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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४३०

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प्रचोदन प्रचलायन प्रचलायन-सज्ञा पुं० [सं०] निद्रा के कारण सिर का मुक प्रचाल-मज्ञा पुं॰ [ स० ] वीणा का वह अंग जहाँ से तुवा सयुक्त पडना [को०] । होता है [को०] । प्रचलायित-वि० [सं०] १. लुढकता हुआ । २ नींद पाने के प्रचलित-वि० [सं०] जिसका प्रचलन किया गया हो। जो चलाया कारण जिसका सिर झुक गया हो [को०] । गया हो। प्रचलित'-वि० [सं०] १ जारी। चलता हुआ। जिसका चलन प्रचित'-सा पु० [म०] १ वह जिसका संग्रह किया गया हो। हो। जैसे, प्रचलित प्रथा, प्रचलित सिक्का, प्रचलित नाम । २, वह जो चुना गया हो। २ दडक छद का एक भेद । हिलता या कांपता हुमा (को०) । ३. गतिमय । गतिशील प्रचित-वि० १. चयन किया हुअा। एकत्र किया हुआ। (को०)। ४ विह्वल । आकुल । सभात (को०)। सगृहीत । स ग्रह किया हुआ । २ भरा हुमा। परिपूर्ण । प्रचलित-सज्ञा पुं० प्रस्थान । प्रयाण को०। ३ अनुदात्त [को०] । प्रचाय-सज्ञा पुं० [ स०] १ हाथ से कोई चीज इकट्ठा करना। प्रचुर-वि० [स०] १ वहुत । अधिक । विपुल । जैसे, प्रचुर धन । २. राशि । ढेर। ३. वृद्धि । अधिकता। दे० 'प्रचय' । २. पूर्ण । भरापुरा । जैसे, प्रचुरपुरुष (= जनाकीर्ण )। ३ प्रचायक-सचा पुं० [सं०] [ मी० प्रचायिका] १ वह जो चयन बड़ा । विशाल (को०)। करे। २ वह जो इकट्ठा करे। सग्रह करनेवाला । ३ ढेर प्रचुर-सज्ञा पुं० [सं० प्र० +/चुर् (= चोरी) ] वह जो चोरी लगानेवाला। करे । चोर। प्रचायिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ फूलों का एकत्र करना । यौ०-प्रचुरपुरुष = चोर । तस्कर । पुष्पचयन । २. फूल एकत्र करनेवाली स्त्री [को०] । प्रचुरता-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] प्रचुर होने का भाव । ज्यादती । अधिकता। प्रचार-मज्ञा पुं॰ [ स०] १ किसी वस्तु का निरतर व्यवहार या उपयोग । चलन । रवाज । जैसे,—(क)माजकल अंगरखे प्रचुरत्व-सज्ञा पुं॰ [सं०] दे० 'प्रचुरता' [को०] । का प्रचार कम हो गया है। ( ख ) इस प्रथ का बहुत प्रचूर-वि० [ सं० प्रचुर ] ६० 'प्रचुर'। उ०—एक तू एक तू अधिक प्रचार है । २ प्रसिद्धि । ३ प्रकाश । ४ घोहों की पवन प्रचूरा । एक तू एक तू' फिरत बघूरा।-सु दर ग्रं०, पृ०८६८ । अखि का एक रोग जिसमें प्रांखों के पासपास का मास बढकर दृष्टि रोक लेता है। यह मास काट डाला जाता है। प्रचॅन-वि० [स० प्रचण्ड ] दे० 'प्रचड' उ०-सुन श्रवन समझ ५ जाना। चलना । घूमना (को०) । ६. प्रगट होना । माना न बेन, पावृत्त घाय प्रचेंन ।-पृ० रा०, १३ ७४ । (को० । ७ व्यवहार । प्राचार (को०)। ८ खेलने का मैदान । प्रचेतसी-सशा स्त्री॰ [ स०] १ कायफल । २. प्रचेता की कन्या । अभ्यास करने का स्थान (को०)। ६ चरागाह (को०)। १०. प्रचेता'-सज्ञा पुं० [स० प्रचेतस् ] १ एक प्राचीन स्मृतिकार ऋषि मार्ग | पथ (को०)। ११. सार्वजनिक घोषणा या विज्ञापन । का नाम । २ वरुण का एक नाम । ३. बारहवें प्रजापति (को०) । १२ गति । सचार । क्रियात्मकता (को०)। का नाम । ४. पुराणानुसार पृयु के परपोते और प्राचीनवहि प्रचारक-वि० [सं०] [ वि०सी० प्रचारिणी ] फैलानेवाला। किसी के दस पुत्र जिन्होंने दस हजार वर्ष तक समुद्र के भीतर वस्तु का चलन बढानेवाला। प्रचार करनेवाला। रहकर कठिन तपस्या की और विष्णु से प्रजासृष्टि का वर प्रचारकार्य-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] व्याख्यानो, उपदेशो, पुस्तिकाप्रो और पाया था । दक्ष उन्हीं के पुत्र थे। विज्ञापनों घादि के द्वारा किसी मत या सिद्धांत के प्रचार प्रचेता-वि० १ चुनने या चयन करनेवाला। २ बुद्धिमान् । करने का ढग या काम । प्रौपैगडा । जैसे,-हिंदू महासभा की होशियार । चतुर । ओर से हरिहर क्षेत्र के मेले में बहुत अच्छा प्रचार कार्य प्रचेता-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० प्रचेतृ ] सारथि । रथचालक [को०] । प्रचेय-वि० [सं०] १. जो चयन करने योग्य हो। जो चुनने या प्रचारण-सपा गुं० [ स०] १ छितराना । विखेरना [को०) । साग्रह करने योग्य हो । २. जो ग्रहण करने योग्य हो । ग्राह्य । प्रचारनाg-क्रि० स० [स० प्रचारण] १. प्रचार करना । फैलाना। ३. वृद्धि करने योग्य (को०)। २ ललकारना। सामना करने के लिये बुलाना। उ०-इंद्र प्रचेल-सज्ञा पुं० [सं०] पीला चदन । आय तब असुर प्रचारयो। कियो युद्ध पै असुर न मारयो । -सूर (शब्द)। ३. सुलगाना। माग को प्रज्वलित प्रचेलक' -सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] घोहा। करना। उ०-बोग पगिनि जब हिए प्रचारी। पल मह प्रचेलक-वि० बहुत अधिक चलनेवाला। कीन्ह भसम रिसि जारी।-चित्रा०, पृ०५६ । प्रचोद-मञा पुं० [ स० ] दे० 'प्रचोदन' । प्रचारित-वि० [स०] १. फैलाया हुआ। २ प्रचार किया हुआ । प्रचोदक--वि० [स०] प्रेरणा करनेवाला। उत्तेजित करनेवाला । ३ जिसका प्रचार किया गया हो। प्रचोदन-सज्ञा पुं० [म.] १ प्रेरणा । उत्तेजना। २. माज्ञा । प्रचारी-वि० [ स० प्रचारिन् ] १. घूमने फिरनेवाला। २. दिखाई ३, आज्ञा देना। आदेश देना (को०) । ४. कायदा। कानून । देनेवाला । ३. व्यवहार करनेवाला । चेष्टा करनेवाला (को०] । नियम । ५. प्रेषण (को०)। हुआ। -