पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३९०

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पेरा पेन्हाना' के दर लगी हुई होती है और या किसी धातु के खाने में है। २ मांड। ३. आदी । अदरक । ४ सोमा नामक साग । ५ सौंफ। अटकाई हुई होती है। पेन्हाना-क्रि० सं० [हिं० ] दे० 'पहनाना' । पेयान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रयाण ] दे० 'प्रयाण' । उ०—ज्ञानदीपक ग्रथ सपूरन कीन्हा । तब ही काल पेयाना दीन्हा। स० पेन्हाना- क्रि० स० [सं० पय स्रवन, प्रा० पवन ] दुहते समय दरिया, पृ० ४१॥ गाय, भैस आदि के थन में दूध उतरना जिससे थन फूले या भरे जान पड़ते हैं । उ-तेइ तृण हरित पर जब गाई। पेयु-सशा पुं० [सं०] १. अग्नि । अनल । २ सूर्य । दिवाकर । ३ सागर । समुद्र (को०)। -भाव बच्छ सिसु पाय पेन्हाई । -तुलसी (शब्द॰) । पेयूष-सज्ञा पुं॰ [ सं०] १ वह दूध जो गौ के बच्चा देने के सात पेपर-सज्ञा पुं० [सं०] १ कागज । २ दस्तावेज । तमस्सुक, दिन बाद तक निकलता है। ऐसा दूध स्वाद में अच्छा नही सनद या और कोई लेख जो कागज पर लिखा हो। होता और हानिकारक होता है। पेउसी। २ अमृत। समाचारपत्र । सवादपत्र । अखबार । ४ वह छपा हुमा पत्र ३ ताजा घो। या पर्चा जिसमे परीक्षार्थियो से एक या अधिक प्रश्न किए पेरज-मज्ञा पुं० [ स० ] » 'परोज' [को०] । गए हो । प्रश्नपत्र । जैसे,—इस बार मैट्रिक्यूलेशन का प्र ग्रेजी पेरणी -सज्ञा स्त्री० [सं० ] ताडव नृत्य का एक प्रकार [को०] । का पेपर बहुत कठिन था। ५ प्रामिसरी नोट । सरकारी पेरना'-कि० स० [सं० पीढन ] १ दो भारी तथा कडी तु कागज । जैसे, गवर्नमेट पेपर । ६. लेख। निबंध। प्रबध । के बीच मे डालकर किसी तीसरी वस्तु को इस प्रकार बन पेपरमिंट-सज्ञा पुं० [अ० पिपरमिट ] दे० 'पिपरमिट'। कि उसका रस निकल पावे। जैसे, कोल्हू में तेल पेरना पेपरमिल-सज्ञा पुं० [मं०] कागज तैयार करनेवाली मिल, कारखाना उ०-(क) ज्यों किसान वेलन मे कहिं । पेरत लेत निचो या संस्थान । पियूषहिं । -निश्चल (शब्द०)। (ख) भृली शूल क पेपरवेट-सज्ञा पुं॰ [4] शीशा, पत्थर या धातु का वह साधन, कोल्हुन तिल ज्यों बहु बारन पेरो।-तुलसी (शब्द० ) जिसे कागजो पर उडने से रोकने के लिये रखा जाता है। २. कष्ट देना । बहुत सताना । उ०-जेहि बालि बली, सो बर पेरयो ।-केशव (शब्द०)। ३ किसी काम पेम-सज्ञा पुं॰ [ स०प्रेम, प्रा० प्रेम ] दे० 'प्रेम' । उ०-राम सुपेमहि पोषत पानी। हरत सकल कलिकलुष गलानी। वहुत देर लगाना । आवश्यकता से बहुत अधिक विल करना। ४. किसी वस्तु को किसी यत्र मे डालकर घुमाना -तुलसी (शब्द०)। १५ बोना। उ०-हुप्रा वोई च हासिल जो पेरी अथी पेमचा-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का रेशमी कपठा। उ०- -दविखनी०, पृ०६०। पेमचा डरिया श्री चौधारी। साम, सेत, पीयर, हरियारी। पेरनाg२-क्रि० स० [सं० प्ररण ] १ प्रेरणा करना । चलाना -जायसी ग्र०, पृ०१४५ । उ.-ये किरीट दशकघर केरे । पावत बालितनय के पेरे। पेमा-सा त्री० [देश॰] एक प्रकार की मछलो जो ब्रह्मपुत्र, गगा तुलसी (शब्द०)। २ भेजना। पठाना। उ.-.i और इरावदी (बरमा ) तथा बबई के जलाशयो मे पाई जुडती देख राणा, पेरियो भीम अगज प्रमाणौ ।-रा० रू जाती है । इसकी लवाई ८ इच होती है। पेमेंट-सज्ञा पुं० [अ० ] मूल्य देना । चुकाना बेबाकी भुगतान । पेरना@-क्रि० स० [हिं० पैरना ] दे० 'पैरना' । उ -पू९५ जैसे,-(क) तीन तारीख हो गई, अभी तक पेमेट नही तैसे ये लोचन, कृपा जहाज बिना क्यो पेरै ।। -सूर०, १ हुआ। ( ख ) बैंक ने पेमेट बद कर दिया । १७८५॥ क्रि० प्र०-करना। -होना। पेरली-सच्चा स्त्री॰ [2] ताडव नृत्य का एक भेद । पेय'- वि० [सं०] १ पीने योग्य । जिसे पी सकें। २ जो पान विशेष- इसमे अगविक्षेप अधिक होता है और अभिनय कम किया जाय। इसे देशी' भी कहते हैं। इसका पेरणी नाम से भी उल्लेख है पेय-सज्ञा पु० [सं०] १ पीने की वस्तु । वह चीज जो पीने के पेरवा-मज्ञा पुं० [हिं० पेरना ] वह जो कोल्हू आदि में , काम मे पाती हो। जैसे, पानी, दूध, शराय, प्रादि । २ चीज पेरता हो । पेरनेवाला । जल । पानी। ३ दूध । दुग्छ । पेरवाहा--सचा पुं० [हिं० पेरना ] दे० 'पेरवा' । पेया-संज्ञा स्त्री॰ [सं० ] वैद्यक में चावलों की बनी हुई एक प्रकार पेरा-सक्षा पुं० [हिं० पीला ] एक प्रकार की मिट्टी जिससे दीव की लपसी। घर इत्यादि पोतने का काम लिया जाता है। इसका रग विशेष--यह किसी के मत से ग्यारह गुने, किसी के मत से पीलापन लिए हुए होता है । पोतनी मिट्टी। चौदह गुने भौर किसी के मत से पद्रह गुने पानी में पकाकर पेरा-सच्चा पु० [सं० पिण्ड ] दे० 'पेडा'। तैयार की जाती है। यह स्वेद और अग्निजनक तथा भूख, पेरा-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का तवाद्य जो खरमुख प्यास, ग्लानि, दुर्बलता और कुष्ठ रोग की नाशक मानी जाती प्राकार का होता था [को । पृ०७३।