होते हैं २. पच भूतों या तत्वों मे से एक जिसका प्रधान गुण गप है, पर मोर सूर्य की परिक्रमा करने के कारण ऋतुपरिवर्तन होता जिसमें गौण रूप से शब्द, स्पर्श रूप और रस ये चारों है। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इसका भीतरी भाग भी गुण भी हैं। प-दे० 'भूत' । ३. पृथ्वी का वह ऊपरी प्राय ऊपरी भाग की तरह ही ठोस है । पर अधिकाश लोग ठोस भाग जो मिट्टी और पत्थर प्रादि का है मौर जिसपर यही मानते हैं कि इसके अदर बहुत अधिक जलता हुषा हम सब लोग चलते फिरते हैं। भूमि। जमीन। धरती। तरल पदार्थ है जिसके ऊपर यह ठोस पपडी उसी प्रकार है (मुहा० के लिये दे० 'नमीन')। ४. मिट्टी। ५ सत्रह जिस प्रकार दूध के ऊपर मलाई रहती है । इसके मदर की अक्षरो का एक वणवृत्त जिसमें ८,९, पर यति और गरमी बराबर कम होती जाती है जिससे इसके ऊपरी भाग प्रत मे लघु गुरु होते हैं। जैसे-जु राम छवि ककणे, का घनत्व बढ़ता जाता है। इसमे पांच महाद्वीप धौर पाँच निरखि पारसी संयुता। लगाय हिय सो घरी कर न दूर महासमुद्र हैं। प्रत्येक महाद्वीप में अनेक देश और अनेक प्राय पृथ्वीसुता। ६. हिंगुपत्री। ७ काला जोरा। सोठ ।।. द्वीप मादि हैं। समुद्रों में, दो वरे और अनेक छोटे छोटे द्वीप बड़ी इलायची। तथा द्वीपपुज भी हैं। पृथ्वीका-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. वडी इलायची। २ छोटी इला- माधुनिक विज्ञान के अनुसार सारे सौर जगत् का उपादान पहले यची। ३. काला जीरा। ४.हिंगपत्री।