पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४३८

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प्रतान प्रतिकार 1 -अनेकार्थ०, पृ० ८८ । ४. रेशा या लतासतु । ५. प्रस्तार । प्रति--प्रव्य० १. सामने । मुकाबिले में । २ ओर । तरफ । लक्ष्य विस्तार (को०)। किए हुए । जैसे, किसी के प्रति श्रद्धा रखना। प्रतान-वि० [सं०] १ विस्तृत । लबा चौड़ा । २ रेशेदार । प्रति-सज्ञा स्त्री० १, नकल । कापी। २. एक ही प्रकार की कई जिसमे रेशे हो। वस्तुप्रो में अगल प्रगल एक एक वस्तु । अदद । जैसे,- प्रतानिनी-संज्ञा स्त्री० [स०] फैलनेवाली लता । वल्ली (को० । इस पुस्तक की दस प्रतियां ले लो। प्रतानी-वि० [सं० प्रतानिन् ] [ वि० सी० प्रतानिनी ] १ फैलने- प्रतिउत्तर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रति + उत्तर, प्रत्युत्तर ] दे० 'प्रत्युत्तर' । उ०-प्रति उत्तर उड़पति न दिय प्रिया क्रोध मन मानि । वाला । विस्तृत होनेवाला। फैला हुमा । २ रेशेदार । जिसमें रेशे हों [को०)। -4० रासो, पृ० १०। प्रतिकंचुक-सशा पु० [सं० प्रतिरुञ्चुक ] शत्रु । दुश्मन । प्रताप-सज्ञा पु० [सं०] १ पौरुष । मरदानगी । वीरता । २. वल, पराक्रम श्रादि महत्व का ऐसा प्रभाव जिसके कारण उपद्रवी प्रतिक-वि० [सं०] एक कार्षापण में क्रीत । एक कार्षापण मूल्य या विरोधी शात रहें। तेज । इकवाल । ३. मदार का पेड । का [को०] । ४ रामचद्र के एक सखा का नाम । ५ युवराज का छत्र । प्रतिकर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ प्रतिशोध । बदला। २ प्रतिरोध । ६ ताप । गरमी। विक्षेप । ३ क्षतिपूर्ति । ४ फैलाव । विस्तीर्णता (को०) । प्रतापन'-सज्ञा पुं० [सं०] १ पीडन । कष्ट पहुंचाना । २ कुंभी- प्रतिकरणीय-वि० [सं०] १ जिसका प्रतिकार किया जाय । पाक नरक । ३ विष्णु । ४. शिव (को०) । २ जो प्रतिरोध करने योग्य हो (को०] । प्रतिकर्तव्य-वि० [सं०] १ जो नुकाया जाय (जैसे, ऋण प्रादि)। प्रतापन-वि० क्लेश देनेवाला । वष्ट देनेवाला। २ जिसका प्रतिकार किया जाय । ३ (रोगादि) जिसकी प्रतापवान्'-वि० [सं० प्रतापयत ] [वि० पी० प्रतापवती ] चिवित्सा की जाय [को॰] । प्रतापयुक्त । जिसमे प्रताप हो। इकवालमद । प्रतिकर्ता-वि० पुं० [ सं० प्रतिकर्तृ ] १. प्रतिशोध करनेवाला । प्रति- प्रतापवान्२-सज्ञा पुं० १. विष्णु । २ शिव का नाम [को०] । कार करनेवाला । २. क्षतिपूर्ति करनेवाला [को०] । प्रतापस-सञ्ज्ञा पु० [स०] १. सफेद मदार । २ महान तपस्वी (को॰) । प्रविकर्म-सझा पुं० [ स० प्रतिकर्मन् ] १. वेश । भेस । २. प्रतीकार । प्रतापी-वि० [स० प्रतापिन् ] १ प्रतापवान् । इकवालमद । बदला । ३. वह फर्म जो किसी दूसरे के द्वारा प्रेरित हो । जिसका प्रताप हो । २ सतानेवाला । दुःखदायी। किसी कार्य के होने पर होनेवाला कार्य। किसी काम प्रतापी-सज्ञा पुं॰ [ स०] रामचंद्र के एक सखा का नाम । उ०- के जवाब में होनेवाला काम । ४ शरीर को संवारना । दुवन प्रताप तहाँ, परम प्रतापी राम वचन उचारे हैं।- भगकर्म । रघुराज (शब्द०)। प्रतिकर्प-सज्ञा पु० [ म०] एक स्थान पर करना। एकत्र करना। सयोजन [को०। प्रतारक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ वचक । ठग । २ धूर्त । 'चालाक । प्रतिकश-वि० [स०] कशाघात को न माननेवाला (घोडा)। सर- प्रतारण-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] १ वचना । ठगी । २. धूर्तता । कश [को०] । प्रतारणा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] प्रतारण । वचना । ठगी। प्रतिकष-सञ्ज्ञा पुं० [म०] १. नेता। २. सहायक । ३. दूत । प्रतारित-सज्ञा पु० [सं०] जो ठगा गया हो। वार्ताहर । चर [को०)। प्रतिचा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म० प्रत्यञ्चा वा पतञ्चिका] धनुष को डोरी। प्रतिकामिनी-शा स्त्री० [सं०] सपत्नी । सौत । ज्या। चिल्ला। प्रतिकाय-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. पुतला। प्रतिरूप मूर्ति । चित्र । प्रति'-प्रव्य • [म०] एक उपसर्ग जो शब्दों के प्रारम में लगाया २ पात्रु । परि । ३. लक्ष्य । शरव्य [को०] । जाता है और निम्नाकिन अर्थ देता है -१. विरुद्ध । प्रतिकार-तज्ञा पुं० [सं०] १. वह कार्य जो किसी कार्य को रोकने विपरीत । जैसे, प्रतिकूल, प्रतिकार । २ सामने । जैसे, दवाने अथवा उसका बदला चुकाने के लिये किया जाय । प्रत्यक्ष । ३ बदले में। जैसे, प्रत्युपकार, प्रतिहिंसा, प्रति प्रतीकार । बदला । जवाब । किसी बात का उचित उपाय । ध्वनि । ४. हर एक । एक एक । जैसे, प्रत्येक, प्रतिदिन, जैसे,—(क) छाते से धूप का प्रतिकार हो जाता है । (ख) प्रतिक्षण । ३०-कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु माप अपने पाप का कुछ प्रतिकार कीजिए । उ०-दा. चरित नाना विधि करहीं।-मानस १२१४०। ५ समान । पीसकर, मोठ काटकर, करता है वह क्रुद्ध प्रहार । सदृश । जैसे प्रतिनिधि, प्रतिकृति । प्रतिलिपि । ६ मुका हंस हंसकर ही प्रमु सवका करते हैं पल मे प्रतिकार । बले का । जोड का। जैसे, प्रतिभट, प्रतिवादी, प्रत्युत्तर । साकेत, पृ० ३६३ । २ चिकित्सा । इलाज । ३. एक का इसके अतिरिक्त कही कही यह उपसर्ग 'कपर', 'म श', की सघि जिसमें कृत उपकार के बदले उपकार किया जा 'सनमाग' सादि का भी अर्थ देता है। (को०) । ४. साहाय्य । सहायता (को॰) । .